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SANGEETA SINGH

Tragedy

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SANGEETA SINGH

Tragedy

एक बेटी का मां के नाम खत

एक बेटी का मां के नाम खत

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मेरी प्यारी मां,

सादर चरण स्पर्श,

आज 20 साल हो गए, मां तुमसे बिछड़े हुए पता नहीं, तुमने मुझे कभी याद किया था भी या नहीं,पर मैंने तुम्हें अपनी हर सांस में याद किया।

मां तू समझती होगी कि तुम्हारी बेटी अच्छी नहीं थी, मैने तुम्हारी परवरिश को कलंकित किया पर मां तूने कैसे सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर लिया कि मैं चरित्रहीन हूं ? मां आखिर मैं तुम्हारा खून थी,तुमने मुझे जीवन के हर मूल्य सिखाए थे, सिर्फ एक ही बात मैं तुमसे नहीं सीख पाई,परिस्थिति से लड़ना, मैने परिस्थिति से समझौता कर लिया अपने भाई बहन और परिवार की खातिर।

आज मैं अपनी जिंदगी की आखरी सांस ले रही हूं तो सोचा कि अपने दिल पर बरसों से रखा बोझ तुम्हें बता ही दूं ताकि मैं सकूंन से मर सकूं।मुझे एड्स हो गया है मां।बहुत दर्द में हूं, आवाज, शरीर कुछ भी साथ नहीं दे रहा। मैं अपनी ये चिट्ठी नर्स को दे रही हूं, आशा है कि मरते हुए व्यक्ति की आखरी इच्छा समझ ये चिट्ठी तुम तक ये पहुंचा देंगी।

फागुन का महीना था, प्रकृति अपनी युवावस्था में थी, बौरों से लदी अमराई, मादक गंध छोड़ रही थी,मदमस्त हवा जिसमे अब ग्रीष्म आने से ताप भी हो आई थी,तन बदन को छू कर सनसनी पैदा कर रही थी। मैं अपने 16 वें साल में थी, भरपूर यौवन से भरी। होली का आगमन होने से पहले घर घर फाग के गीत गाए जा रहे थे।पीली पीली सरसों से ढंकी प्रकृति अब राधा कृष्ण के रंग में रंगने को तैयार थी।

होली से एक दिन पहले

 आज स्कूल का आखरी दिन था मां,तुम्हें याद है, तुमने मुझसे कहा था न कि स्कूल से आकर गुझिया बनाने में तुम्हारी मदद करनी है। मैं सहेलियों संग स्कूल से लौट रही थी,रीना, मीना, शबीना सबका घर पहले पड़ जाता वे अपने अपने घर चली गईं, मैं भी तेज कदम बढ़ाती घर की ओर आ रही थी।तभी पीछे से दो लड़कों ने जिन्होने मुंह पर काला रंग लगाया था,उन्होंने मुझे पकड़ लिया,उनके मुंह से देसी दारू की बास आ रही थी, मैं कुछ कहती उन्होंने मेरा मुंह कपड़े से बंद कर दिया और मुझे घसीटते गांव में बने नलकूप वाले सुनसान कमरे में ले गए, और वहां मुझे फूल बनने से पहले मसल दिया। मैं चीखती तो, उसमें से एक तमंचा दिखा कहने लगा_,अगर चिल्लाई तो तुझे और तेरे परिवार वालों को मार दूंगा।

मैं दर्द से कराह रही थी, बेबस थी,मुझे डॉक्टर की जरूरत थी। आखिर मैं दर्द से अर्धचेतन अवस्था में चली गई, मुझे बस कुछ आवाज सुनाई दे रहीं थी,उसमें से एक ने कहा _मरने दे......,***।

दूसरे ने मेरी ओर ललचाई आंखों से देखा _यार अभी मन नहीं भरा, चल इसे शहर ले चलते हैं वहां डॉक्टर को दिखा, फिर कुछ दिन मजे लेकर हीराबाई के कोठे पर अच्छी रकम ले बेच देंगे, और फिर उन पैसों से ऐश करेंगे।

यार तू भी गजब आदमी के भेष में छुपा भेड़िया है, गजब का आइडिया दिया है तूने।

फिर मां उन्होंने डॉक्टर को अपनी पत्नी बता इलाज कराया, और फिर बारी बारी से मेरे जिस्म से खेलते रहे।उन्होंने बताया कि गांव में अफवाह है की मैं अपने आशिक के साथ भाग गई,लोग चटखारे लगा कर इसे कहानियों में बदल रहे थे। जब उन दोनों का मन भर गया तो, उन्होंने मुझे हीराबाई के कोठे पर अच्छे दाम पर बेच दिया।उसके बाद, मैं हर रात ही कुचली गई, एक लाश की तरह मुझमें सारी संवेदना,मौसम का रंग बदलना सबकुछ खत्म हो गया।

कई बार मैं वहां से भागना चाहती थी लेकिन फिर मां, मैं समाज के सामने तुम्हारा शर्म से झुका सिर देखना नहीं चाहती, मेरे बारे में जानने के बाद मेरे भाई बहन के लिए ये समाज मुश्किलें पैदा कर सकता था।,वही समाज के ठेकेदार जो मुंह अंधेरे कोठों में अपनी रातें रंगीन करते हैं और दिन के उजाले में समाज सुधार की बात करते हैं,वही तुम सब पर जुल्म करते, यही सोच मैने हालात से समझौता कर लिया।

लेकिन एक दिन मेरी बदनसीबी और बढ़ने वाली थी, कोई ग्राहक मुझे एड्स की सौगात भी दे गया। मां मुझे अब नींद आ रही है,मेरी आंखे बोझिल हो रही हैं, मैं अब उस चिर निद्रा का वरण करने जा रही है जहां से मुझे मुक्ति मिलेगी अपने दर्द का, अलविदा 

मेरी प्यारी मां

तुम्हारी बदनसीब बे.....


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