sneh goswami

Tragedy

4.0  

sneh goswami

Tragedy

एक बड़ा सवाल

एक बड़ा सवाल

4 mins
233


दरवाजे पर लगा ताला नीरु का मुँह चिढ़ा रहा था। यहाँ दरवाजे के सामने बैठे हुए उसे दो घंटे से ऊपर हो गये थे पर रोहित का कोई अता पता ही नहीं। वह सब्जी खरीदने के लिए दस मिनट के लिए सड़क के मोड़ की दुकानों तक गयी थी तब रोहित अपने मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने में व्यस्त था। उसे बोला भी था कि दस मिनट में सब्जी लेकर लौट रही हूँ पर शायद उसने सुना ही नहीं या सुनकर भी ध्यान ही नहीं दिया। न जाने ताला जड़ कर कहाँ भटकने चला गया।

सोचों के समंदर में डुबकियाँ लगाती हुई नीरु की आँखों के कोर आँसुओं से भर गये। पहले उसका पिता महेश मैडिकल नशे की चपेट में था। शादी के अगले दिन ही उसे इसका कुछ कुछ अनुमान हो गया था। तब उसे यह अहसास ही नहीं था कि हालात बुरे भी हो सकते हैं। सपनों के पंखों पर सवार नीरु ने सोचा था कि अपने प्यार के सहारे वह महेश को इस बीमारी से मुक्त करा लेगी पर जब भी उसने रोकने या समझाने की कोशिश की, महेश बुरी तरह उखड़ जाता। कभी बात भी करने की कोशिश की, तो बुरी तरह से पीटी जाती और गरियायी जाती। नन्हा रोहित पिता का हिंसक रूप देखकर सहमा हुआ दरवाजे के पीछे दुबक जाता। धीरे धीरे हालत यह हो गयी कि वह पिता के घर लौटने से पहले ही बेतहाशा रोना शुरु कर देता। चुप कराने की हर कोशिश बेकार हो जाती। रोहित का तारसप्तक में रोना महेश को बौखला देता और गुस्से का शिकार होती नीरू।

बाल मन पर पड़ते गहरे दुष्प्रभाव को देखते वह अवसाद से घिरने लगी थी। स्कूल की नौकरी उसे आत्महत्या से रोके आ रही थी। आखिर हारकर उसने तलाक की अर्जी डाल दी थी। लेकिन ससुराल –मायका, घर – बाहर सब जगह उसे विरोध झेलना पड़ा था। लम्बा मानसिक तनाव झेलने के बाद और कई साल अदालत की लंबी उबाऊ बहसों के बाद वह उस नारकीय रिश्ते से मुक्त हो पाई थी। रोहित उस समय मात्र दस साल का था और चौथी कक्षा में पढता था। सोचा था, कैसे भी बच्चे को पाल लेगी तो जिंदगी आसान हो जाएगी। मायके में भाई – भाभी थे। उनसे बहुत उम्मीद तो पहले ही नहीं थी, तलाक होते ही भाई ने रिश्ता तोड़ लिया। शायद डर हो कि दोनों उस पर निर्भर हो जाएंगे। ससुराल से रिश्ता उसने ही तोड़ लिया।

थोड़ी भागदौड़ करके उसने अपना तबादला मेरठ करवा लिया। कुछ साल चैन से बीते भी। सब कुछ आराम से चल रहा था। वह दिन रात काम करती। सुबह उठ चाय नाश्ता बनाती, टिफिन बनाती, रोहित को स्कूल छोड़कर दफ्तर जाती। वहाँ से लौटती तो रोहित को पढ़ाती। तीन से पाँच बजे के लिए उसने एक ट्यूशन और स्पोर्टस कोचिंग का इंतजाम कर दिया था। उस पर उसकी पूरी कोशिश रहती कि अपना क्वालिटी टाइम रोहित के साथ ही बिताए। 

और एक दिन ट्यूटर ने उसे मिलने के लिए बुला भेजा। धड़कते दिल से वह गयी। सर ने वही कहा जो उसने सोचा था। रोहित पढ़ने में कोई रुचि नहीं ले रहा। रोहित से बात की तो वह भड़क गया – उसे पढ़ाना आता भी है कल से मैंने उसके पास पढ़ने नहीं जाना। लाख समझाने पर भी वह पढ़ने नहीं गया। आखिर हारकर उसने नयी जगह कोचिंग का इंतजाम कर दिया। सोचा कि समस्या हल हो गयी कि एक दिन रोहित ने ऐलान कर दिया कि “ उसे पढ़ना नहीं है। उसे पढ़ना बिल्कुल पसंद नहीं है “ ? सुनकर दुख से ज्यादा आश्चर्य हुआ था नीरु को। अभी तो 14-15 साल का ही हुआ है और नवीं कक्षा में यह पढ़ाई छोड़ने की बात कर रहा है। अभी से क्या काम करेगा यह । 

अभी तो तेरे खेलने खाने के दिन हैं। तू सिर्फ मन लगाकर पढ़ाई किया कर। बाकी बातें मत सोचा कर। काम के लिए मैं हूँ न। 

रोहित ने प्रश्न किया था – तू मुझे सारी जिंदगी रोटी खिलाएगी। 

खिला दूँगी। अभी तू पढ़ा कर।

उसके बाद रोहित ने फिर कभी यह बात नहीं उठाई। वह नियम से स्कूल जाता। नौंवी जैसे तैसे पास हो गया पर दसवीं उससे नहीं हुई। दूसरे साल पास हुआ बी तो सिर्फ 39 प्रतिशत अंकों से। हर समय खोया खोया सा रहता। कम्प्यूटर और मोबाइल उसके साथी हो गये। सारा दिन उन्हीं में उलझा रहता। बहुत जरूरी होने पर ही बात करता। फिर एक दिन पता चला – रोहित भी महेश की राह पर चल पड़ा है। 

नीरु सोच रही है आखिर उससे गलती हुई तो कहाँ। मीलों दूर निकल गये रोहित को कैसे लौटाए। घर तो वह लौट ही आएगा पर क्या उसे लौटना कहते हैं। 

आप नीरु को क्या सलाह देना चाहेंगे।    



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy