Mrugtrushna Tarang

Action Inspirational

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Mrugtrushna Tarang

Action Inspirational

एक अनूठा कर्ज़

एक अनूठा कर्ज़

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   "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,  

   लेकिन,

   शुभ के हाथ छूने वालों की जिंदगी पार नहीं होती।"

       हे हे हे हे.... ला ला ल ला... हे हे हे हे....

    

   "ये क्या कह दिया मायरा तुमने? कहीं गलती से भी सरस्वती माँ ने तथास्तु बोल दिया तो मेरे हाथों कोई अपना इलाज न करवाएगा कभी!"

   उदास होकर शुभ उठकर वहाँ से चला गया।

   मायरा और शुभ के कॉमन दोस्तों को भी मायरा की बेतकल्लुफी वाली बातों से परहेज़ न था। पर कब और कहाँ, क्या बोलना है या क्या गुनगुनाना है इसकी समझ कुछ हद तक उसे कम ही थीं। या फिर वह जानबूझकर ऐसा कुछ बोल देती की सामने वाले उससे ख़फ़ा हो जाते।

   वक़्त गुज़रता गया। डॉ. शुभ माहेश्वरी का नाम पूरी दुनिया में फेमस हो गया। देहाती से लेकर शहरी तथा विदेशी भी डॉ. शुभ के नाम के गुण गाने से थकते नहीं थे।

   शुभ ने भी वक्त बेवक्त मरीज़ों की सेवा करने में कभी भी हिचकिचाहट न खुद महसूस की और ना ही मरीज़ों को भी होने दिया।

   हर रोज़ शुभ घर से क्लिनिक जाते वक्त और क्लिनिक से घर की ओर निकलते वक्त याद से भगवान को और उसके बाद अपने पूरे स्टाफ को थेँक्यु कहना न भूलता।

   उसका यह मानना था कि, भगवान और स्टाफ की मेहरबानियों और ईमानदारी के ज़रिए ही वह अपने हर एक मरीज का सही मायने में इलाज कर पाता था।

   वर्ना, उन सबके सहयोग के बिना वह कुछ भी नहीं था।

   यही एक बात न थी कि उसके इर्दगिर्द फैन्स मँडराते रहते। पर मरीज़ों और उनके रिश्तेदारों का भी मधुमक्खियों की भाँति ही ताँता लगा रहता। बूढ़े बच्चे सभी उसी के गुण गाते रहते।

    थेंक गॉड,

   मायरा के द्वारा उस दिन किया गया मज़ाक सच पुरवार न हुआ। और उन दोनों के दरम्यां की ग़लतफ़हमी भी दूर हो गई।

   एक रूमानी शाम को रिमझिम बरसती बारिश का लुत्फ शुभ उठा रहा था। उस बारिश की बूंदों को चातक पक्षी की तरह पीने की लालसा और नेचर का मज़ा लूटने के इरादे से डॉ. शुभ अपनी फियांसी मायरा के साथ लोनावला घूमने निकला। 

   वीक-एंड ख़त्म होने में कहाँ वक़्त लगता है! चुटकी बजाते ही सारा वक्त उड़न छू हो गया।

   लोनावला से मुंबई लौटते समय फार्म हाउस के रखवाले रामू की छोटी बिटिया रानू मायरा के साथ हो ली थीं। और मायरा को भी वह बहुत अच्छी लगतीं थीं। दोनों एक दूसरे से ऐसे घुल मिल गए थे कि मानो मायरा ही उसकी असली माँ हो!

   बीच रास्ते रानू को भूख लगी। बारिश भी ज़ोरो की गिर रही थीं। और लैंडस्लाइड की वजह से उन्हें बीच रास्ते ही रुकना पड़ा। दूर दूर तक कोई होटल्स या कोई इंसान भी नज़र नहीं आ रहा था।

   तभी एक झोंपड़ी से मद्धम रोशनी चमकारे लेती हुई नजर आयीं।

   शुभ ने झोंपड़ी के पास जाकर गाड़ी रोकी और आवाज़ लगाई। काफ़ी देर तक रुकने के बाद भी कोई रिप्लाय न मिलने पर निराश होकर गाड़ी मोड़ ही रहे थे कि एक औरत नन्हा सा बच्चा लेकर पर्दे के पीछे से बाहर झाँकते हुए चुप रहने का इशारा करने लगी।

   शुभ और मायरा को उस औरत का उन्हें यूँ चुप कराना ठीक न लगा। पर उनकी मजबूरी थी और जरूरत भी। इसलिए कुछ न कहते हुए यूँ ही बैठे रहे। काफ़ी वक़्त ऐसे ही बीत गया। 

   तक़रीबन बीस मिनट के बाद वह औरत फिर से बाहर आयीं। और वो भी बिना बच्चे के।

   "जी कहिये मेमसा'ब, क्या चाहिए आपको?" 

   "थोड़ा दूध मिल सकता है?" मायरा ने जीवन में पहली बार इतनी अदब से बात की थी।

   शुभ मायरा में आये बदलाव को देख बेहद खुश हुआ। और भगवान से मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि, थेँक्यू भगवान। मायरा को इतनी ही रहमदिल रखना हमेशा। क्योंकि, मायरा दूसरे की बच्ची का ख़याल रखते रखते भूल ही गई कि वो उसकी असली माँ नहीं है। 

    लेकिन, इंसानियत ने उसके भीतर की माँ को जागृत कर दिया था।

   कुछ क्षण सोचने के बाद वह औरत झोंपड़ी के भीतर गई और टूटा फूटा ग्लास दूध भरकर ले आई।

   मायरा ने गिलास का बाहरी हिस्सा गंदा देखकर मुँह बिगाड़ा। लेकिन दूसरे ही पल अपने आप को सँभालते हुए उसने वह गिलास लेकर रानू की भूख मिटाना आरंभ किया।

   शुभ ये दृश्य देखकर गदगद हो उठा। ठंड के मारे वह खुद भी चाहता था कि एक कप अदरक वाली चाय मिल जाये तो मुंबई तक का सफ़र आसानी से कट जाए।

   शुभ के मन की बात शायद ही कभी मायरा समझ पाती। लेकिन आज तो आश्चर्य पर आश्चर्यमय घटनाएँ घटित हुए जा रही थीं।

   शुभ की ओर प्यार भरी नज़र फेरते हुए मायरा ने बड़े अदब से उस झोंपड़ी वाली औरत से दो कप अदरक वाली चाय की रिक्वेस्ट की। और वो भी बड़े अदब के साथ।

   उस औरत की चंचल नज़रें एक और बार झिझकी। तभी भीतर से किसी के खाँसने की आवाज़ आने लगी। दूसरे ही पल वो आवाज़ें जोर पकड़ने लगी। शोर बढ़ता ही चला गया।

   वह औरत लपककर झोंपड़ी के भीतर चली गई। खाँसने की आवाज़ें अब लगातार और बारी बारी से आने लगीं।

   उस औरत ने दो कप चाय बनाकर पिलाई। एहसान मानते हुए शुभ ने कुछ रुपये देने चाहें तो उस औरत ने हाथ जोड़े लेने से इनकार कर दिया।

   शुभ के साथ मायरा ने भी उस औरत की इंसानियत के सामने खुद को बौना माना।

   एक और बार भीतर से खाँसने की आवाज़ ने शुभ के साथ मायरा की नज़रों ने गुफ्तगू की।

   और,

   शुभ के भीतर का डॉक्टर जाग उठा। उसने गाड़ी झोंपड़ी से सटाकर पार्क की। मायरा रानू को लेकर गाड़ी में ही बैठी रही ताकि उसे ठंड न लगे।

   शुभ झोंपड़ी में भीतर जाने से हिचकिचाहट महसूस कर रहा था। पल भर के रुकने भर में भीतर से खाँसने की और आवाज़ें सुन वह अपने आप को ज़्यादा देर तक न रोक पाया, और भीतर चला गया।

   हवा का झोंका इतना ज़ोरो से आया कि झोंपड़ी का आधा टूटा हुआ छप्पर उड़ गया और झोंपड़ी तितर बितर होने लगी।

   अब तक छुपाए रखी थी जो इज़्ज़त वो सरेआम हो गई। वह औरत पल दो पल अपने बच्चे और पति को बारिश से बचाने की जद्दोजहद में जुट गई।

   रानू को संभाले गाड़ी के भीतर बैठी मायरा में भी पल भर में ही दया के साथ साथ करुणा भी जाग उठी। पहली बार उसके मन में प्यार - दुलार का समंदर उमड़ पड़ा। रानू को गाड़ी में सुलाकर, उसे अपना सूती दुपट्टा ओढ़ाते हुए एकटक उसे देखने लगी। फिर गाड़ी की खिड़कियों के सारे काँच बारी बारी से ऊपर तक बंद करके थोड़े से खुले रखकर वह बाहर आयी और उस औरत की गोद में उसे लिपटकर सोए हुए एक साल के बच्चे को ज़बरन अपने साथ गाड़ी में लाने लगी।

   बेमन से वह औरत अपने बच्चे के साथ उस मेमसाब की गाड़ी की ओर आगे बढ़ी। उसके आगे की ओर बढ़ते कदमों के साथ उसकी नज़रें पीछे की ओर मुड़ती चली जाती और खुदबखुद वो पीछे हो लेती थीं।

   शुभ उस खाँसते हुए बेजान से देह को गोद में उठाये गाड़ी की ओर लपका। मायरा की सूझबूझ ने गाड़ी का दरवाजा पहले से ही खोल रखा होने पर डॉ. शुभ ने उस इनसान को लिटाया, और गाड़ी भगाते हुए मुंबई ले आया।

   डॉ. शुभ को रात के तीन बजे अस्पताल में किसी मरीज के साथ आते देख सबके सब एलर्ट हो गए। भागा दौड़ी शुरू हो गई। स्ट्रेचर पर एक ओर वह बेजान सा देह था तो दूसरी ओर वह एक साल का बच्चा भी ठंड के मारे काँप रहा था।

   दोनों की ट्रीटमेंट शुरू कर दी गई। और तो और उस औरत को भी तसल्ली दी जाती थीं कि वह फिक्रमंद न हो। डॉ. शुभ के हाथों अब तक सबका भला ही हुआ है। और यक़ीनन इन दोनों का भी भला ही होगा।

   कुछ घंटों की कशमकश के बाद खाँसते इनसान की खाँसी होले होले से कम होती चली गई। और वो सो गया।

   दूसरी ओर बच्चे को भी इन्क्यूबेटर में लिटाकर गरमाहट महसूस करा दी गई।

   हफ़्ते भर में झोंपड़ी वाला वह परिवार कुछ हद तक तंदुरुस्त होता जाने लगा। औरत भी अपलक दोनों की सेवा में दिन-रात तैनात नर्सिस के रहते भी चिंतित ही रहती थीं। और बार बार अस्पताल के कम्पाउंड में नीम के पेड़ के तले लगे साँईं बाबा के मंदिर में माथा टेकती। और मन ही मन कुछ न कुछ बुदबुदाती रहती। मंदिर के तीन चक्कर काटते हुए कभी डॉ. शुभ तो कभी आसमान की ओर देख धन्यवाद कहती।

   दसवें दिन सुबह औरत का पति एकदम ही ठीक होकर अस्पताल में टहलते हुए डॉ. शुभ की वाह वाही करते थकता न था। और तो और बच्चा भी ख़ुशगवार होकर चहक रहा था।

   एहसान मानते हुए वह परिवार बार बार डॉ. शुभ के पैरों पर लेटे जा रहे थे। और अपनी झोंपड़ी सँवारने एवं घर लौटने की बात दोहरा रहे थे। सांत्वना देते हुए शुभ ने उन्हें "कल चले जाइयेगा," कहा।

    डॉ. शुभ और मायरा ने उन्हें अपने घर आने का न्यौता दिया और डिस्चार्ज करते ही मायरा अपने साथ शुभ के घर ले गई।

   उनकी आवभगत कर मायरा ने दोनों को इसी घर में परमैंटली स्थायी करवा दिया एवं उस पति को उसकी ईमानदारी के तहत ड्राइवर की और उस औरत को रसोईघर सँभालने देकर एक गिलास दूध और 2 कप अदरक वाली चाय का कर्ज़ चूकता कर दिया।



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