दर्द कोभी दर्द होने लगा 2
दर्द कोभी दर्द होने लगा 2
हर दिन दीना थकाहारा दीना घर आता ,लड़कियाँ देख गुस्सा भर जाता। छठवी लड़की को देख क्रोध सातवे आसमान पर चढ जाता। मन ही मन उसके मरने की कामना करता। वह बेटी अपने पिता को देख अब मुस्काने लगी जो जानती ही नहीं कि उहका अपना पिता ही उसका शत्रु है।बच्ची चाहे कितनी भी रोये माँ के कानों में आवाज न जाती। बड़ी बहिने ही उस मासूम को कंधे पर लिये घूमती। दूध भी तब ही पिलाती जो दूरु बहने कहती- " अम्मा बड़ी देर से रोवे ये, तनिक दूध दै, दे- सबसे बड़ी बहन ने डरते - डरते कहा। जानती थी अभी अम्मा के हाथ पर चलेंगे और साथ में मुँह। हुआ भी वही- चिल्लाकर बोली कमबख्तों क्यों छाती पै चढी जा रही हो, मर जायेगी जा जो दूध न पिबे। अरे! पाने डाल दे मुँह में। " मरती भी नाय जाने का खाय आई है, बड़ी सखत जान है जाकी। और इव देखा न ताव चार माह की बच्ची के जोर झापड़ दे मारे। साद में बड़ी बिटिया भी पिट गई। माँ का क्रोध देख बाकी लड़कियाँ दुबक गई। बड़ी बहन थोड़ी देर सुबकती रही। बाकी चारों भी बहन के पास आकर डर से बैठ गई. कंधे पर उनके नन्हे हाथ थे, बड़ी बहन ने आँसू पोछे। बिखरे बाल समेटे उन चारों को अपनी बाँहों में समेट लिया। बच्ची अभी भी रो रही थी। ललिया ने अपने छोटी बहन से कटोरी में दूध मँगाया और चम्मच उस बच्ची के मुँह में डाल दिया। दूध पीकर बच्ची ललिया के गोद में सो गई। ललिया उठी बच्ची को गोद में उठाया और बाकी चारों को भी अपने पीछे आने का संकेत किया। सब पीछे -पीछे चल दी। एक ही कोठरी है घर में, बड़ा सा बरामदा और एक आँगन है, जहाँ नीम का पेड़ लगा है। बच्चे गर्मियों में वही नीम खेलते रहते। अभी हल्की ठंड थी तो ललिया ने उस बच्ची को कोठरी चादर उढा के सुला दिया। बच्ची ललिया को ही माँ- बाप समझती। इसलिए उसे देखकर हँसती कभी, जब ध्यान न देती तो रोने लगती। ऐसा नहीं था रामवती और दीना पहले से ऐसे थे। बेटे की चाहत और लगातार लड़कियों के होने से अब व झुंझुलाने लगे। इस बच्ची ने मानो उनकी आस ही तोड़ दी।
