दर्द को भी दर्द होने लगा
दर्द को भी दर्द होने लगा
रामवती की चीखने की आवाज बाहर तक आ रही। बीड़ी सुलगाता दीना सोच रहा है अबकी लड़का होगा। पाछे पाँच लड़की जनी । कहत हैं पाँच पै बेटा हुए। यह सब सोचता जा रहा और बीड़ी सुलगाता जा रहा। भीतर से रामवती की तेज चीखे ऐसी मालूम होती की रामवती अब न बचेगी। गाँव की दो चार औरत जचकी के लिए आई हुई थी। लगभग एक घंटे बाद रामवती ने बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के रोने की आवाज सुन दीना खुश, हुआ. दरवाजा खुलते ही तेज कदमों से कमरे की ओर लपका। दाई ने बिना लाग-लपेट घोषणा कर दी" छोरी आई है, जाको भाग न खुलेगो" दीना वही धम्म से बैठ गया, सारा उत्साह जाता रहा। ऐसा महसूस हुआ जैसे हृदय पर किसी ने पचास किलो का भार रख दिया हो। अचानक जाने क्या सूझी दौड़कर कमरे में गया और बच्ची को लाकर जोर से फेंकने चला। पर दाई ने फुर्ती दीना से बच्ची अपनी गोद में खींच ली। सम्भवतः उन्हें दीना के कृत्य का कुछ -कुछ आभास हो गया। दीना फिर बच्ची परबाज की तरह झपटा परंतु दाई अब पूरी तरह सजग थी। एक हाथ से उसने दीना को धक्का दे दिया। जो दरवाजे के चौखट से टकरा दूर जा गिरा। तब तक गाँव के लोगों ने उसे पकड़ लिया और समझाने लगे उसको उसके भाग्य का दोष गिनाने लगे। चित कुछ शांत हुआ तो ईश्वर की लीला कह, मन को समझाया और भाग्य पर छोरी जनने का ठीकरा फोड़ा। कुछ बात तो उसकी भी ठीक जान पड़ती अगर भाग्य में होता तो ईश्वर उसे पुत्र अवश्य देता। बैठे -बैठे वह वहीं रोने लगा जब जी भर आता तो ईश्वर को कोस लेता।नीयति से कौन जीत सका भला। रामवती ने करहाते करवट बदली नजर बच्ची पर पड़ी तो खिन्न हो गई। मुँह दूसरी ओर घुमा लिया। बच्ची भी बड़ी ढीठ लुढककर रामवती के पास पहुँच गई। रामवती ने खिन्न मन से दूध पिलाया और सुला दिया। जचकी के दर्द से ज्यादा इस बात का दर्द था कि छ:- छ: बच्चे पलेंगे कैसे? कभी वह सिर पर हाथ रख रोती कभी घुटनो में सिर दबा लेती।
