दोस्त
दोस्त
जिंदगी में सगे-संबंधियों के बाद अगर किसी का स्थान सबसे पहले आता है तो वह दोस्त ही होता है। दोस्त, जिसके साथ हम अपनी सही या गलत बातें बिना डरे शेयर कर लेते है। फिर स्कूल से भागकर सिनेमा देखना हो या दोस्त का बहाना बनाकर घर वालों को बेवकूफ बनाना हो। हर जगह दोस्त का नाम ही काफी होता है। अब क्योंकि बचपन की दोस्ती में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, खासतौर शैक्षिक काल में। बस होती है तो बालमन की सरल व सौम्य बातें। भले ही सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों के चलते बड़े होकर बचपन के दोस्त आपस में दूर होते जाते हैं। उसके बाद उनका आपस में अलगाव या बेगानापन स्वार्थ को ही दर्शाता है। वरना ऐसी कोई बात नहीं कि वह अपने बचपन के दोस्त को भूल जाएं। तब ऐसे में दोस्ती के कोई मायने नहीं होते। बस जो नहीं भूल वह आने वाली पीढिय़ों केे लिए मिसाल बन जाते है। जैसे श्रीकृष्ण-सुदामा की दोस्ती। अब देखिए कहां श्रीकृष्ण और कहां सुदामा।
अब इनकी दोस्ती पर क्या लिखा जा सकता है। श्रीकृष्ण-सुदामा, बस दोस्ती की अहमयित बताने के लिए इन दोनों नामों के बीच में हाईफन ही काफी है। हाईफन मतलब दोस्ती की डोर, जिससे यह कभी अलग नहीं हो सकते। किसी को सिर्फ अपने स्वार्थपूर्ति के लिए दोस्त बनाया जाएं यह जरूरी नहीं है कि काम हो ही जाएगा। लेकिन नि:स्वार्थ होकर दोस्त बनाया जाएं तो निश्चित तौर पर काम पूरा हो जाएगा। बस एक दोस्त ही होता है, जो वक्त-बेवक्त हर संभव मदद करता है, तब हमको भी उसके प्रति ईमानदार होना चाहिए। कभी खुद ऐसा नहीं करना जिससे दोस्ती में दरार आ जाएं। इन्हीं बातों को लेकर दोस्ती पर किशोर कुमार गाया एक गीत बहुत अच्छा व हकीकत बयां करता है।
जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं मगर
पतझड में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
कुछ लोग एक रोज जो बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
उम्रभर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते …