Kumar Vikrant

Comedy

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दिव्या दर्शन

दिव्या दर्शन

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दिव्या भारती के सहारनपुर आने की खबर ने ढक्क्न प्रसाद उर्फ़ डिप्पी की मुँह मांगी मुराद पूरी कर दी थी, जिस हीरोइन का नाम जपते-जपते उसके सुबह-शाम कटते थे; आज वही हीरोइन उसे दर्शन देने के लिए खुद उसके छोटे से शहर सहारनपुर में पधार रही थी।

चलो मुंबई जाने का झंझट बचा, मौका मिलते ही शादी की बात भी चला लूँगा......फिर दिव्या भारती के साथ खिसक लूँगा मुंबई की और, कौन रहे इस छोटी सी जगह में.......कमबख़्तों ने मेरे टेलेंट की कभी कदर नहीं की, क्या जरूरत पड़ी है मुझे भी इस शहर और शहर में रहने वालो के बारे में सोचने की, एक दिन सब सलाम करेंगे मुझे और दिव्या जी को......जैसी बाते सोचता हुआ ढक्कन प्रसाद सड़क पर झूमता हुआ चला जा रहा था, उसके छोटे कद, भारी वजन और काले रंग के कारण वो काले रंग की फुटबॉल जैसा लग रहा था जो सड़क पर लुढ़क रही थी।

"क्यों बे कहाँ जा रहा है मस्त हाथी की तरह झूमता हुआ?" मुरली की फ़टे बांस जैसी आवाज से उसकी तन्द्रा भंग हुई, जो साइकिल पर टंगा न जाने कहाँ से आ टपका था। 

"पटेल नगर...... तुम्हारी भाभी से मिलने......." ढक्कन प्रसाद ने क्रोधित स्वर में जवाब दिया।

"संभाल के जइयो बेटे, तुम्हारे मामा लट्ठ लिए बैठे है रास्ते में......" मुरली हंस कर बोला।

"अबे वो तुम जैसे आवारा लोगों को दिव्या जी दूर रखने के लिए है, हम तो उनके बरसो पुराने आशिक है, हजारो चिट्ठियों के जरिये उनसे अपनी मोहब्बत का इजहार कर चुके है......" ढक्कन प्रसाद ने चलते-चलते जवाब दिया।

"कभी जवाब तो दिया नहीं तेरी चिट्ठियों का दिव्या जी ने.......?" मुरली साइकिल पर टंगा-टंगा बोला।

"अबे, दिव्या जी के पास तुम फालतू लोगों की तरह फालतू टाइम नहीं है कि हर चिट्ठी का जवाब दे, उन्होंने मायापुरी में छपे अपने इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें अपने चाहने वालो की हजारों चिट्ठियां मिलती है....और वो भी उनसे बहुत प्यार करती है। तो बेटे हम से बड़ा चाहने वाला कौन है? अब टाइम खोटा न कर, फुट ले यहाँ से।" ढक्कन प्रसाद उखड़ते हुए बोला।

"ठीक है बेटे भाभी जी से मेरी नमस्ते भी बोल देना......" कहते हुए मुरली साइकिल चलाते हुए तेजी से आगे निकल गया।

"बकवास मत कर....... कल मेरा नाम होगा और तुम जैसे फटीचर जलते रह जाओगे; चल फूट ले यहाँ से......" ढक्कन प्रसाद गुर्रा कर बोला।

पंद्रह मिनट बाद ढक्कन प्रसाद पटेल नगर की उस बिल्डिंग के सामने खड़ा था जिसमें दिव्या भारती के होने की खबर थी।

वो शान के साथ के साथ बिल्डिंग के अंदर जाने वाले गेट में जा घुसा।

"कहाँ घुसा आ रहा है?" बिल्डिंग की लॉबी में बैठे तीन पुलिस वालो में से एक ने घुड़क कर पूछा।

"दिव्या जी से मिलना है.......वो मुझे जानती है........" ढक्कन प्रसाद बड़े गर्व के साथ बोला।

"बेटे तेरे जैसे जान-पहचान वाले बाहर सड़क पर खड़े है; वही जा कर खड़ा हो जा नहीं तो इतने लट्ठ मारूँगा कि न खड़े होने लायक बचेगा और न बैठने लायक......" वही पुलिस वाला गुर्रा कर बोला।

खिसियाया हुआ ढक्कन प्रसाद बिल्डिंग से बाहर आकर सड़क पर खड़ा हो गया, वहाँ वो अकेला नहीं था, उसके जैसे बीस-पच्चीस लोग और खड़े थे और सामने के बिल्डिंग की बालकनी की तरफ टकटकी लगाए देख रहे थे। कभी-कभी उस बालकनी में एक लंबी-तगड़ी लड़की आती और कुछ उठाकर अंदर घर में चली जाती, उसे देख कर सड़क पर खड़ी भीड़ में जोश आ जाता।

अगली बार जैसे ही लंबी-तगड़ी लड़की बालकनी में आई तो ढक्कन प्रसाद चिल्ला कर बोला, "दिव्या जी....... मै डिप्पी; तुम्हारा यार……."

उसकी फटे बांस जैसी आवाज हवाओं में गूंज उठी लेकिन उस लड़की पर कोई फर्क न पड़ा।

ऐसा दो तीन बार हुआ तो ढक्कन प्रसाद बेचैन हो उठा और उसकी दो उँगलियाँ उसके मुँह में गई और उसके होटों से एक तेज सिटी की आवाज हवाओं में गूँज उठी। 

सिटी की आवाज से वो कद्दावर लड़की विचलित हुई और कड़क आवाज में बोली, "हवलदार, देखो कौन बद्तमीज है?"

आवाज में जादू था, बिल्डिंग के अंदर से तीनों पुलिस वाले हाथों में डंडे लिए दौड़कर बाहर आये और भीड़ पर टूट पड़े। डंडे पड़ते देख भीड़ भाग खड़ी हुई, लेकिन अपने भारी वजन की वजह से ढक्कन प्रसाद ज्यादा दूर न जा सका, उसे दो पुलिस वालो ने पकड़ा और तीसरा वाला उसपर डंडे बरसाने लगा। ज्यादातर डंडे उसके हिप पर पड़ रहे थे और उसके मुँह से दर्द भरी चीखे निकल रही थी।

वो कद्दावर लड़की बालकनी से ये तमाशा देख रही थी। जब पंद्रह से ज्यादा डंडे ढक्कन के हिप पर पड़ गए तो वो लड़की अपनी कर्कश आवाज में बोली, "इतना ठीक है; इस बदमाश ने ही सीटी मारी थी।"

लेकिन पुलिस वाला रुका नहीं और डंडे बरसाता रहा, पुलिस वाले को रुकता न देख ढक्कन प्रसाद उसके पैरो में पड़ गया और दोबारा उस गली में न आने की फरियाद करने लगा। पुलिस वाले का दिल पसीजा और उसने उसे एक जोरदार लात मारकर गली से बाहर जाने का रास्ता दिखाया।

तीन दिन बाद ढक्कन प्रसाद फिर उसी सड़क पर फुटबाल की तरह लुढ़कता हुआ जा रहा था।

"क्यों बेटे हो गई भाभी से मुलाकात?" मुरली की आवाज सड़क पर गुंजी, आज फिर वो अपनी खटारा साइकिल पर टंगा हुआ था।

"हो गई, तुझे क्या तकलीफ है जो मेरा पीछा कर रहा है?" ढक्कन गुस्से में बोला।

"अबे तेरी मोहब्बत के किस्से तो अख़बार में भी छप गए, देख मैं वही अख़बार लिए तुझे ढूँढता फिर रहा हूँ।" कहकर मुरली अपनी साइकिल से उतरा और खीसे से एक मुड़ा-तुड़ा अख़बार निकाला।

"क्या छपा है अख़बार में?" ढक्कन आश्चर्य के साथ बोला।

"तेरा कारनामा है बेटे, देख......" कहकर मुरली ने अख़बार का पेज नंबर तीन खोल कर ढक्कन के सामने कर दिया।

फोटो और खबर देख कर ढक्कन प्रसाद सुलग उठा। फोटो दिव्या के घर के सामने का था, फोटो में दो पुलिस वाले उसे पकडे हुए थे तीसरा उसपर डंडे बरसाते हुए दिख रहा था। अख़बार में हेडलाइंस थी- सड़क छाप आशिक की दिव्या भारती के घर के सामने पिटाई।

"देख बेटे हो गया ना तेरा नाम......." मुरली हँस कर बोला।

ढक्कन प्रसाद ने गुस्से में अख़बार फाड़ डाला और मुरली को मारने के आगे बढ़ा, लेकिन तब तक मुरली हँसता हुआ अपनी साइकिल पर रफूचक्कर हो चुका था।


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