Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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दिव्य शक्ति (8) ..

दिव्य शक्ति (8) ..

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अनन्या के कॉलेज में मेरे साथ के, साढ़े तीन साल बीते थे। तब मेरी, मास्टर डिग्री पूर्ण हुई थी। 

कॉलेज से जब मैं विदा ले रहा था। अनन्या के नयन अश्रुपूरित थे। 

‘मुझे कॉलेज में देखना’ और ‘मैं उसके साथ हूँ’, अनन्या की यह अनुभूति, उसे अत्यंत संबल प्रदान करती है यह, उसके बिना कहे मैं, अच्छे से जानता था। 

भावुक, मैं भी था। फिर भी इस बात को मैंने, अनन्या से छुपा लिया था, ऐसा सोचकर मैं, अपने को बुद्धिमान समझ रहा था। 

मगर अनन्या की बात ने मेरा यह भ्रम मिटा दिया था। मैं ही दुनिया में, अकेला ही बुद्धिमान नहीं था। 

मेरे कॉलेज के उस अंतिम दिन, अनन्या ने रुआंसी होकर, मुझसे कहा था - 

हम (नारी जाति), अपने मनोभाव चाहें भी तो सर्वथा छुपा पाने में असमर्थ होते हैं। आप (पुरुष) देखिये तो, कितनी सफाई से अपने मनोभाव छुपा जाते हो। 

अनन्या की बात ने, तब मेरे हृदय को छलका दिया था। मैं, मुस्कुरा रहा था, मगर मेरे नम हो गए नयन, सब कुछ बता दे रहे थे। प्रकट में मैंने, कहा - 

अपनी अनूठी शक्ति के साथ, कॉलेज में मेरे ना होते हुए भी आप, किसी तरह असहाय नहीं हैं। 

अनन्या ने कहा था - 

मैं, असहाय ना होकर भी, स्वयं को असहाय अनुभव करती रहूंगी। आपका साथ होना, मेरी अब आदत हो गई है। 

मैंने कहा था - तीन वर्षों की ही तो बात है। तब आप भी पूर्ण डॉक्टर होकर, एक दिन ऐसे ही कॉलेज को विदा कहोगी।

फिर आंखें (मेरी), (उसकी) आँखों से विदा लेते हुए झर झर बह रहीं थीं। 

बाद में यह तीन वर्ष भी बीत गए थे। अब अनन्या, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनन्या हो गई थी। 

मेरे डॉक्टर हो जाने एवं अनन्या के डॉक्टर होने के बीच के इस समय में मैंने, अपना क्लिनिक स्थापित कर लिया था। 

यूँ तो डॉक्टर होने से मैं, अपने सामाजिक सरोकार पूरे कर ही रहा था। मगर दिव्य शक्ति के साथ होने से मैं इतने से ही कहाँ संतुष्ट रह जाने वाला था। मैंने क्लिनिक के समानांतर ही, “नारी सुरक्षा और सम्मान रक्षा” के नाम से अपना एक एनजीओ स्थापित कर लिया था। 

इस एनजीओ कार्यालय में, नियमित रूप से दो घंटे का समय देकर मैं, अवसाद ग्रस्त या/और प्रेम में धोखा खाई लड़कियों, युवतियों तथा पीड़ित पत्नियों की समस्याओं को सुनता था। उन्हें, आवश्यक मनोवैज्ञानिक संबल और मार्गदर्शन प्रदान करता था। जहाँ आवश्यक होता वहाँ, अपने खर्चे पर पीड़िताओं को कानूनी सहायता भी दिलवाता था। 

इस तरह बीते पिछले लगभग सात वर्षों में, दिव्य शक्ति के साथ से, हम दोनों निरंतर प्रेरित रहे थे। 

अनन्या और मैं साथ होकर, अपनी आंखें मिला कर इंद्रधनुषी किरणें उत्सर्जित करते और उनसे, मानव दृष्टि में आये, अति कामुक एवं अनैतिक वासना का जाला साफ़ करने के उपक्रम करते रहे थे। 

हम (अनन्या एवं मैं) जहाँ भी भीड़ भरे कोई आयोजन होते वहाँ, दर्शक के तरह हिस्सा लेते थे। अपनी आँखें मिलाया करते। हमारी आंखें मिलने से स्क्वायर हुई रेनबो रेज़, स्थल में प्रसारित करते थे। जिससे मानव दृष्टि और विवेक निर्मल होते जा रहे थे।

देश समाज में, उत्तरोत्तर रूप से निर्मल हुई मनुष्य दृष्टि से, नारी विरुद्ध अपराधों का ग्राफ क्रमशः नीचे आता जा रहा था। 

अपने इस उपक्रम में, अपने लक्ष्य की दिशा में, उपलब्धि अधिक बढ़ाने के लिए, अनन्या सहित मैं, अरुचिकर कई काम किया करता था। 

हम क्रिकेट मैचों के दर्शक हुए थे। हम, कई धरना प्रदर्शन की भीड़ में शामिल हुए थे। और तो और, कुंभ तथा ईद की नमाज अदा करते श्रद्धालुओं को देखती भीड़ में भी हम शामिल हुए थे। 

अपराधों की कमी से समाज तुलनात्मक रूप से अधिक सुखद हुआ था, मगर कोई नहीं जानता था कि इसके पीछे दिव्य शक्ति, हमें माध्यम बनाकर सक्रिय थी।  

आज अभी, डॉ अनन्या मेरे “नारी सुरक्षा और सम्मान रक्षा” वाले कार्यालय में आई है, स्वयं के हृदय पर हाथ रखते हुए, मुझसे कह रही है - 

डॉ., इस अकेली पड़ गई नारी की समस्या का समाधान कीजिये। 

अनन्या की यह भाव-भंगिमा अत्यंत मन लुभावन है। मन ही मन मैं, उसका प्रशंसक होता हूँ। फिर अपनी हँसी रोकते हुए कहता हूँ - 

आदरणीया, क्या समस्या है आपकी?

अनन्या गंभीरता से कहती है - 

मैं, अभी ही डॉक्टर हुई हूँ। मेरा अपना कोई क्लिनिक नहीं है। मैं, किसी हॉस्पिटल में अप्लाई भी नहीं कर सकी हूँ। अपने चिकत्सीय ज्ञान का लाभ, रोगियों को कैसे प्रदान करूँ, समझ नहीं आ रहा है?

उसके पापा स्वयं एक विख्यात डॉक्टर हैं। फिर भी अनन्या के ऐसे कहने से मैं, समझ चुका था कि अनन्या, मेरे साथ काम करना चाहती है। मुझे, उस के बेचारगी के इस जबरदस्त अभिनय पर, अपनी हँसी रोक पाना कठिन हो रहा था। 

तब अचानक, मुझे अपना प्रथम सपना स्मरण आ गया। फिर मैंने, अनन्या को समस्या का निदान/परामर्श यह कह कर दिया - 

आपको, मेरे साथ केदारनाथ दर्शन को चलना होगा। वहाँ से लौटने पर, आपको, मेरे क्लिनिक में रोगियों के उपचार करने का नियुक्ति पत्र मिल जाएगा। तब आप अपना, कार्यभार ग्रहण कर सकेंगी। 

वास्तव में, मेरे पहले सपने में मैंने, केदारनाथ दर्शन किये थे। मगर अब तक साक्षात दर्शन, कभी नहीं कर सका था। अब जब हम दोनों (अनन्या और मैं) डॉक्टर हो गए हैं तब, यह समुचित अवसर था कि हम, मेरे सपने में दिव्य शक्ति के संकेत को समझते हुए केदारनाथ की यात्रा करें। 

अनन्या ने पूछा - बुकिंग, कब की करानी होगी?

मैंने कहा - अब तक आप, अर्थ अर्जन नहीं कर सकी हैं , अतः इस यात्रा की सारी बुकिंग मैं, करवा रहा हूँ। 

फिर इसके सातवें दिन हम, केदारनाथ मंदिर में दर्शन कर रहे थे।                    

अनन्या ने अपना, ऑटोमेटिक कैमरा साथ लाया था। जब हम आरती कर रहे थे तब अनन्या ने, ऑटो वीडियो शूट मोड पर, कैमरा सामने रख दिया था। 

मंदिर दर्शन उपरान्त जब हम धर्मशाला लौटे तब, हमने कैमरे में वीडियो देखा। 

देखते हुए मैं चौंक गया। वीडियो देखकर आवेशित स्वर में मैंने, अनन्या से पूछा - 

अनन्या, क्या आप एक विशेष नई बात, इस वीडियो में नोटिस कर सकी हो?

अनन्या ने, मुझे हैरानी से देखा और उल्टा प्रश्न किया - आप इतने एक्साइटेड क्यों हो, मैं समझ नहीं पा रही हूँ? 

तब मैंने, अनन्या से वीडियो रि-प्ले करने को कहा। 

फिर अनन्या को मंदिर का वह दृश्य दिखाया जिसमें हम, आरती कर रहे हैं और बीच में, हम दोनों की आँखे मिल जाती हैं … 

(अगला भाग समापन अंक)



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