Saroj Verma

Horror

4.6  

Saroj Verma

Horror

दहशत की वो रातें

दहशत की वो रातें

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बात उस समय की है बी.एड. करने के बाद मेरा बी.टी.सी. मतलब (besic training certificate), में सेलेक्शन हो गया, बस छै महीने की ट्रेनिंग के बाद तुरंत किसी भी गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल में ज्वानिंग हो जाती, मैं बहुत खुश हुई कि चलो अब नौकरी तो पक्की हो गई लेकिन एक समस्या आ गई कि जहां मैं रहती थी उस जगह ट्रेनिंग सेंटर नहीं था, वो था उस जगह के जिले में।

अब इस उधेड़बुन में थी कि जाऊं के ना जाऊं, फिर पापा बोले कोई बात नहीं बेटा, छै महीने की ही तो बात है , मेरे जान-पहचान के है, एक व्यक्ति उनसे बात करके कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमरा मिल ही जाएगा और फिर पैंतीस किलोमीटर का ही तो रास्ता है तुम हर हफ्ते आ-जा सकती हो।

जब पापा ने समझाया तो मैं भी उनकी बात मान गई और बोरिया-बिस्तर बांध कर निकल पड़ी, पापा और छोटा भाई छोड़ने गए, पापा ने कमरे की बात फोन पर ही कर ली थी , तो उन्होंने घर साफ करवा दिया था, वो उस घर के मालिक के मुनीम थे, मकान-मालिक दिल्ली में रहते थे।

    रोडसाइड का घर था, बाहर बड़ा सा लोहे का गेट था, बगल में दीवार पर उसका निर्माण समय लिखा था, लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया, गेट खोलते ही बड़ा सा बाड़ा था और उसके बीचों-बीच एक हैंडपंप लगा था, हम और अंदर आए , अंकल ने ताला खोला, आगे बराम्दा और पीछे दो कमरे, एक कमरा सामने और एक बगल में, अंकल ने मुझे सामने वाला कमरा ना दे कर बगल वाला दिया क्योंकि उसमें एक किचन और एक अटैच्ड बाथरुम था और हां एक पुराना बाथरुम तो बाड़े में ही था, मुझे कुछ अजीब सा लगा लेकिन वहां रहना तो मेरी मज़बूरी थी, उस समय तो मैंने वहां रहने के लिए हां कर दी क्योंकि और कोई ठिकाना भी ना था, अंकल बोले बेटा ये लो चाबियां, मुझे दिल्ली जाना है, मालिक ने संदेशा भिजवाया हैं, कम से कम पन्द्रह दिन लग जायेंगे वापस आने में, अच्छा अब मैं चलता हूं, और अंकल चले गए।

समान रखकर हमने खाना खाया जो मम्मी ने आते वक्त बांध दिया था और खाना खाकर हम बाजार गये कुछ जरूरी समान लाने फिर पापा और भाई चले गए।

मैं अकेली कमरे में थी और शाम हो गई थी फिर सोचा सो जाते हैं, खाना देर से खाया था तो कुछ ज्यादा खाने का मन ना था तो मैंने बिस्तर बिछाया और लेट गई, मन तो कर था कि मम्मी-पापा से बात करूं लेकिन उस समय आजकल की तरह फोन नहीं होते थे, ले दे के लैंडलाइन होते थे, वो भी गिने चुने, बस मुझे कब नींद आ गई कुछ पता नहीं चला।

लेकिन आधी रात के वक्त मुझे कुछ पायल के छनकने की आवाज आई, मैंने लाइट बंद नहीं की थी, मैंने अपनी हैंडवॉच देखी तो रात के लगभग ढाई बज रहे थे, मैंने सोचा कौन है तो मेरे कमरे के पीछे तरफ से आवाज़ आ रही थी, मैंने हिम्मत करके थोड़ी सी खिड़की खोली तो देखा पीछे एक गली है और एक घना सा बरगद पेड़ हैं और उसके नीचे कोई कुंआ था और एक औरत लम्बा सा घूंघट किए हुए कुंए से पानी भर रही है।

 मैंने सोचा इतनी रात गये, कौन पानी भरता है? फिर मैंने सोचा मुझे क्या लेना-देना? और मैं सो गई, आंख खुली तो चीड़ियां चहचहा रही थी, मैंने घड़ी देखी तो सुबह के साढ़े पांच बज रहे थे, उजाला हो आया था फिर अचानक मुझे रात वाली घटना याद आ गई, मैंने खिड़की खोली, मेरे तो होश ही उड़ गये, वहां केवल गली थी ना तो बरगद का पेड़ था और ना कुआं, मैं परेशान फिर सोचा शायद सपना होगा, लेकिन सपना कैसे?

सुबह-सुबह पानी बाथरुम में सात से नौ आता था और शाम को आता ही नहीं था इसलिए हैंडपंप से पानी लाना पड़ता था , मै बाहर बाड़े में पानी लेने आई, हैंडपंप चलाकर पानी खींच ही रही थी कि गेट के बाहर आवाज आई, शायद पड़ोस में दूधवाला दूध देने आया था, दूध की जरूरत मुझे भी थी तो मैंने गेट खोला, देखा तो एक बूढ़ा सा व्यक्ति आवाज लगा रहा था,  मैंने उन्हें देखकर आवाज लगाई, अरे काका जरा सुनो, मुझे भी आधा किलो दूध मिल जाएगा क्या?

हां, काहे नहीं बिटिया, उन्होंने कहा।।

मैं बर्तन लेकर आती हूं, मैने उनसे कहा।।

मैं बर्तन लेकर लौटीं तो उन्होंने पूछा___

बिटिया इहां तुम्हे रहे का कौन बताया है, कौन्हो और भी तुम्हरे संग है कि अकेली हो।

मास्टरनी की पढ़ाई करने आए हैं काका और अकेले ही रह रहे हैं, मैंने कहा।

और काका थोड़े परेशान हुए, कहा कल आते हैं बिटिया, अपना ख्याल रखना।

मुझे थोड़ा अजीब लगा कि अपना ख्याल रखना।

मेरे पास समय नहीं था, तैयार हुई , चार-पांच परांठे बनाये, खाए और चलीं गईं training centre, रास्ते में p.c.o. दिखा तो मैंने घर पर बात कर ली , एक लड़की से अच्छी जान-पहचान भी हो गई training centre में, लौटते समय बाजार से कुछ सब्जियां खरीदी और आकर खाना बनाया और पढ़ने बैठ गई।

रात के दस बज गए, किताबें बंद करके मैं सो गई।।

अचानक मुझे किसी के हंसने की आवाज़ आई, घड़ी देखी तो फिर रात के लगभग ढाई बज रहे थे लेकिन इस बार आवाजें कहीं और से आ रही थी, मैंने दरवाजा खोला तो बगल वाले कमरे से आवाजें आ रही थी और कमरे की लाइट जल रही थी, मैंने खिड़की से देखा तो कमरा एकदम नया, रोशनी से जगमगा रहा था और घूंघट में वही कुंए वाली औरत थी और उसके सिर्फ़ हाथ और पैर दिखाई दे रहे थे जो कि बहुत सुंदर थे, हाथों की कलाइयों में लाल -लाल चूड़ियां और पैरों में घुंघरू वाली पायल और एक आदमी बैठा था बगल में जिसका चेहरा नहीं दिख रहा था।

  उस औरत ने खिड़की की तरफ मुंह फेरा और मुझे वहां देखकर उसने अपना घूंघट हटाया तो मैं देख कर डर गई इतना भयानक गला हुआ चेहरा, लाल डरावनी आंखें मैं बाहर की तरफ भागी लेकिन मुझे दरवाजा ही नहीं दिखा, सब बदला -बदला लग रहा था, हैंडपंप गायब था, उसकी जगह एक बहुत बड़ा फब्बारा था, मैंने उसके पानी से मुंह धोने की कोशिश की, लेकिन पानी का रंग एकदम लाल खून की तरह और मैं बेहोश हो गई।

सुबह दूधवाले काका की आवाज से जगी, मैं वहीं बाड़े में ही रात-भर पड़ी रही मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, दूधवाले काका ने मुझे परेशान देखकर पूछा भी कि का हुआ बिटिया?

लेकिन उस समय तक मुझे खुद नहीं पता था कि कल रात जो हुआ वो सपना था या हकीकत।

जैसे-तैसे तैयार हुई, चाय बनाई , सब्जी-रोटी बनाई और training centre चलीं गईं, वहां दिनभर बिताने के बाद शाम को जानकी जिससे मेरी अच्छी जान-पहचान हो गई थी, मेंरी सहपाठी, उसने कहा कि उसके मकान-मालिक परिवार सहित एक दिन के लिए शादी में गये है, बहुत बड़ा घर है, कहो तो हवेली है , मुझे अकेले डर लगेगा, आज रात मैं तेरे साथ रूक जाऊँ।

मैं तो यही चाहती थी, उसने मेरे मन की बात कह दी, उसने कहा कि अपने कपड़े साथ लेकर आई है और मेरे कमरे से ही सुबह तैयार होकर चली जाएगी, मैंने कहा ठीक है।

हम लोग सब्जियां लेकर कमरे पहुंचे, हाथ-पैर धोकर कपड़े बदलकर खाना बनाने में लग गए फिर खाना खाकर बर्तन धोने के लिए handpump से पानी भरा और बर्तन धोने के बाद दोनों बाल्टियां भरकर रख ली, थोड़ी देर बात करने के बाद थोड़ी पढ़ाई की , जानकी ने कहा तू खटिया पे लेट जा, मैं नीचे चटाई पे लेट जाती हूं, बस एक तकिया और ओढ़ने के लिए एक चादर दे दे और सोते-सोते ग्यारह बज गए।

फिर रात को ढाई बजे एक अजीब घटना हुई, मुझे लगा जानकी बाथरूम गई है और फिर पानी पीने किचन में लेकिन वो किचन से बाहर नहीं निकली , मैं नींद में थी बहुत देर हो गई तो मैंने आवाज़ दी, जानकी........जानकी...

तो उसने कहा, सोने दे ना , अभी सुबह नहीं हुई है

मैंने खटिया से नीचे देखा तो वो सो रही थीं, लेकिन मेरी नींद उड़ गई, अब तो मुझे उस जगह बिल्कुल नहीं रहना था।

जैसे-तैसे सुबह हुई , जानकी और मैं तैयार होकर training centre चले आए, लेकिन मैंने जानकी से ना कुछ पूछा और ना कुछ बताया।

दिनभर बीतने के बाद फिर शाम आई , आज रात तो मुझे अकेले ही रहना था, कमरे पहुंची, अनमने मन से खाना बनाया और खाकर पढ़ने बैठी लेकिन पढ़ने में मन कहां लग रहा था, बैठे-बैठे किसी भी आवाज से चौंक जाती, बस मैंने बिस्तर लगाया और लेट गई फिर ऐसे ही सोचते-सोचते पता नहीं कब नींद आ गई।

फिर लगभग ढाई बजे कुछ आहट हुई, मुझे कमरे से बाहर नहीं आना चाहिए था लेकिन पता नहीं मैं खुद ही बाहर की ओर खिंची जा रही थी, मैंने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर आईं तो देखा बगल वाले कमरे की आज भी लाइट जल रही है और खिड़की खुली है बहुत ही रोशनी है कमरे में, घूंघट में वही औरत थी और बगल में वही व्यक्ति पीठ किए हुए बैठा था लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ कि बैठे ही बैठे उस व्यक्ति की गर्दन मेरी तरफ मुड़ी, इतना भयानक चेहरा था उसका, माथे से खून ही खून बह रहा था, चेहरा पूरा कटा हुआ था, चेहरे पे बहुत घाव थे और उसकी आंखों में पुतलियां ही नहीं थी, बैठे ही बैठे उसने अपना हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाया , हाथ बस लम्बा होकर धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ रहा था , बस मैंने एक ही पल में खिड़की बंद कर दी, कमरे में जाकर , दरवाजा बंद करके अंदर बैठ गई, डर के मारे माथे से पसीना बह रहा था, पानी पीकर मैं बिस्तर पर लेट गई लेकिन नींद नहीं आई, मैं बस सुबह होने का इंतजार कर रही थी, अगले दिन शनिवार था तो मैंने घर जाने की सोची।

सुबह हुई तो दूधवाले काका ने आवाज लगाई, मैं बाहर आई मुझे परेशान देखकर काका ने पूछा, का हुआ बिटिया, तबियत ठीक नाही है का?

फिर मैंने सारी रात वाली घटनाये काका को बता दी,

काका बोले, हम तो पहले दिन ही टोके थे कि इ घर अच्छा ना है, बिटिया तुम आज ही अपने पिता जी को बुला लो, इ घर में ना रहो।

तो काका इतनी जल्दी दूसरा कमरा कहां मिलेगा? मैं ने पूछा।

चिंता ना करो बिटिया, हमारा घर है ना, घर तो बड़ा है लेकिन कच्चा बना है, दो कमरे पक्के बने हैं, स्नानघर और शौचालय भी है, किराये से देने के लिए बनवाये रहे, चार पढ़ने वाले लडके रहते थे, उनके इम्तिहान हो गए तो खाली करके चले गये, अगर तुम्हें कौनो आपत्ति ना हो तो रह सकत हो, घर मा, हमार घरवाली , बहु और बेटा है, बिटिया का भी ब्याह हो गया है।

मैं तुरंत p.c.o. गई पापा को phone करके सब बता दिया, दोपहर तक मम्मी-पापा दोनों आ गये, थोड़ा सा समान था तो रिक्शे से पहुंच गया।

फिर काका ने मम्मी-पापा से उस पुराने कमरे के बारे में बात करना शुरू किया, उन्होंने कुछ ऐसा बताया कि वो सब सुनकर मुझे बहुत दु:ख हुआ।।

   काका ने कहानी सुनानी शुरु की___

बाबू जी !बहुत समय पहले की बात है, हमारे दादा-परदादा के समय की , शायद अंग्रेजो के समय की,

जो उस घर के मकान-मालिक हैं ना तो जो उनके परदादा थे, हुआ यूं था कि उनके पहला बेटा हुआ, तो बहुत बड़ा जश्न हुआ, रूपए-पैसो की कोई कमी नहीं थी, उस समय के बहुत बड़े व्यापारियों में उनकी गिनती होती थीं, सारे शहर और रिश्तेदारों का रात्रिभोज था, किसी मशहूर नर्तकी को भी नाचने और गाने के लिए बुलाया गया था और सेठ जी को वो नर्तकी पसंद आ गई , उन्होंने उससे शादी की इच्छा जाहिर की, लेकिन नर्तकी किसी और को पसंद करती थी, उसने सेठ जी की बात नहीं मानी।

सेठ को बहुत गुस्सा आया और उसने नर्तकी से बदला लेने की सोची और उसने एक साज़िश रची, वो नर्तकी के पास गया और बोला मुझे माफ़ करना, मैंने तुम्हें गलत समझा, तुम जिसको चाहती हो , उसी से शादी करो, लेकिन ये नाचना-गाना छोड़ दो।

नर्तकी ने कहा, मुझे सब लोग वहां जानते हैं कि मैं क्या काम करती हूं, मुझे समाज स्वीकार नहीं करेगा, मेरा भी मन करता है कि मेरा घर हो, बच्चे हो , मैं भी एक साधारण गृहिणी वाला जीवन जीना चाहती हूं लेकिन चाहकर भी नहीं कर सकती।

सेठ जी ने कहा, बस इतनी सी बात है, तुम ऐसा कर सकती हो जहां मैं रहता हूं वहां कस्बे से दूर मेरा एक गोदाम हैं, तुम वहां रह सकती हो और तुम्हें वहां कोई पहचानेगा भी नहीं।।

फिर काका ने कहा कि ये वही जगह थी, जहां बिटिया रह रही थी, पहले वहां बड़ा सा बाड़ा था और बाड़े में एक फब्बारा लगा था, गोदाम के पीछे एक गली थी और वहां बरगद के पेड़ के नीचे कुआं था , नर्तकी ने सेठ की बात मान ली और अपने प्रेमी से शादी कर ली और वही रहने लगी।

उस जमाने में स्नानघर बाहर ही होते थे तो आप लोगों ने देखा होगा, एक पुराना सा स्नानघर बांड़े में है, वो उसी को इस्तेमाल करती थीं और पीछे की गली के कुंए से पानी भरती थी, इसलिए बिटिया को पहले दिन कुंए से पानी भरती हुई दिखी थी।

फिर एक दिन सेठ जी आए, कुछ लठैतो के साथ, सेठ जी कहा अब तो तुम मेरे सहारे हो और तुम्हें मेरी बात माननी होगी, तुम्हें मुझसे शादी करनी होगी, लेकिन वो नहीं मानी तो सेठ ने लठैतो से कहा कि इसके पति को मार दो, बाड़े में ही लठैतो ने लाठियों से उसके पति का सर फोड़ दिया , उसे बहुत ज्यादा चोट लगी और वो मर गया, नर्तकी ने खुद को कमरे में बंद कर लिया, कैरोसीन डाल कर आग लगा ली, जब तक सेठ के लठैतो ने उसे बचाया वो बुरी तरह झुलस चुकी थीं, थोड़ी-थोड़ी सांसें चल रहा थी।

लेकिन सेठ ने लठैतो से कहा कि इसे पीछे कुंए में फ़ेंक दो, रातों-रात कुंए की बाउन्ड्री तुड़वाकर उसे मिट्टी से भरकर समतल कर दिया गया, दूसरे दिन बरगद के पेड़ को कटवा कर उस कुएं के ऊपर पक्की रोड बनवा दी, फब्बारा तुड़वाकर उसके नीचे पति को दफना दिया, लठैतो को खूब रूपए देकर उनको किसी को कुछ भी ना बताने को कहा।

कहानी सुनने के बाद मम्मी-पापा शाम को घर लौट गए, मम्मी खाना लाई थीं, मैं वहीं खाना खाकर सो गई, दूसरे दिन संडे था , सोचा थोड़ा देर तक सोऊंगी।

लेकिन सुबह चार बजे मेरी आंख खुली, कुछ आवाज सुनाई दी, मैंने खिड़की से बाहर देखा , कोई औरत घूंघट में भैंस का दूध दूह रही थीं, मुझे फिर डर लगा, थोड़ा सा उजाला होते ही मैंने काका से कहा तो काका बोले....

हमार बहु होई, सुबेरे चार बजे दूध दोहती है, तभी तो हम छै बजे तक घर-घर जाकर दूध बांट पाएंगे।

मैं ने कहा, ठीक है काका

फिर दूसरे दिन सुबह चार बजे फिर मेरी आंख खुल गई, मैंने खिड़की से देखा कि भैंस के पास दो लोग हैं , मुझे लगा काका-काकी होंगे, भैंसो की साफ-सफाई कर रहे होंगे, मुझे भी काकी का चेहरा देखना था क्योंकि मै अभी तक उनसे नहीं मिली थी लेकिन जैसे ही उन्होंने मेरी तरफ अपना चेहरा घूमाया, औरत का वहीं गला हुआ चेहरा और लाल आंखें, और आदमी का वहीं खून से लथपथ चेहरा, बिना पुतलियों की आंखें।

अब क्यो, मैंने कमरा भी छोड़ दिया, ये मेरा पीछे करते यहां भी आ गये, मैंने सोचा अब घर ही चली जाती हूं , शायद पीछा छूटे।

तैयार हुई, काका को बताया मैं घर जा रही हूं, सुबह सात बजे की बस मिल गई और नौ बजे तक मैं घर पहुंच गई, खाना खाया, घर में , मै और मम्मी थे, भाई College गया था और पापा office गये थे, मम्मी को भी कहीं जाना था, उनकी कोई सहेली बीमार थी, उनसे मिलना था, मुझसे बोली कि तू भी चल,

मैंने मना कर दिया, मम्मी से कहा कि मुझे सोना है और आप बाहर से ताला लगाकर जाओ, ताकि मुझे कोई disturb ना करें, मम्मी बाहर से ताला लगा कर अपनी सहेली से मिलने चली गई, मैं सो गई।

जब उठी तो दोपहर के लगभग दो बजे होंगे, मुझे कुछ आवाज आई, आंखें खोली तो, मम्मी मेरी अलमारी में मेरे कपड़े लगा रही थी, उनके बाल खुले थे और उनकी पीठ मेरी तरफ थी।

मैंने उनसे पूछा?आप कब आई? उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया फिर मैंने उनसे time पूछा तो उन्होंने तब भी कुछ जवाब नहीं, पता नहीं कुछ आवाज आ रही थी जैसे उन्हें जुकाम हुआ हो, मैंने पूछा भी कि मम्मी ज़ुकाम हो गया क्या? फिर भी कोई जवाब नहीं , फिर मैंने पानी मांगा, तो वो बिना मेरी तरफ मुड़े पानी लेने चली गई, मैं खिड़की से बाहर झांकने लगी, मम्मी पानी लाई।

मैंने जैसे ही पानी हाथ में गिलास लिया, वो पानी नहीं खून था,

जैसे ही मैंने मम्मी से पूछना चाहा कि ये क्या हैं, उनका चेहरा देखकर मेरे मुंह से जोर की चीख निकली, वो मम्मी नहीं थी, फिर वही गला हुआ चेहरा और लाल आंखों वाली औरत और गायब हो गई।

थोड़ी देर में मम्मी आ गई, मैंने मम्मी से सब कुछ बता दिया, मम्मी भी परेशान हो गई।

शाम को पापा आए तो मैंने उनको भी बताया तो उन्हें लगा मैंने कोई सपना देखा होगा, इसलिए डर गई।

करीब रात के आठ बजे हमने dinner किया, थोड़ी देर बातें की, फिर सब सोने चले गए, मैं मम्मी के साथ सोई, क्योंकि मुझे डर लग रहा था, मम्मी थकी हुई थीं वो शायद नौ बजे तक सो गई, मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं फणीश्वरनाथ रेणु का मैला आंचल लेकर पढ़ने बैठ गई।

लगभग दस बजे तक मुझे भी नींद आ गई, लगभग ढाई बजे रात में मुझे प्यास लगी, मैं उठी सुराही से गिलास में पानी भरा और पी गई, लेकिन देखा बिस्तर पर मम्मी नहीं थी, मुझे लगा bathroom गई होंगी, मैं बिस्तर पर जैसे ही लेटी तो देखा, कमरे के छत पर मम्मी छिपकली की तरह चिपकी हुई है, मैंने डरते-डरते आवाज दी तो वो पीठ के बल चिपक गई और उनकी आंखे एकदम लाल, मम्मी मेरी तरफ धीरे-धीरे आ रही थी, मैं जोर से चीखी और आंखें बंद कर ली, इतने में पापा और भाई भी आ गये, मेरी चीख सुनकर।

पापा मुझे कह रहे थे कि आंखें खोलो लेकिन मुझे आंखें खोलने में डर लग रहा था, मैंने जब आंखें खोली तो मम्मी ठीक थी और पूछ रही थी कि क्या हुआ?

मैंने सारी बात बताई तो, सबको फिर मेरी बात सपने जैसी लगी, अब तो मैं परेशान कि क्या करूं, किसे बताऊं, ऐसा कौन हैं जो मेरी बात समझेगा।

मैं बहुत परेशान थी, सुबह होते ही तैयार होकर मन्दिर चली गई, वहां एक बूढ़े से पण्डित जी दिखे, मुझे लगा शायद ये मेरी बातों को समझें, मैंने उनसे सारी बातें बताई ।

उन्होंने कहा बेटा ये सब सही हो सकता है, उन्होंने कहा अभी के लिए तुम ये रूद्राक्ष की माला पहन लो, उन्होंने कुछ मंत्र पढ़ें और गंगाजल में माला धुलकर मुझे पहना दी, मैं घर आ गई।

दिन ऐसे ही बीत गया , रात को मैंने मम्मी को अपने पास नहीं सुलाया लेकिन रात में फिर एक अजीब घटना हुई, मेरी कपड़ों की अलमारी के अन्दर से बहुत जोर से ठक-ठक की आवाज आ रही थी, मुझे लगा कोई चूहा हैं, मैंने जैसे ही अलमारी खोली किसी का हाथ आया मेरे गले तक लेकिन मेरा गला नहीं पकड़ा, शायद रूद्राक्ष की माला की वजह से, लेकिन कमरे की छत पर वही घूंघट वाली औरत फिर आ गई, सर्र से नीचे आकर उसने अपनी शक्तियों द्वारा मुझे पटकना शुरू कर दिया, बहुत ऊपर तक ले जाती और उछाल देती, शोर सुनकर मम्मी-पापा और भाई भी आ गये, लेकिन वो रूक नहीं रही थी, उसने मुझे लहुलुहान कर दिया, शायद रूद्राक्ष की माला पहनने से वो नाराज़ हो गई थीं, तभी भाई दौड़कर आया और गंगाजल का पूरा कलश मुझ पर उड़ेल दिया और वो आत्मा अचानक गायब हो गई।

अब पापा को भी विश्वास हो गया था, तो मैंने पापा को पण्डित के बारे में बताया, सुबह पापा मंदिर गये और पण्डित को सारी बात बताई, पंडित ने कहा, मैं शाम को आपके घर आता हूं, मैं आत्मा से बात करता हूं कि वो क्या चाहती हैं, बस मैं पूजा की सामग्री लिख देता हूं तो आप मंगा लीजिए।

शाम को पूजा की तैयारी हुई पंडित जी ने पूछा शुरू की, आत्मा प्रकट हुई वो भी मम्मी के शरीर में और पंडित ने बातें पूछनी शुरू की।

उसने कहा कि मैं उस सेठ से बदला लेना चाहती थीं लेकिन सेठ के चचेरे भाई ने ही उसकी जायदाद के लालच में हत्या कर दी, तब से हमारी आत्माये उसी गोदाम में भटक रही हैं , हम इस रूप में नहीं रहना चाहते, मुझे और मेरे पति को अब मुक्ति चाहिए, ये लड़की जब वहां रहने गई तो हमें लगा कि इसके सहारे हम मुक्त हो सकते हैं लेकिन ये भी हमें छोड़कर आ गई तो इसके पीछे-पीछे हम भी आ गये, बस हमारा अंतिम संस्कार करके हमारी आत्माओं को मुक्ति दिला दीजिए, हम कभी किसी को परेशान नहीं करेंगे।

और वो गायब हो गई, पंडित जी ने कहा मैं जिले के police station बात करता हूं मेरा भतीजा वहां काम करता है, वो गोदाम से दोनों के अस्थि-पंजर निकलवा देगा और मैं विधिवत उनका अंतिम संस्कार करवा दूंगा और यही किया गया, उस दिन के बाद वो आत्माये मुझे नहीं दिखी।


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