धरा का रक्षक
धरा का रक्षक
आज जम कर बारिस हुई। सभी बड़े खुश हुए क्योंकि भीषण गर्मी से धरती तप रही थी। बारिस के बाद हल्की हल्की हवा चलने लगी, मौसम और भी सुहाना हो गया। इस सुहाने मौसम का आनंद लेने राहुल अपने माता-पिता और छोटे भाई रोहित के साथ पास वाले पार्क में आ गया। सभी बड़े मगन थे।
मम्मी -पापा एक बेंच पर बैठ गए और बच्चे अन्य बच्चों के साथ दौड़-धूप करने लगे। थोड़ी ही देर में रोहित उदास हो आता दिखाई दिया। मम्मी उत्सुकता वश उसकी ओर बढ़ गई। रोहित निकट आते ही बोल पड़ा मम्मी पानी का बोतल देना। झट-पट पानी का बोतल लेकर वह उसी तरफ दौड़ पड़ा जिधर से आया था। सभी ने सोचा शायद किसी बच्चे को प्यास लगी होगी। मम्मी-पापा फिर अपनी बातों में मशगूल हो गए।
थोड़े देर के बाद उनकी निगाह बच्चों को खोजने लगी। सारे बच्चे कहीं दूर चले गए थे। जब वे लोग वहाँ पहुँचे तो देखा बच्चे कुछ पौधों में पानी डाल रहे थे। ऊँचा शेड होने के कारण वहाँ के कुछ पौधे वर्षा के जल से महरूम रह गए थे। वे मुरझा रहे थे। सभी बच्चों ने मिल कर अपने-अपने बॉटल से पानी उनमें डाल कर उनको पुनः हरा कर दिया।
बच्चों को लेकर लौटते वक्त मम्मी ने कहा अब रास्ते में प्यास लगेगी तो मुझसे पानी मत मांगना। कारण तुम खुद जानते हो।
मम्मी की आवाज में खीज थी जो स्पष्ट झलक रही थी। राहुल ने बड़े प्यार से कहा - "मम्मा आज तो पानी हमलोग बचा लेते अपने पीने के लिए मगर ये पौधे मर जाएँगे तो कल हमारे लिए पानी की कमी हो जाएगी। तुम्हें पता है, इन पौधों के कारण ही बारिस होती है। यदि सारे पेड़ पौधे सुख जाएँगे तो बारिस भी नहीं होगी और धरती का जल भी कम होने लगेगा। ये पौधे बारिस भी करवाते हैं और बारिस के पानी को धरती में सहेज कर रखते भी हैं।
पापा राहुल की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे और उन्हें पर्यावरण के अपने इस नन्हे सिपाही पर गर्व हो रहा था। उन्होंने कहा बच्चों अब हमारे पर्यावरण को कोई खतरा नहीं।
वो कैसे पापा..? राहुल बोल पड़ा।
जब हमारे राहुल रोहित जैसे पर्यावरण के नन्हें सिपाही अपने कंधे पर इनके भार को उठाने की जिम्मेदारी ले लिए तो अब डर कैसा।
बच्चों अब हम मिलजुल कर एक अभियान चलाएँगे और बड़ों को जल की बर्बादी से रोकते हुए उन्हें भी नदी, जल संरक्षण से जोड़ेंगे। जब जागो तब सबेरा।
