हवाई यात्रा
हवाई यात्रा
बच्चों को फेसबुक की दुनिया से बाहर निकाल हकीकत में एक दूसरे से आपस में मिलाने को सोच, दादाजी ने गर्मी छुट्टी का बोनस एनाउंस कर दिया - "इस बार छुट्टी में जो घर आएगा उसे लौटने के लिए मैं हवाई यात्रा का आंनद प्रदान करूँगा।"
छोटा राधेश्याम तो कई वर्षों से बॉम्बे में नौकरी करता था। आजकल तो हर स्कूल ही अंग्रेजी स्कूल है और उनके नाम की तो पूछिए मत। राधेश्याम के भी दोनों बच्चे ऐसे ही किसी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते थे। फेसबुक पर केवल अंग्रेजी में ही लिखते थे। इसे देख बड़े बेटे घनश्याम में हीन भावना भरने लगी। एक दिन वो भी विदेश जाकर कमाने की आस में घर से निकल गया। विदेश की नाम पर बॉम्बे के ही किसी स्लम में रहता और राष्ट्रीयता के नाम पर हिंदी में अपने स्टेटस को अपडेट करता और बच्चों से भी करवाता।
दोनों बेटों की काबिलियत पर पिता खूब खुश होते और सभी को अपने बेटों की तरक्की की कहानी सुनाते पर वे अपने बच्चों की सच्चाई भली-भांति जानते थे, आखिर पिता थे।
हवाईयात्रा के नाम पर दोनों बेटे बच्चों के साथ चल पड़े घर। छोटे ने अपनी शान-शौकत दिखाते हुए एसी में टिकट लिया पर बड़े ने जेनरल बोगी में। अब स्टेशन पर दोनों भाइयों की भेंट हो गई। एक शहर में रहते हुए भी बच्चे फेसबुक से बाहर निकल कभी किसी से मिले नहीं थे। अतः उनकी बात-चीत भी फेसबुक के अंदाज में ही हुई। दोनों भाई गले मिले और अपनी-अपनी सुनाने लगे। बड़े ने टिकट कंफर्म नहीं होने की दुःखद दांस्तान सुनाई और पिताजी का मान रखने के लिए अपनी जनरल बोगी की यात्रा को देशप्रेम से भी बड़ा पिता प्रेम, घर प्रेम, अपनी मिट्टी से जुड़े होने का भाव को दर्शाया।
समय पर दोनों अपने-अपने बोगी में बैठे। ट्रेन में बैठते ही घनश्याम के बच्चे इंग्लिश मीडियम का ज्ञान बघाड़ते हुए बिना एसी ऑन हुए ही कम्बल ओढ़ एसी का आंनद लेने लगे और लौटते वक्त हवाईयात्रा की कल्पना में डूब गए।
बेचारे विदेशी बच्चे देशप्रेम, में अपनी जेनरल बोगी की यात्रा को आंनद दायक बता फेसबुक पर स्टेटस अपलोड कर रहे थे। हवाईयात्रा के काल्पनिक खुशी की बात वे लिख नहीं सकते क्योंकि हवाई यात्रा तो उनके लिए आम बात थी।
