आधुनिकता की दलदल
आधुनिकता की दलदल
संदली के हँसते खेलते घर को अचानक किसी की नजर लग गई। माँ क्या बीमार पड़ी पापा भी उदास हो कहीं चल दिए। कितने ढूंढने के बाद पहाड़ की तराई में चट्टान पर गुमसुम बैठे मिले थे। दादा काका सभी के कहने का कोई असर नहीं। वो तो भला हो अल्लारक्खा का जो उसे दाना देने के कारण घर लौटे। एक बड़ा सा चिड़ा जिसे प्यार से सभी 'अल्लारक्खा' कहने लगे थे रामू के हाथों ही दाना खाने लगा था। वह लाख भ्रमण कर आए, जब-तक रामू, दाना न दे वो पेड़ पर जाता ही नहीं। सुबह-सुबह अपनी कर्कश ध्वनि से रामू के साथ पूरे मुहल्ले को जगाता और नभ में विलीन हो जाता। दिन भर कोई उसे नहीं देखता। शाम में जब वो घर की मुंडेर पर बैठता सूर्य की अंतिम किरण मुंडेर को छू नीचे उतरने को आतुर रहती। मुंडेर पर बैठते ही वह रामू को पुकारता और उसके हाथों कुछ भी ले पेड़ के पत्तों में छुप जाता सुबह के इंतजार में।
अल्लारक्खा के इसी प्यार से खींचा रामू घर तो आ गया पर शायद बोलना भूल गया। पत्नी 'कमली' बड़े कष्ट से संदली के बापू पुकार कर थक जाती पर वो कुछ न बोलता और दोनों के नयन टपक पड़ते। संदली अपनी माँ को अभी बताने ही वाली थी कि वो आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाने वाली है और रोहित उसका प्रिय मित्र वहाँ उसके रहने खाने की पूरी व्यवस्था कर देगा। पर माता-पिता की इस हालत से संदली के चेहरे की रौनक ही ग़ायब हो गई। वो समझ ही नहीं पा रही कि ये क्या हुआ क्यों घर में मुर्दनी छा गई।
हार कर कभी कभी वो अपने मन की बात मोबाइल पर रोहित से कर लेती। पड़ोस की जानकी आंटी उसे बहुत प्यार करती थी। घर के हालात से शायद वो परिचित थी। घर को सही करने के लिए वो अक्सर संदली को कहती कब तक अकेली रहोगी बेटा। मन की बात फोन पर पूरी नहीं होती। पर संदली खामोश रह कहती "अकेली कहाँ हूँ आंटी आप सभी हैं न। आपलोगों के साथ से माँ-पापा भी जल्द अच्छे हो जाएँगे। डॉक्टर के अनुसार उन्हें कोई बीमारी नहीं, सिर्फ डिप्रेशन है।"
हाँ बेटा मैं यही कहना चाह रही थी। तुम शादी के लिए हाँ नहीं कर रही। जो लड़का तुम्हारे मम्मी-पापा पसंद करते हैं उसे या तो तुम छांट देती हो या लड़का वाले के यहाँ से ना कर दिया जाता। तुम्हें ही थोड़ा समझौता करना होगा। लड़के खुद देखने में कैसे भी हों उन्हें तो 'हूर की परी' चाहिए संदली का चेहरा स्याह पर गया। बहुत काम है कह उठ गई।
सदा हँसने वाली संदली गुमसुम हो जाने किस चिंता में निमग्न हो यंत्रवत कार्य कर बेखबर कहीं भी बैठ सुस्ताने लगती। शायद उसे अपने से ज्यादा माँ के कष्ट अंदाजा हो जाता।
जिस घर से हमेशा गीत की मधुर स्वर लहरी गूंजती रहती आज कल वहाँ सन्नाटा पसरा रहता। हंसमुख संदली की मुस्कान भी ग़ायब हो गई थी, धीरे-धीरे वो भी बोलना भूल रही थी। जानकी आंटी की अनुभवी आँखें सब समझ रही थी। वे उस परिवार से हृदय से जुड़ी हुई थी, सो सदैव संदली और उसके माँ-पापा का हाल पूछती रहती। कभी-कभी उन्हें मन होता की संदली के पास बैठ उसके दुःख की परत हटा प्यार का मलहम लगा दें। पर उन्होंने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए थे, दुनिया देखी थी अतः बिना संदली से पूछे उसके पास कभी दो क्षण भी नहीं बैठती।
बसंत पंचमी का दिन था। हल्की-हल्की बयार बह रही थी जो अपने में फूलों की खुशबू को भर वातावरण को मोहक बना रही थी। आज जानकी आंटी से न रह गया। जिस घर के पुए सर्वप्रथम पूरे मुहल्ले में खुशबू फैला सबको आमन्त्रित करती थी आज वहीं, पुए की ताइ, चूल्हे का मुँह भी न देख सकी तो जानकी आंटी का मन रो पड़ा और वो संदली से इजाज़त ले उसके पास दो क्षण बैठ उससे बातें करने लगी। बातों ही बातों में उन्होंने कहा, आजकल वो भी कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हैं और कम्प्यूटर के बारे में अपनी उल्टी सीधी ज्ञान से संदली को अवगत कराने लगी। न चाहते हुए भी संदली उनके साथ उनके इस नए ज्ञान का उत्साहवर्धन करने लगी। बातों का सिलसिला चल निकला। फिर कम्प्यूटर से फेसबुक और व्हाट्स एप्प की भी जानकारी और उपयोगिता की बात चल निकली।
जब जानकी आंटी ने फेसबुक से अपने पुराने मित्रों को ढूंढने की बात कही तो संदली ने उन्हें रोहित के विषय में बताया जो उसके स्कूल का मित्र था। उसने भी उसे फेसबुक पर ढूंढा। वो दिल्ली में एक साल रह कर कॉम्पिटिशन की तैयारी किया और आज बहुत बड़ा ऑफिसर हो गया है। कुछ और कहना चाह रही थी पर एकाएक चुप हो गई।
जानकी आंटी उस्की चुप्पी को भांप गई , कुछ और जानने की इच्छा से बोल पड़ी मेरी सहेली चंदा को भी फेसबुक पर उसके स्कूल का फ्रेंड मिला जिसकी बेटी से उसने अपने बेटे की शादी भी तय कर दी है। अगले माह में शादी है। तू भी रोहित को मिलने क्यों नहीं बुलाती? हूँ.. एक धीमी आवाज़ माँ-पापा के स्वस्थ्य होने का इंतजार कर रही हूँ।
जानकी आंटी की बातें और संदली की धीमी सी हूँ.. कमरे के अंदर बैठी कमली को अंदर तक भेद दी शायद रामू को भी। महीनों से गुमसुम कमली और रामू एक साथ चीख पड़े …..नहीं...ये मत करना बेटी.. कमली के आँखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी और उससे दुगने वेग से रामू दहाड़ मार कर रो रहा था।
संदली और जानकी आंटी के पाँव एक जगह जम गए। हतप्रभ दोनों कमली और रामू को देख रहे थे। एक क्षण रुक कर संदली कभी माँ के आँसू पोछती तो कभी पिता को संभालती। जानकी आंटी का तीर सही जगह लग चुका था। अब वो समझ रही थी कि इन अश्रुधारा के संग दोनों का संताप पिघल कर निकल जाएगा।
नई दुनिया की नई तकनीक का उपयोग सही तरह से न करो तो सब कुछ स्वाहा….।
रामू बड़े उत्साह से घर में नया नया लैपटॉप लाया था। बच्चों से ज्यादा बड़ों ने उसे अपना साथी बनाया। बच्चे तो स्कूल में लैपटॉप के अच्छे मित्र बन चुके थे। उनकी नजर में लैपटॉप न जानने वाले अनपढ़, पिछड़ा और मूर्ख थे। इसलिए कमली और रामू ने आपस में निश्चय किया कि अब वे लोग भी लैपटॉप में मास्टर बन जाएंगे। टिप टाप करते करते बहुत कुछ सीख गए थे। अब तो फेसबुक पर नित्य नए दोस्त बनने लगे थे। रामू ने अपने बचपन के एक मित्र को फेसबुक पर देख मित्रता का आमंत्रण दे दिया। वो मित्र उस आमंत्रण को फेसबुक तक ही सीमित न रख रामू के घर पत्नी के संग आने की इजाज़त ले रात में खाने पर आ गया, रात आठ बजे के बदले वो शाम छह बजे ही अकेले आ धमका। पत्नी को संग न देख जब कमली ने प्रश्न किया तो जवाब दिया- थोड़ी देर में पहुँच रही है ऑफ़िस में देर हो गई। रामू मित्र के लिए मिठाई लाने गया था। उस नए मित्र को बैठक में बिठा कर कमली पानी लाने अंदर गई। वो तो कमली की सुंदरता पर वहशी बन उस पर टूट पड़ा। कमली किचन में पहुँच चुकी थी। उसके हाथ, चाकू और मिर्ची का डब्बा आ गया था। मगर छीना झपटी में चाकू कमली को ही लग गई। पलट कर मिर्ची से उस पर वार किया तब तक रामू सामने आ चुका था। मिर्ची के कुछ कण उसके आँखों को छू गए। फिर भी फर्श पर गिरे चाकू को उठा उसने उस बेशर्म मित्र पर वार किया। चाकू पीठ को छू कर नीचे गिर पड़ा। वह हैवान तो बच कर भाग निकला पर रामू को कमली का दोषी बना गया। कमली के अस्त -व्यस्त आँचल और पीठ पर फटे ब्लाउज देख रामू अपने आप को दोषी मान सर पकड़ कर बैठ गया। दोनों पति-पत्नी इस आकस्मिक घटना से मूक हो चुके थे। अजनबी भाग चुका था, संयोग से संदली भी घर पर नहीं थी। अतः इस घटना का कोई साक्ष्य न था। दोनों की चुप्पी को सभी ने पति पत्नी के झगड़े का विकराल रूप समझ थोड़ा समझा बुझा अलग हो गए।
घटना से अनभिज्ञ संदली घर के बोझिल वातावरण को समझ नहीं पाती। वह इसे अपनी शादी से जोड़ने लगी और उसने भी चुप्पी साध ली। थोड़े ही दिनों में उसे एहसास होने लगा बात कुछ और है। सच की जानकारी के अभाव में माता-पिता के बीच अनबन समझ घुट घुट का सांस ले रही थी। आज जानकी आंटी का तीर निशाने पर लगते ही दोनों पति पत्नी बेटी को उस दलदल में फँसते देख घबरा कर चिल्ला पड़े। उस घटना के कारण आत्मा पर पड़े बोझ को ठेलते हुए लोकलाज को छोड़ पूरी राम गाथा बोल गए जिसमें दोनों कई माह से घुल रहे थे। आंसूओं का सैलाब बह चला। धीरे-धीरे आंसूओं के बीच सारा ग़म बह कर निकल गया। दोनों एक दूसरे से ऐसे लिपटे मानों वर्षों से बिछुड़े हों। संदली भी धीमे कदमों से बढ़ माँ-पापा के आगोश में समा गई।
नोट - आधुनिक युग मे उपयोगिता के अनेक साधन बने जो जीवन सरल करते हैं, मनोरंजक भी हैं पर हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। कम्प्यूटर का मनोरंजक और उपयोगी साथी फेसबुक और व्हाट्स एप्प का दूसरा पहलू क्या है जाने ।
