काबिलियत की पोटली
काबिलियत की पोटली
पोपले मुख वाली सुखिया ताई मुझे बहुत भाति थी। दंतविहीन मुख से निकलने वाली आवाज आपस में युगलबंदी करती होठों से टकरा कर एक नए साज के साथ बाहर आती और फिस से वहीं ताई में ही समा जाती। शैतान बच्चे उनकी बातें कम सुनते हँस कर उन्हें चिढ़ाते ज्यादा। किन्तु ताई जरा भी नहीं चिढ़ती। जब कभी बहुत गुस्सा होती तो उन्हें नासपिते कहती जिसे सुन बच्चे नाशपाती नाशपाती कह पुनः चिढ़ाते। बुजुर्ग भी उनसे कम ही बातें करते क्योंकि अब किसी को भी उनकी बात स्पष्ट समझ में नहीं आती। पर मुझे ताई भाति है अतः उनकी हर बात समझ में भी आती है।
मुझे देखते ताई खिल जाती और पास बिठा अपने अनुभव के पिटारा से अनेकों बातें निकाल मुझे उसका आनन्द देती। मैं अपनी छोटी-बड़ी हर समस्या का निदान ढूंढने उनके पास पहुँच जाता। उनकी अनुभवी आँखें मेरे चेहरे की हर रेखा को पढ़ लेती और कुछ कहने से पहले ही पूछ बैठती। आज मुझे देखते ही पूछ बैठी किस चिंता में निमग्न हो ? एक छोटा जवाब बढ़ते हुए आपसी द्वंद से परेशान हूँ।
ताई बहुत कुछ पूछती रही समझाती रही। सब कुछ सुनते-सुनते मैंने पूछा - ताई भाई बहन बचपन में एक दूसरे पर जान छिड़कते हैं और जैसे -जैसे बड़े होते हैं उनमें द्वंद कैसे प्रारम्भ हो जाता है.. ?
ताई ने कितने प्यार से समझाया - “ अरे बबुआ जैसे-जैसे तुम बड़े होते हो तुममें काबिलियत भरने लगती है। जब-तक ये काबिलियत हुनर के रूप में संचित है तब-तक सब ठीक रहता। पर जब ई काबिलियत तुम्हारे दिमाग में भरने लगता है तब इनका एक साथी अहं इनसे मिल जाता है और काबिलियत की पोटली तैयार कर देता है।”
आदमी बड़ा होगा तो कोई न कोई हुनर सीखना तो आवश्यक ही है जीवन जीने के लिए। पर आपसी रिश्ते पर इसका प्रभाव क्यों पड़ता है ?
“पहले जब भाई-भाई या कोई भी दो व्यक्ति गला मिलते थे तो बीच में कुछ नहीं रहता था अतः नजदीकियाँ ज्यादा थी। बड़े होने पर सभी अपनी-अपनी काबिलियत को दर्शाने लगे और काबिल होने के बाद जब भी मिलते उनके बीच काबिलियत आ खड़ी होती। उस काबिलियत को जगह देने के लिए आपस में थोड़ी जगह बनानी पड़ती। धीरे-धीरे ये काबिलियत छोटी बड़ी हो अहं का संचार करती और अपनी अलग पोटली बना लेती।”
इससे क्या ..?
“ जब बीच में पोटली नहीं थी हम एक दूसरे से चिपके हुए थे। जब पोटली आई तो बीच में थोड़ी जगह बनी फिर भी हाथ बढ़ा हम एक दूसरे को स्पर्श कर लेते। ज्यों-ज्यों ये पोटली बढ़ती गई बीच की दूरी को बढ़ाती गई। समय के साथ ये दूरियाँ इतनी बढ़ गई कि पहले हाथ का स्पर्श छूटा पर शब्द की कोमलता दूर से स्पर्श करती रही। एक दिन पोटली इतनी बड़ी हो गई कि आवाज भी साथ छोड़ दी। हर आवाज उस पोटली से टकरा कर लौट आती।”
ताई काबिलियत तो आवश्यक है अतः निदान बताओ जिससे दूरियाँ घटे।
“प्यार से उस पोटली को अपने बीच से निकाल कर बगल में रख लो।”
ताई खिलखिला कर हँस दी और पोपले मुख की अनुभवी बातें चारो ओर फूल बन बिखरने लगी।
