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दहलीज

दहलीज

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पैरों में महावर छम छम करती पायल रुनझुन करते बिछुए लाल औढ़नी में सिमटी सिकुड़ी जिसका एक सिरा पति के कंधे पर था।

ओढ़नी ओढ़े कार से उतर कर पति के पीछे चल कर घर की दहलीज पर खड़ी थी। सास ने जल से भरे लोटे से दरवाजे के दोनों तरफ जल चढ़वाया, अन्न को हथेलियों में भर कर दहलीज पर अर्पित कर पार करने के लिए कहा, जैसे ही रीमा ने बायाँ पैर बढ़ाया, अरे ...अरे दायाँ पैर परात में घुले हुए कुमकुम में रखो बहू और सामने बिछी धवल चादर पर होकर अंदर आ जाओ।

रीमा चादर पर आगे बढ़ी तो कुमकुम से पैरों की छाप बन गई और दहलीज पार कर घर के आँगन में प्रवेश किया।

घर मेहमानों से भरा हुआ था। नई बहू को दाहिने हाथ वाले कमरे में ले जाया गया, वहीं बैठा दिया गया। उसे छोड़कर पति भी बाहर मेहमानों में चले गए।

रीमा को अकेले बैठे उकताहट होने लगी तो कमरे का मुआयना किया, देखा एक खिड़की थी जो बाहर को खुलती थी। वह खिड़की पर खड़ी हो गई हवा उसकी बालों की लट के साथ खेलने लगी।

रस्मो रिवाज में ही कई दिन बीत गए। आज सुबह सवेरे एक लेटर डाकिये ने हाथ में ‌धरा तो एक ही साँस में पढ़ गई। सेना के अस्पताल में नर्स के लिए जो आवेदन किया था उसी में भर्ती हो गई थी।

खुशी के मारे उछल पड़ी, लेकिन अगले पल खुशी गायब भी गई। पता नहीं सासू माँ जाने देंगी या नहीं। पहले पति से बात करती हूँ।

सुनो ! सागर मेरा एपांटमेंट आ गया है। सागर, माँ को कोई ऐतराज तो नहीं होगा ?

रीमा ये तो माँ से पूछ कर ही पता चलेगा।

सागर, चलो माँ से पूछते हैं।

माँ पूजा से उठी तो बहू बेटे को देख कर बोली क्या बात है ? कुछ काम आ पड़ा हमसे।

माँ रीमा का आज सेना के अस्पताल के लिए नर्स के लिए एपांइंटमेंट लेटर आया है आपकी आज्ञा लेने आई है आपकी बहू।

ये तो बहुत खुशी की बात है, जवानों की सेवा करना देश की सेवा करना है।

सागर मिठाई बँटवाओ।

आज मेरी बहू देश सेवा के लिए दहलीज पार कर रही है बहुत गर्व की बात है, हम सब के लिए।।


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