धारणा का आईना/लोफर से शरीफ तक
धारणा का आईना/लोफर से शरीफ तक
नए शहर की एक कॉलोनी में मालती अपने परिवार के साथ रहने आई थी। कॉलोनी में नए होने के कारण, मालती आस-पड़ोस के लोगों की बातों को अधिक महत्व देने लगी थी। उसके पति ने बार-बार समझाया कि दूसरों की बातों पर यकीन करने से पहले खुद हालात समझने की कोशिश करो, लेकिन मालती को यह समझाना आसान नहीं था।
कॉलोनी के पास एक छोटा-सा टी स्टॉल था। वहां कुछ लड़के हर सुबह और शाम चाय पीने आते थे। वे ज़्यादातर बाहर से पढ़ाई के लिए आए थे और किराए के मकान में रहते थे। कॉलोनी की महिलाएं अक्सर उनकी हंसी-मज़ाक और हर समय बाहर खड़े रहने की वजह से उन्हें "लोफर" कहकर पुकारती थीं। मालती ने भी सुनी-सुनाई बातों पर यकीन कर लिया।
मालती की बेटी प्रिया कॉलेज जाती थी। एक दिन उसकी स्कूटी रास्ते में खराब हो गई। बारिश हो रही थी, और वह परेशान थी कि कैसे घर पहुंचे। तभी उन "लोफर" कहे जाने वाले लड़कों ने उसे देखा। उन्होंने बिना कुछ कहे उसकी मदद की। स्कूटी ठीक करवाई और उसे सुरक्षित घर पहुंचा दिया।
जब प्रिया ने यह बात अपनी मां को बताई तो मालती को विश्वास ही नहीं हुआ। उसने कहा, "वे लड़के भरोसे के लायक नहीं हैं। कॉलोनी की हर औरत उनके बारे में एक ही बात कहती है।"
प्रिया ने विरोध करते हुए कहा, "मां, सबकी बात सुनकर आप उनकी अच्छाई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकतीं। जब मुझे जरूरत थी, उन्होंने मेरी मदद की। किसी को केवल उसके व्यवहार का बाहरी हिस्सा देखकर गलत ठहराना ठीक नहीं है।"
मालती ने प्रिया की बात को टाल दिया।
कुछ दिनों बाद मालती बाजार से लौट रही थी। तेज धूप के कारण वह बेहोशी के करीब थी। तभी वही लड़के वहां से गुजरे और तुरंत उन्हें संभालकर उनके घर तक पहुंचाया। उनकी देखभाल और चिंता देखकर मालती का नजरिया थोड़ा बदलने लगा।
लेकिन असली बदलाव तब आया, जब एक रात मालती ने खिड़की से पड़ोस के घर में कुछ अजीब हरकत देखी। एक लड़का, जिसे कॉलोनी के लोग आदर्श मानते थे, पड़ोसी की बेटी से मिलने उसकी खिड़की के पास आया। मालती ने यह बात चुपचाप देखी और मन ही मन सोचा कि जो लोग दूसरों की बुराई करते हैं, वे अपने घरों की गलतियां कभी नहीं देखते।
अगले दिन, वह पड़ोस की महिलाओं के पास गई और बोली, "हम दूसरों को बिना जाने-समझे जज क्यों करते हैं? जिन लड़कों को हम 'लोफर' कह रहे थे, उन्होंने मेरे परिवार की मदद की। असल में, किसी को उसके कामों से परखना चाहिए, ना कि अफवाहों से।"
उनकी बात सुनकर कई महिलाएं चुप हो गईं। धीरे-धीरे मालती ने सबको सिखाया कि किसी के बारे में गलत धारणा बनाने से पहले सच्चाई जानना जरूरी है। कॉलोनी में धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा। और उन लड़कों के प्रति लोगों की सोच भी।
सीख: किसी को बिना समझे-समझाए जज करना गलत है। हर किसी की सच्चाई जानने का प्रयास करें, क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।
