देवकी वसुदेव
देवकी वसुदेव
यह तो सभी जानते हैं, बाल कृष्ण के लड्डू गोपाल रूप, जिनकी सदियों से घर मे पूजा होती हैं।कृष्ण वसुदेव औऱ देवकी की आठवीं संतान थे, देवकी कंस की बहन थी। कंस अत्याचारी राजा था। कंस ने एक आकाशवाणी सुनी थी, यही कि देवकी का आठवां पुत्र मारा जाएगा। इससे बचने के लिए कंस ने देवकी औऱ वसुदेव को मधुरा के एक कारागार में डाल दिया।
मथुरा के कारागार में भादों मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका का जन्म हुआ था, कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात मे यमुना पार करके गोकुल में यशोदा के घर पहुंचा दिया।गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ। यशोदा औऱ नन्द उनके माता-पिता थे।बाल्यावस्था में उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किये, जो किसी भी मनुष्य के लिए कतई भी सम्भव नहीं था। अपने जन्म के कुछ समय पश्चात कंस के द्वारा भेजी गई राक्षस पूतना का वध किया।
उसके बाद...
शकटासुर ,तृणावर्त ,इत्यादि का वध किया, बाद में वह अपना गोकुल छोड़कर नन्दगाँव पहुँच गए , अर्थात वहाँ पर उन्होंने कई लीलाएँ की, जिस लीला में गौचारण लीला, गौवर्धन लीला , रासलीला आदि मुख्य हैं। जिसके बाद मधुरा में मामा कंस का वध किया। गुजरात के सौराष्ट्र में द्वारिका नगरी की स्थापना हुईं। वहाँ अपना राज्य बसाया, वहाँ उन्होंने पांडवों की मदद कीएवं विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध मे अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई औऱ रण क्षेत्र में उन्हें उद्देश्य दिया।
यहीं की.....एक सौ चौबीस वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त की,उनके अवतार समाप्ति के तुरन्त बाद
परिक्षित के राज्य का कालखण्ड आता है।राजा परीक्षित,जो अभिमन्यु एवं उत्तरा के पुत्र अर्थात अर्जुन के पौत्र थे। वह समय से ही कलयुग का आरंभ माना जाता है।
