Arunima Thakur

Tragedy

4.4  

Arunima Thakur

Tragedy

देह

देह

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रिश्ते हो तो रिश्तो का भ्रम बचा रहे I यहाँ तो वह हर रिश्ते में छली गई I क्या कहा माता-पिता का रिश्ता. . . ? क्या कहें साहब वह तो इस रिश्ते का भ्रम भी तोड़ आयी। गलती उसकी भी थी पर कोई ऐसे अपनी बेटी को बाजार के हवाले करता है ? आज वह इस कोठे पर है क्योंकि उसके मां-बाप को अपनी इज्जत बचानी थी उसके चार और भाई बहनों को पालना पोसना भी था । और वह. . . . ? वह तो उसके प्रेमी के द्वारा पहले ही छली जा चुकी थी । उसकी गलती यही थी ना कि वह अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई थी। पर उस गलती की इतनी बड़ी सजा ? और सजा ही देनी थी तो मार डालते, गला दबा देते । यह दिन रात का मरना, यह कैसी सजा. . . ?

वैसे कौन से रिश्ते . .? कैसा भ्रम . . .? प्यार किया था उसको. . . . जाति बाहर का था ..... तो समाज शादी के लिए तैयार ना होता। तो भाग गई उसके साथ एक दुनिया बसाने के लिए I पर उसके लिए भी वह कोई रिश्ता नहीं सिर्फ एक देह थी I वह तो उस रात उसने उसे किसी से बात करते हुए सुन लिया था कि हां अब तो खूब मजे ले लिए I कल तुम सब भी आ जाओ। फिर दो-चार दिनों में कोठे पर बेच देंगे । कैसे रातों-रात वह भाग आई थी उन सब से बच कर अपने घर । पर उन रिश्तो का भ्रम भी टूट गया जब मां बाबू ने सोच-विचार कर उसे बेच दिया । जहाँ से बचने के लिए भागी थी उन्होंने भी उसे वहीं पहुँचा दिया । उन्होंने भी उसे सिर्फ एक देह ही समझा । 

 यह उसका ही नसीब था या हर लड़की सिर्फ एक देह होती है । याद आता है सात साल की उम्र में उस रात जब सब चचेरे भाई-बहन आइस पाइस खेल रहे थे । तो चचेरा भाई उसे अपने साथ ले जाते हुए बोला कि तुम छोटी हो तुम मेरे साथ चल कर छुप जाओं, नहीं तो दाँव तुम्हें ही देना पड़ेगा। दाँव देना पड़ेगा ? भैया कितने अच्छे हैं ना । पर उस अंधेरे कोने में क्या वह उसके लिए बहन थी । नहीं वह थी सिर्फ एक देह । सात साल की मासूम देह। वहाँ उसके भाई ने पूछा क्या मैं तुम्हारी एक पप्पी ले लूं । उसने हां बोला, सभी लेते हैं, मां भी बाबू भी । पर उसने तो उसके पूरे होठों को मुंह में भर लिया था । वह हाथ पटक रही थी, उसे सांस नहीं ली जा रही थी, उसे दर्द हो रहा था और वह बोला श्शश चुप रहो । आवाज करोगी तो दाँव देना पड़ेगा । हां दाँव देना उस बालमन के लिए ज्यादा बड़ी बात थी। वह बोली भैया होठ दुख रहे हैं । उसने हाथों का और ढीठ बनाते हुए बोला कोई बात नहीं । वह उठकर भागी तो उसने धक्का दे दिया, और गोद में उठाकर मनचाहा करते हुए उसकी मां के पास लाकर बोला, "मुंह के बल गिर गई है तो होठों पर चोट लग गई है इसलिए रो रही है । भैया झूठ बोल रहे हैं । पर माँ ने कब सुनना चाहा ? उन्होंने तो डांट कर बैठा दिया । यह नहीं कि घर के काम में मेरी मदद करें । भाई बहनों को संभाले । उसे लगा माँ सही कह रही है । ना वह बाहर जाती ना . . . I पर. . . घर भी आखिर कहां तक सुरक्षित था । अब उसे थोड़ी-थोड़ी समझ आने लगी थी । आखिर राखी पर उसने बोल ही दिया, "मैं इनको राखी नहीं बाधूँगी" I "क्यों नहीं बांधेगी ? भाई है तेरा, तेरी रक्षा करेगा" I वह बेशर्म हंस रहा था। क्या बोलती वह ? रिश्तो का भरम तो कब का टूट चुका था । कैसा भाई . . . ? कोई बहन नहीं है वह उसके लिए । वह सिर्फ एक देह है । 

वह 10 साल की उम्र में जब उसके मौसी मौसा जी आए थे। रात को मौसा जी बोले, "सारे बच्चे मेरे साथ सोएंगे, मैं कहानियाँ सुनाऊंगा" । छोटी सी छत पर सब बिस्तर डाल कर मौसा जी के साथ ही सो गये। रात को उसे . . . . . . I वह चौंक कर जग गई .. . . भैया यहां रात को. . . . । पर नहीं यह तो एक और रिश्ता था जिसका भ्रम टूट रहा था । वह एक बार फिर सिर्फ देह थी । 

ऐसे ही ना जाने कितनी बार ना जाने कितने ही रिश्तो के भ्रम से वह मुक्त हुयी। वह सोचती रिश्तों के भ्रम से मुक्त होने की यह पीड़ा सिर्फ उसने ही भोगी है ? या सारी लड़कियों को कभी ना कभी यह पीड़ा भोगनी ही पड़ती है ? और यहां कोठे में आने के बाद तो उसे विश्वास हो गया है। सारे रिश्ते सिर्फ एक भ्रम है, मन का भ्रम । हर कोई इन्हीं रिश्तो से छला गया है। 


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