Dear Diary : Day 4
Dear Diary : Day 4


डिअर डायरी
लॉक डाउन में कोई घर से बाहर नहीं जा रहा है। लेकिन बाहर चलते वाहनों की आवाज़ें मन की हसरतें जगा देती हैं ? वो लोग भी तो बाहर जा रहे हैं, तो फिर मैं क्यों नहीं ? बाहर क्या है जो मैं घर के अंदर रहकर समझ नहीं पा रही हूँ।
पानी - पूरी का तीखा स्वाद, चना जोर गरम में नीम्बू की खटास, रबड़ी की मिठास, कॉफ़ी की गरम गरम चुस्की, पिज़्ज़ा का स्वाद, कोला - स्प्राइट की ख्वाहिश, मूवी हॉल में चीज़ - पॉपकॉर्न का एहसास, कार में से उतरकर सैंडविच का वो लज़ीज़ सा स्वाद, माल्स की विंडो -शॉपिंग, दोसा का चटखारा, पास्ता को वो चमचे से उठा कर खाना, लगभग हर वीकेंड पर होटलों का खाना ; सबकुछ बहुत याद आ रहा है। घर में रहकर कोई काम नहीं है। जो नौकरी न होती, तबक्या करते ? ज़रूरी सामान की दुकाने अब १० से ६ खुलती हैं। अपनी आप बीती लिखने का ख्याल एक और बार आया था।
लेकिन फिर ये सोचकर दिल सहम गया कि कहीं ये एहसास हिस्ट्री न बन जाएँ। लैपटॉप से मिले एक आलेख के अनुसार उस पीढ़ी में ऐसा हुआ था कहकर बच्चों को एक कोरोना पर चैप्टर पढ़ाया जाये ; और बस फिर मैंने सोच लिया था कि अब नहीं लिखूंगी लेकिन फिर स्टोरीमिर्रोर ने पहल की कि आप लिखिए। तब मन के संवेगो को रोक न सकी मैं और मैंने लिखना शुरू किया। एक और समस्या से लड़ रहा है भारत इस वक्त और वो हैं पलायन करते मज़दूर।
सरकार के राहत पैकेज को दरकिनार कर वे जल्द से जल्द अपने गांव जाना चाहते हैं। और इसके लिए पैदल ही चल पड़े हैं, उनको नहीं मालूम पहुंच सकेंगे या नहीं, वो सड़के और जंगल सुनसान हैं जो उनके रास्ते में आएंगे। तब कैसे वो जीवित रह सकेंगे ? ज़िद्द है ज़िंदा रहने की या शायद अपनों का प्यार खींच रहा है। ९३३ केसेस का सामना करता भारत , ८३३ एक्टिव केस, ८४ ठीक, १७ की मौत।
ये लाइन एक क्रिकेट कमेंटरी जैसी भले ही मालूम देती हो, लेकिन ये मेरे भारत की कोरोना की लड़ाई की कहानी है। अलविदा मेरी प्यारी डायरी दुआ है कि सब अच्छा हो ! कल मिलेंगे। शुभ रात्रि !