डायरी तेहरवाँ दिन
डायरी तेहरवाँ दिन


प्रिय डायरी लॉक्डाउन का तेहरवाँ दिन है। और जब उठती हूँ सुबह तब महसूस होता है सुबह की दिनचर्या तो किसी भी घर के गृहणी की लगभग एक जैसी ही होती है। बस निर्भर करता है की आप कामकाजी हैं या फिर घर पर ही रहती हैं। क्यूँकि आजकल घर पर हूँ तो मै भी आम गृहिणी हूँ और आराम से काम करती हूँ । ऑफ़िस जाने की जल्दी जो नहीं है। तो मै कह रही थी हम सभी गृहणियों की ज़्यादातर जिन्मेदारियाँ लगभग एक जैसी ही होती हैं कम और ज़्यादा घर के सदस्यों पर निर्भर करती है। और जल्दी देर से काम निपटाना आपके आगे के कार्यक्रम पर निर्भर करता है आप घरेलू गृहिणी हैं तो आराम से काम करोगी और कुछ काम दिन के लिए भी छोड़ दोगी परन्तु वहीं अगर कामकाजी हो तो फिर एक नियत समय मे ही कार्य करना है आलस्य का यहाँ कोई काम नहीं।
प्रिय डायरी क्यूँकि कारोना वायरस की वजह से लॉक्डाउन है मै भी आजकल घरेलू गृहिणी होने का लुत्फ़ ले रही हूँ और आराम से काम कर रही हूँ पर प्रिय डायरी घरेलू गृहिणी होना भी पूरे दिन का काम है और बहुत मुश्किल काम है। तमाम घरेलू गृहणियों को मै आज दिल से नमन करती हूँ। तो प्रिय डायरी इन सब घरेलू कामों को करते हुए मै अपना लेखन भी जारी रख रही हूँ और देश दुनिया की खबर पर भी नजर रखी है की एक सौ नब्बे देशों में बारह लाख से ज्यदा कारोना के मरीज़ हो गए और पैंसठ हज़ार से ज्यदा लोगों की मृत्यु बड़ा ही भयंकर मंजर है प्रिय डायरी।
कुछ भी स्पष्ट नहीं हो रहा है। घर पर ही रह नियम पालन कर रहे हैं। जहां तक हो सकती है जरुरतमंद लोगों की मदद तो कर रहे हैं पर कब तक और कैसे ये भी एक अजीब स्थिति बनी हुई है। प्रिय डायरी एक एक दिन के साथ साथ मुश्किलें भी बढ़ती जा रहीं है। परिवार के साथ हैं इसलिए थोड़ा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं फिर भी मन मे कहीं फिक्र है उन लोगों की जिनके पास कोई साधन नहीं पैसा कमाने के और खाने की तंगी है। प्रिय डायरी पता नहीं सब तक भोजन पहुँच भी रहा है या नहीं यही सोचकर मैने एक समय का भोजन ही करना छोड़ दिया।
अन्दाज़ा तो कर सकूँ जब भरपेट भोजन नहीं मिलता तब कैसा महसूस होता है। प्रिय डायरी अब कुछ डरने लगी हूँ। इसलिए अब बहुत कम समाचार सुनती हूँ। योग और ध्यान मे अपने आपको व्यस्त करने लगी हूँ।
अच्छी पुस्तकें पढ़ रही हूँ। बहुत सी पुस्तकें जो मुझे भेंट स्वरूप मिलीं थी धीरे धीरे उन्हें पढ़कर उनके विषय मे भी लिख रही हूँ। पर प्रिय डायरी दो दिन से ये कार्य नहीं हुआ समय का अभाव सा हो गया है क्यूँकि मेरे घर मे मेरी अस्सी साल की सासू माँ भी हैं उनकी देखभाल मे भी वक्त पता नहीं चलता । उनका खाना भी साधारण बनाना पढ़ता है। बच्चों का काम अलग और हम हम उम्र का काम अलग होता है। रोज की दिनचर्या कई हिस्सों मे बंट गई है प्रिय डायरी पर आनंद है की जो कुछ मै रोज की दौड़ भाग मे अपने परिवार के लिये नहीं कर सकी अब कर पा रही हूँ।
कल कोई अफ़सोस नहीं रहेगा की कुछ वक्त होता तो ये करती वो करती अब सबकुछ कर रही हूँ। समर्पित हूँ अपने परिवार को अपनो को। प्रिय डायरी कल की नई उजली सुबह की आशा पर आज इतना ही। हो सकता है कल कोई अच्छा समाचार ले कर दस्तख़त दे इस उम्मीद से इन पंक्तियों के साथ विदा लेती हूँ प्रिय डायरी मेरी सखी।
इतनी मेहरबानी कर मेरे दाता कोई भूखा ना सोए संसार में।