डायरी लॉक्डाउन2, पहला दिन
डायरी लॉक्डाउन2, पहला दिन
प्रिय डायरी , ज़िंदगी की रफ़्तार अभी कुछ दिन और धीमी रहेगी लाक्डाउन की अवधि जो बढ़ गयी है... या यूँ कहूँ की कुछ दिन और मिले हैं मन को टटोलने के... रिस्तों को खाद और पानी देने के लिये... खुद का मंथन करने के लिए... एक और ज़िंदगी जीने के लिए।
फिर भरने लगी हूँ उड़ान सपनो की और सोच में हूँ अपनो की ... छूटा तो नहीं कुछ सोचती हूँ पर फिर लगता है बहुत कुछ पा भी लिया है। हम हर वक्त निराशा को ज्यदा महत्व देते हैं। यही कारण है की जो हमारे पास है उससे खुश नहीं होते जो नहीं है उसकी खोज में परेशान रहते हैं यही आज भी हो रहा है बेशक कारोना महामारी की वजह से ही सही हमे एक मौका मिला है कि हम घर पर रहें पर कुछ ऐसे लोग हैं जिनको कहना मानने की आदत ही नहीं। घूम रहे हैं सड़कों पर बेपरवाह... बढ़ा रहे हैं काम पुलिस का... दे रहे हैं धोखा देश को... ये दोषी हैं उन हज़ारों ग़रीबों के जो इस लॉक्डाउन मे अपनी रोज़ी रोटी नहीं कमा पा रहे। कैसे समझेंगे ये देश की चिंता नहीं ग़रीबों की चिंता नहीं तो भई अपने परिवार की ही चिंता कर लो आपकी वजह से वो भी दुःख पाएँगे। इससे तो अच्छा है आप उनके साथ खुशी खुशी घर पर रहो ... स्वस्थ रहो... प्रिय डायरी मै ये संदेश इन लोगों को देना चाहती हूँ। दे भी रही हूँ कभी कविता के माध्यम से कभी सोशल मीडिया पर ऑन लाइन जाकर पर मन दुखी है । चन्द ऐसे लोगों की वजह से जो समाज के दुश्मन और अक़्ल के कच्चे हैं उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्यूँ जरुरत पड़ी लॉक्डाउन बढ़ाने की।
प्रिय डायरी हमे इस कारोना महामारी के तीसरे चरण में नहीं जाना इसी लिए सावधानी के तौर पर ये लॉक्डाउन बढ़ाया गया है... और एक कोई भी कहना नहीं मानता तो सारी मेहनत बेकार हो जायेगी। कब समझेंगे हम इतनी छोटी सी बात। प्रिय डायरी आज मनुष्य के इस व्यवहार से दुःखी हूँ इसलिए इतना ही इन पंक्तियों के साथ कलम को विराम दूँगी:
संभल ऐ मनुष्य तू अब तो
क्यूँ व्यर्थ यहाँ वहाँ फिरता है
ये स्वार्थ ठीक नहीं है तेरा
खुद का ही शत्रु क्यूँ बनता है।