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vijay laxmi Bhatt Sharma

Inspirational

3.5  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Inspirational

डायरी ग्यारहवाँ दिन

डायरी ग्यारहवाँ दिन

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183


प्रिय डायरी

आज लाक्डाउन का ग्यारहवाँ दिन है। समय की गति थम सी गई है... तेज रफ़्तार जिंदगी पिंजरों में सिमट कर रह गई है। ऐसे पिंजरे जिनसे अब उड़ने को मन नहीं करता, एक सुकून सा छा गया है जीवन में ... करने को तो बहुत कुछ है पर इच्छाएँ सिमट कर रह गयी हैं। अचानक यूँ लग रहा है मशीन से फिर इन्सान बन गए हैं। कई दिन से उलझ रखे बालों को तेल की नर्म छुअन मिल रही है। सूखी फटी एड़ियों को भी कुछ ठंडक मिल रही है, आजकल कुछ अपने लिये भी जिंदगी मिल रही है। सच जो रोज की दौड़ भाग मे अपना ख़्याल ही नहीं रहता आज कुछ वक्त कुछ लम्हे अपने लिए भी चुरा रही हूँ। प्रिय डायरी आजकल मैं भी मुस्कुरा रही हूँ। बंधन नहीं मुझे की जाना है समय पर कहीं... उलझन नहीं मुझे की दिन के लिए भी पकाना है कुछ। अपने मन की करती हूँ... आराम से उठती हूँ, सबके मन का पका उनकी हँसी में खुद हँसती हूँ। खुश हूँ की अपनों में हूँ चाहे कारण कुछ भी हो कुछ दिन तो सुकून से हूँ। प्रिय डायरी मेरी सखी जीवन का सबसे खुश पल जी रही हूँ मैं, हाँ समाचार सुन उदास हो जाती हूँ की दस लाख से ज्यादा लोग कारोना के शिकार हो गये। विश्व भर में और पचास हज़ार से ज्यादा काल के ग्रास बन गये...  ये महामारियाँ इतनी कठोर क्यूँ होती हैं, स्त्री तो कभी कठोर नहीं होती फिर स्त्रीलिंग ले ये महामारियाँ ऐसी क्यूँ हैं? दया करुणा कुछ भी नहीं इनमें किसी को भी अपना ग्रास बना लेती हैं। परिस्थितियाँ भाँप शायद इसीलिए हमे घर पर रहने की हिदायत दी गईं हैं, और हम पालन भी कर रहे हैं घर पर कुछ शान्त जीवन का आनंद ले रहे हैं। हज़ारों भूखे लोगों की पीड़ा भी मन में है, यथा संभव मदद भी भेज रही हूँ पर कुछ अपने खाने में भी कटौती कर रही हूँ। गांधी जी ने कहा था “थोड़ा सा कर्म बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है।” इसलिए किसी को उपदेश ना दे खुद ही कुछ कटौती कर कुछ राशन कल कुछ जरूरतमंदों को दे आयी, बड़ा संतोष मिलता है इसमें भी ये भी परिवार की खुशी जैसा ही है।

 प्रिय डायरी सुख दुःख निरन्तर चलते रहने की क्रिया है... इसलिए ज्यादा खुशी और ज्यादा दुःख भी ठीक नहीं। सम रहने में ही समझदारी है और असली सुख भी.... कोशिश कर रही हूँ की इस बात पर अमल कर सकूँ इसलिए सामान्य रहने की नाकाम कोशिश कर रही हूँ। एक क्षण खुश होती हूँ दूसरे क्षण

दुनिया की खबर सुन दुःखी हो जाती हूँ ऐसे ही दिन निकल जाता है पता ही नहीं चलता। धीमी रफ़्तार में भी समय गुजर ही जाता है इसे कोई थाम नहीं सकता। बस प्रिय डायरी कुछ वक्त योग और ध्यान में भी निकल जाता है तो कभी सबके साथ(परिवार) कसरत करने में ... ये भी तो जीवन का अंग है स्वस्थ रहने के लिये... बस आज इतना ही प्रिय डायरी मेरी सखी प्रार्थना करो की जल्दी ही सब ठीक हो... सबका कल्याण हो... सब खुश और स्वस्थ रहें, कोई भी भूखा ना सोये... इसी कामना के साथ इस श्लोक के साथ अपनी बात को आज यहीं विराम दूँगी कल की मंगल कामना के साथ....


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः


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