vijay laxmi Bhatt Sharma

Inspirational

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vijay laxmi Bhatt Sharma

Inspirational

डायरी दसवाँ दिन

डायरी दसवाँ दिन

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प्रिय डायरी

आज बंद का दसवाँ दिन है और जब आज सुबह उठकर अपनी हथेलियों को देखा तो सर्वप्रथम उस परब्रह्म परमेश्वर का धन्यवाद किया जिन्होंने मुझे ये जीवन प्रदान किया। खाने को रोटी और एक सुन्दर परिवार दिया। एक स्त्रीत्व को पूर्ण होने का मौका दिया और दो बच्चों पुत्र और पुत्री की माँ होने का सौभाग्य दिया। मुझ में कुछ खास नहीं पर मेरा परिवार मुझे एक अलग ही जगह पर ले जाता है। मेरे माता पिता जिन्होंने मेरे पैदा होने पर यानी पुत्री होने पर भी गौरव महसूस किया और मेरा पालन पोषण पढ़ाई लिखाई सब बड़े लाड़ के साथ किया। मेरी दादी जिन्होंने हमेशा कामना की उनके घर पहले नातिन ही हो और बहुत प्रेम दिया मुझे। मेरे नानाजी जिन्होंने मुझे एक नाम दिया विजय लक्ष्मी। मेरी नानी जो हमेशा अन्य घरेलू महिलाओं की तरह घर के कामकाज में ही व्यस्त रहीं और खुद को नाम दिया पेटपाल। दादाजी कभी देखे नहीं पर पिताजी से उनके क़िस्से सुने ज़रूर और जीवन की हर कठिनाई में उन बातों ने हौसला ही बढ़ाया। मेरे दो भाई और एक बहन जिन्होंने मेरे बड़े होने को आदर के साथ देखा कभी मेरा नाम ले नहीं पुकारा। मेरे ससुरजी जिन्होंने हमेशा मुझे अपनी बेटी समझा। पति जिनके साथ खटपट लगी रहती है पर एक अदृश्य प्रेम भी साथ चलता रहता है। सासू माँ जो कभी सास तो कभी माँ बन जाती हैं। भाभी मेरी ननदें। भतीजे , भानजे, भतीजियाँ, भांजियाँ ये सभी इर्द गिर्द हैं तो मेरा अस्तित्व है।

सुबह सुबह इतना सोच ईश्वर को एक बार और धन्यवाद दिया मुझे इस काबिल बनाने के लिये की मैं परिवार रूपी धन अर्जित करने में सक्षम हो पाई। रोज की दिनचर्या और बीच में खबरों पर भी नजर थी। सोचा अभी हम संभल ही रहे थे की कुछ लोगों की वजह से फिर वहीं पहुँच गए जहां से शुरू किया था। क्या महामारी कोई जाती धर्म मज़हब या फिर अमीरी गरीबी देखकर आएगी नहीं बीमारी कुछ नहीं देखती अपना ठिकाना देखती है और ये लोग क्यूँ धर्म के नाम पर अपनी जान से खेल रहे हैं मुझे नहीं पता पर इतना पता है अगर ये कुछ लोग नहीं समझे तो ख़तरा हम सभी को है। मानवता एक बड़ा धर्म है और मानवता के नाते हम एक दूसरे का ख्याल रखें। भूखे को रोटी दें.. दीन दुखियों की सेवा करें तो हमारे पास वक्त ही नहीं बचेगा बेकार के कामों के लिये। कुछ देर ही समाचार सुन पाई और देखा सुना नहीं गया मानवता में गई है कुछ वर्ग के लोगों की। थूकना गन्दी बातें करना वो भी अस्पताल मे जहां आपको भगवान स्वरूप डाक्टर और उनका स्टाफ़ ठीक करने की कोशिश कर रहा है। छी कितने गिर गये हैं हम। घृणा भी छोटा शब्द लग रहा है आज मुझे। कुछ खाने की इच्छा नहीं हुई मुझे दो दिन से ये सब देखते सुनते मन खराब है। तुम ही कुछ करो भगवान हम इंसानो के बस के बाहर है कुछ तत्व।

प्रिय डायरी मेरा हर दिन घर पर अपनों के साथ विचारों के मंथन के साथ ही गुजर रहा है और हर घड़ी मै धन्यवाद देना नहीं भूलती देश सेवकों का जो दिन रात इस परेशानी के समय इस कारोना महामारी का इलाज कर रहे हैं समस्त डाक्टर, नर्सिंग स्टाफ़ और उनके साथ सभी हॉस्पिटल स्टाफ़, समस्त सुरक्षाकर्मी, बिजली पानी, सफ़ाई और समस्त सेवाओं में लगे लोग, हमारे मीडिया कर्मी जो विषम परिस्थियों में भी हर खबर हम तक पहुँचा रहे हैं। प्रिय डायरी मैं रोज अपनी प्रार्थना मे इनके लिये आशीर्वाद लेना नहीं भूलती क्यूँकि इनका भी एक परिवार है और ये उनके लिए परिवार हैं। समस्त जनकल्याण मे लग ये इतने बड़े परिवार देश की सेवा में जूटे हैं ईश्वर इनपर अपनी कृपा बनाए रखना। सबको खुशी खुशी परिवार को लौटा देना। सर्व कल्याण की प्रार्थना के साथ प्रिय डायरी आज इतना ही कल की नई किरण के लिए इन पंक्तियों के साथ विदा लेती हूँ.....

ये देश रहेगा ऋणी तुम्हारी सेवा का

तुम रहो सलामत देश सेवकों ये दुआ है।


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