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Diwa Shanker Saraswat

Inspirational

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Diwa Shanker Saraswat

Inspirational

डायरी दिनांक २५/१२/२०२१

डायरी दिनांक २५/१२/२०२१

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डायरी दिनांक २५/१२/२०२१

शाम के तीन बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।

धरती पर मनुष्य के बाद जो जीव सबसे अधिक उत्पाती है, वह निश्चित ही बंदर है। प्रकृति को मिटाने में बंदर बहुत हद तक मनुष्यों की ही तरह हैं।कासगंज में बंदरों का आतंक था। पर एटा में अभी तक सब ठीक था। पर कुछ दिनों से अब यहाँ भी बंदरों का आतंक फैलने लगा है। दोपहर में कपड़े सुखाना बहुत मुश्किल हो रहा है। गिलहरियों के लिये देने बाली रोटी तथा एक पेड़ पर आ रहे फल को खाने झुंड के झुंड रोज आ रहे हैं।एक तो सर्दी में धूप वैसे भी कम निकलती है। उसी समय बंदर आ जाते हैं।

आज ईसामसीह जी का जन्म दिवस है। ईसा मसीह जी ने ईसाई धर्म की स्थापना की थी। उनका बहुत अधिक विरोध हुआ। तत्कालीन सत्ता ने उन्हें दर्दनाक मृत्यु दी थी। जिसमें उन्हें सूली पर लटका दिया था।

वास्तव में ईसा के विचार हिंदुत्व से अधिक प्रभावित थे। आडम्बर रहित जीवन का सिद्धांत श्रीमद्भगवद्गीता से मिलता है। पाश्चात्य देशों में उनके द्वारा हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार प्रसार करना पाश्चात्य देशों के शासको को पसंद नहीं आया।

 उपरोक्त विचार मेरे व्यक्तिगत नहीं हैं। अनेकों मूर्धन्य विचारकों के अनुसार ईसा के तत्कालीन विरोध का कारण उनके विचारों का हिंदुत्व से प्रभावित होना ही था।

 कुछ विचारकों के अनुसार संभवतः तत्कालीन शासक भी उनके विचारों का समर्थक था। पर वह उस काल के असहिष्णु पुजारियों का विरोध नहीं कर पाया। वैसे ईसा मसीह द्वारा मृत्यु बाद फिर से जिंदा होने की भी कहानी है। कुछ विचारकों का यह भी कहना है कि वास्तव में ईसा तत्कालीन शासक के गुप्त सहयोग से जीवित बच गये थे। माना यह भी जाता है कि शायद उन्होंने उसके बाद का जीवन भारत में गुजारा। कश्मीर की एक कब्र को भी ईसा की कब्र माना जाता है। ऐसा ओशो जैसे विचारकों का भी मानना है।

ईसा के जीवन के विषय में अनेकों विचार मिथक हो सकते हैं। पर ईसा के व्यक्तित्व पर हिन्दुत्व तथा श्रीमद्भगवद्गीता का पूरा प्रभाव था, इस तथ्य को अस्वीकार करना वास्तव में सत्य को अनदेखा करना ही है।

आज विभिन्न समूहों पर हिंदुओं द्वारा क्रिसमस मनाने का विरोध किया गया है। मेरी राय में ऐसी असहिष्णुता कभी भी हिंदुत्व का अंग नहीं रही है। ईसा निःसंदेह एक महान संत और विचारक थे। महान संत हमेशा धर्म और जाति की सीमाओं से परे ही होते हैं।

आज महामना मदन मोहन मालवीय जी तथा भारत के पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी जन्म दिन है। आधुनिक भारत के विकास में इन दोनों का महान योगदान रहा है।

 संत प्रभु दत्त जी महाराज का कहना है कि जिस बात को हम नहीं चाहते, तथा दैवगति से वही बात हो जाये, उस समय उस अप्रिय बात को देवेच्छा मान सहन कर लेना ही धैर्य कहलाता है। वास्तव में कीट पतंगों से लेकर ब्रहमा तक सभी को दुखों का अनुभव हुआ है। दुख ही किसी को महान बनाने का घटक है। यदि पांडवों के जीवन में, हरिश्चंद्र के जीवन में और तो और भगवान के अवतार श्री राम के जीवन में दुख न आता तथा वे उस दुख का सामना न कर पाते तो निश्चित ही उन्हें आज कोई भी याद नहीं करता।

 भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के पुत्र बज़नाभ द्वारिका की दुर्घटना के बाद जीवित बचे थे। जिन्हें अर्जुन हस्तिनापुर ले आये थे। महाराज युधिष्ठिर ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर तथा बज़नाभ को इंद्रप्रस्थ का शासक बना महाप्रयाण कर लिया।

 बज़नाभ उस समय मात्र १६ वर्ष के थे। इंद्रप्रस्थ का वैभवशाली शासन में भी वे खुश न थे। फिर परीक्षित की मदद से वे मथुरा आये। उन्हें मथुरा एकदम निर्जन मिला। माना जा सकता है मथुरा पूरी तरह उजड़ चुका था। फिर बज़नाभ ने बहुत मेहनत कर मथुरा तथा आसपास के गांवों को बसाया। महाराज प्रशिक्षित ने विभिन्न स्थानों से व्यापारियों को मथुरा राज्य रहने के लिये भेजा। महर्षि शांडिल्य के परामर्श से उन्होंने मथुरा के अतिरिक्त बृन्दावन, गोकुल, नंदगांव, बरसाना, महावन, डींग जैसे गांवों को बसाया। विभिन्न मंदिरों की स्थापना उन्होंने ही की थी। उनके द्वारा स्थापित मंदिरों में वृन्दावन का पुराने गोविंद का मंदिर (रंगदेव मंदिर के ठीक सामने), गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में राधा गोविंद का मंदिर, गोपेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया था। पर उनके द्वारा स्थापित सबसे प्रसिद्ध मंदिर मथुरा में केशवदेव जी का मंदिर था। केशवदेव जी का मंदिर वही मंदिर है जिसे आज श्रीकृष्ण जन्मभूमि कहा जाता है। श्री कृष्ण जन्मभूमि के विभिन्न मंदिरों में प्राचीन होने के कारण केशवदेव जी के मंदिर की प्रतिष्ठा बहुत अधिक है। हालांकि बज़नाभ जी के बाद भी केशवदेव जी का मंदिर अर्थात जन्मभूमि का मंदिर समय समय पर अनेकों राजाओं ने तैयार कराया था। प्राप्त ऐतिहासिक वर्णन निम्न प्रकार है -

(१) प्रथम मंदिर - भगवान श्री कृष्ण के प्रपोत्र बज़नाभ

(२)द्वितीय मंदिर - ईसा पूर्व ८० से ५७ के मध्य में सोडास के शासन में वसु नामक सेठ द्वारा

(३) तृतीय मंदिर - ४०० ईशवी के लगभग विक्रमादित्य द्वारा (इस मंदिर को महमूद गजनवी ने लूटा और नष्ट कर दिया था)

(४) चतुर्थ मंदिर - ईस्वी सन ११५० के लगभग मथुरा के राजा विजय पाल देव ने

(५) पंचम मंदिर - जहांगीर के समय पर ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला द्वारा (इस मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट किया था तथा मदिर के स्थान पर मस्जिद का निर्माण कर दिया। पर देव योग से मंदिर का गर्भगृह सुरक्षित रह गया।)

(६) वर्तमान मंदिर - प्राचीन मंदिर के शेष बचे गर्भगृह तथा आस पास और भूमि तैयार कर अनेकों भगबत्भक्तों के सौजन्य से दिनांक ६ सितंबर १९५८ को तैयार हुआ। जन्मभूमि के वर्तमान स्वरूप के लिये उत्तरदायी प्रमुख श्रद्धेय (१) आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने बाले तथा आजादी के बाद हिंदू और हिंदी के उत्थान में जीवन अर्पित करने बाले परम श्रद्धेय महामना मदन मोहन मालवीय (२) कल्याण के आदि संपादक तथा राधा जी के परम भक्त श्रद्धेय श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार (३) बिड़ला इंडस्ट्रीस के स्वामी तथा ईश्वर भक्त श्री जुगल किशोर बिड़ला जी।

आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।



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