vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy Inspirational

3.9  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy Inspirational

डायरी अठहरवाँ दिन

डायरी अठहरवाँ दिन

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प्रिय डायरी आज लॉक्डाउन का अठहरवाँ दिन है। लॉक्डाउन का डर लोगों में घर कर गया है। दिन पर दिन कोरोना महामारी के बढ़ते आँकड़े सभी को भयभीत कर रहे हैं। चारों ओर सन्नाटा पसरा है। परन्तु हम क्यूँ नहीं सकारात्मक सोचते की सबकुछ तो लॉक्डाउन नहीं है। घरों में प्रेम बंधन मुक्त है समय है की घर पर रह धूल खाए रिश्तों की धूल छाँटी जाए। फिर ये वक्त लौट के नहीं आएगा क्यूँकि तब और तेज रफ़्तार से दौड़ना होगा जो कुछ अभी छूट गया है उसे पकड़ने के लिए।

अभी वक्त है जो सपने अधूरे छूट गए थे या फिर समय की मार से अंदर ही दबे रह गए थे उन सपनों को उड़ान दें अपने शौक पूरे करें पेंटिंग, गायन, कविता, किताबें पढ़ना इत्यादि मन को शान्ति मिलेगी, दिमाग़ व्यस्त होगा, हमे शायद ईश्वर ने ये वक्त इसीलिए दिया है की हम अपने मन की भी कुछ कर सकें।

आशा के द्वार भी बंद नहीं हुए हैं यानी आशा लॉक्डाउन नहीं हुई है उसके द्वार खुले हैं। सकारात्मक ऊर्जा है उम्मीद का दामन नहीं छोड़ती और कहते हैं ना आशा से ही आकाश थमा तो फिर हम इसी सोच को बरकरार रख अपनी उम्मीद को अपनी आशा को ज़िन्दा रखते हैं की कल जो भी होगा अच्छा ही होगा... नई शक्ति नई किरण का प्रादुर्भाव होगा।


घर पर रहना है बंधन में नहीं रहना लॉक्डाउन हमारी सेहत का थोड़े हुआ है और ना ही योग करने का हुआ है। योग हमे स्वस्थ तो रखता ही है साथ ही मानसिक शान्ति भी देता है। योग से हम तन और मन दोनो से स्वस्थ हो जाते हैं, हम तनावमुक्त हो जाते हैं सारी नकारात्मक शक्तियाँ खत्म हो जाती हैं और स्फूर्ति का संचार हमे फिर से उत्साहित करता है। अब जब हम घर पर ही हैं कभी कभी निराशा के भाव आना स्वाभाविक है ऐसे मे सोचिए की योग पर प्रतिबंध नहीं है घर पर ही हो सकता है साथ ही नवस्फूर्ति और नवजीवन की ओर अग्रसर करता है योग। हर निराशा को भगा योग अपना का नारा लगा हम अपने आस पास के लोगों को भी जागृत कर उनके निराशा के भाव मिटा उनके चेहरे पर खुशी के भाव ला सकते हैं।

प्रिय डायरी लॉक्डाउन का नहीं हुआ है। हम अपना मन प्रार्थना में लगा सबके सुख की प्रार्थना कर सकते हैं बिना घर के बहार कदम रखे अपने ही घर पर एक नई शक्ति का संचार कर सकते हैं। सम्पूर्ण विश्व के स्वस्थ और सुखी होने की प्रार्थना कर सकते हैं।


प्रिय डायरी सेवा भाव भी लॉक्डाउन नहीं हुआ आप घर पर रहकर भी उन हज़ारों जरूरतमंद लोगों की मदद कर सकते हैं जिनके पास इस वैश्विक महामारी के चलते कोई काम धंधा नहीं है। खाने को रोटी नहीं है पीने को पानी नहीं है। अपनी ज़रूरतों को कम कर हम किसी के घर रोटी का इंतज़ाम कर सकते हैं। हमारी सोच हमारी भावनाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं और मानव कल्याण से बढ़ कर कोई धर्म नहीं। यथा संभव मदद कर हम अपने आप को मानवता की श्रेणी मे ही लाते हैं अपने सामाजिक होने का फ़र्ज निभाते हैं।


प्रिय डायरी लॉक्डाउन सूरज के उगने का भी नहीं हुआ वो अपनी गति से चल रहा है। दिन रात भी अपने समय पर ही हो रहे हैं। प्रेम का लॉक्डाउन नहीं हुआ है। प्रेम और सेवा से सबको सम्भालते हुए चलना ही जीवन है। परिवार मे समय व्यतीत करने का भी लॉक्डाउन नहीं हुआ। गिले शिकवे दूर करने का लॉक्डाउन नहीं हुआ। एक दूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहने का लाक्डाउन नहीं हुआ। घर का का काम करने का लॉक्डाउन भी नहीं हुआ है।सिर्फ़ घर से बहार निकलने का लॉक्डाउन है। घर पर रह भी हम जीवन जी सकते हैं। जिस घर पर रहने के लिए हम तरसते थे कहते नहीं थकते थे की भागते भागते थक गए हैं अब आराम करना चाहिए तो ईश्वर ने मौका दिया है की घर पर ही रह घर वालों के साथ समय व्यतीत करते हुए स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए क्यूँ ना सकारात्मक सोच ईश्वर का धन्यवाद करें की उन्होंने हमे एक अवसर दिया है इतने सारे अपने रुके हुए कामों को करने का.. हमे अपनी मन की करने का, तो फिर संकल्प करें लॉक्डाउन से घबरायेंगे नहीं डरेंगे नहीं घर में रहकर ही फ़र्ज पूरे करेंगे। प्रिय डायरी आज इतना ही मेरे मन की बात जो सबके साथ साँझा की मैने।सुनहरे कल की उम्मीद पर अपनी इन पंक्तियों के साथ अपनी कलम को विराम दूँगी...

आओ मिल एक संकल्प दोहराए

कुछ नया कर लॉक्डाउन को सफल बनाएँ

चिंता को दूर कहीं बहुत दूर भगाएँ

जन जन मे आशा की नई किरण जगाएँ।



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