दादी का बटुआ
दादी का बटुआ
"अरे!! बेटा ये सिर्फ खुले पैसे नहीं है, दादी के बटुए में छुपी है बच्चों की मुस्कान। बुआ का बचत खाता। दादी का जादू। तभी तो दादी जब बटुआ कहीं रखकर भूल जाए तो पूरा घर वास्को डी गामा की तरह खोज में लग जाता है -" सुरेश जी ने अपनी बेटी विद्या को कहा।
सुरेश जी ठहाका लगाकर खूब हंसे
इतने में बाहर से आवाज आई -' पापड़ वाला!! ए चिंटू, मुनिया, आ जाओ !! पापड़ वाला!!"
सब बच्चों ने आवाज़ सुनते ही दादी मां के कमरे को तरफ दौड़ लगाई।सब दादी को टुकर टुकुर निहार रहे थे, और पापड़ वाला घर के दरवाजे के सामने जानबूझकर जोर से आवाज लगा रहा था !
पापड़ वाला!! फिर से आवाज आई।
इतने में विद्या दौड़कर दरवाजे पर पहुंची -" अरे भैया!! रुको!! दादी मां आ रही है!!"
दादी मां -" ला भैया!! तुझे भी चैन नहीं पड़ता इस गली में आए बिना!!"
पापड़ वाला -" अरे अम्मा!! आपको ही प्रणाम करने आता हूं। दो पैसे भी बन जाते हैं और पानी मांगो तो पानी और कभी कभार तो अम्मा खाना भी खिला देती हो!! ऐसी बड़े दिलवाली अम्मा को प्रणाम करे बिना कोई कैसे चला जाएगा!!"
दादी मां -" बस !! बस रहने दे!! ज्यादा मक्खन ना लगा!!"
गुड़िया!! तेरी मम्मी और चाची से पूछ! उनके लिए भी ले लूं क्या!!
पापड़ वाला -" वाह दादी!! सबका ख्याल रखती हो!!"
दादी मां -" हां बेटा!! इन छोटी छोटी खुशियों से ही तो घर खुशहाल रहता है।"
वरना इस कोरोना की बीमारी का क्या भरोसा!! आदमी चल बसे तो कोई खोज खबर लेने भी ना पहुंचे!!
विद्या -" दादी मां !! बुआ का फोन आया है।"
दादी मां -" हां बिटिया!"
बुआ -" मां!! मैं आ रही हूं बच्चों को लेकर कल!! बहुत जिद्द कर रहे हैं।"
दादी मां -" ठीक है बेटा!! ले आ!!"
सब बच्चों में खुशी की लहर दौड़ गई।
शाम को सुरेश जी आए और कुछ खुले पैसे मां को दे दिए।
दादी मां -" अरे बेटा!! अभी पैसे हैं मेरे पास!!"
सुरेश जी -" कोई नहीं मां!! तुम्हारे बटुए से तो बच्चों के चेहरे पर मुस्कान रहती है। ये बटुआ नहीं खुशियों का खज़ाना है। ये कभी खाली नहीं रहना चाहिए।"
बुआ भी अगले दिन आ पहुंची, कुछ परेशान सी दिख रही थी!!
दादी मां -" सब ठीक है बेटा!! "
बुआ जी -" हां मां! बस इनकी प्राइवेट नौकरी है और , आजकल तनख्वाह कम मिल रही है।"
दादी मां -" कोई ना बेटा!! धूप छांव तो सबको देखने पड़ते हैं । अब तो बच्चे बड़े हो गए तू भी कुछ हाथ बंटा जमाई जी का।"
बुआ -" मां!! आजकल तो प्राइवेट नौकरियां भी नहीं मिल रही । कैसे हाथ बंटाऊ!!"
दादी मां -" शादी से पहले तुझे सिलाई सिखाई थी ना!! बस वही शुरू कर दे! काम करने में कैसी शर्म!!
कोई काम शुरू करेगी तो मदद भी मिल जाएगी, वरना कौन बार बार मदद करेगा; सबके घर मिट्टी के चूल्हे है बेटा!!"
बुआ -" मां मेरे पास तो सिलाई मशीन के भी पैसे नहीं!!"
दादी मां -" अरे विद्या!! मेरा बटुआ ला बिटिया!! कल ही मेरी पेंशन आई है। ले मशीन लेकर जाना!! मेहनत से ही परेशानियां हल होती है बेटा!!
दादी मां के जादूगरी बटुए ने बुआ के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी।
दोस्तों!! सच्ची खुशियां तो दुख सुख में परिवार का साथ, सबके साथ मिलकर छोटी छोटी खुशियां मनाने में ही होती है।घर के बड़े; पहरेदार होते हैं घर की खुशियों और एकता के। वो सबका बराबर ध्यान रखें तो कोई परिवार टूट नहीं सकता।