छत्रपति ३
छत्रपति ३


दीपांकर कल रात को देबू को समझा आया था कि अपने बाप को टाइम दें। जब बूढ़ा मर जाएगा तब बेकार में रोकर फायदा नहीं कम से कम जब तक जिंदा हैं तब तक उनके पास नहीं साथ रहने की आदत डाल लें। देबू समझा और अपना कर्त्तव्य पूरा करने के तरीके सोचने लगा।
कहने के अनुसार शाम को छत्रपति ताऊ पीपल के पेड़ के नीचे आए। उनके चेहरे पर कल वाले दुख के दाग़ तो नहीं थे पर सिगरेट ख़त्म कर जाने को हुए तो हाथ जोड़कर कहा कि मुझे पता है तुममें से कोई है जिसने मुझे खुशी दी है। तुम सबको मेरा आशीर्वाद है बस किसी तरह मेरा छाता मुझ तक पहुंचा दो। उनकी आंखों से फिर आंसू ढुलक गये।
सारे लड़कों के दिमाग में अब जासूसी कीड़ा पनपने लगा। तमाम अंदाजे लगाए गए आखिर देबू ने छत्रपति का छाता कहां फेंका? दो लड़के छत्रपति के घर के पास से होकर आए, अच्छी तरह देख भी लिया पर छाता नहीं मिला। सबने फिर दीपांकर से कहा कि तू जाकर पूछ ले पर वह नहीं माना, उसका कहना था कि उसे जो कहना था उसने कहा दिया अब और नहीं क्योंकि impression बिगड़ जाएगा। तो फिर कैसे पता लगाया जाएगा?
बाबू की बहन नीलू..... बिंदास लड़की, कुछ भी कर सकती है। बाबू को गुटखे का पैकेट देकर पटाया गया। पटाना करता था इस लॉकडाउन की हालत में छत्रपति हमारे लिए कुछ जरूरी प्रोजेक्ट जैसा बन गया था। नीलू तक बात पहुंचाई गई। शुक्र है उसने हां कर दी। उसी शाम नीलू छत्रपति के घर पहुंची। कॉलिंग बेल बजाया, देबू की पत्नी सुनंदा ने ही दरवाजा खोला। हालांकि सुनंदा ब्यूटी पार्लर में काम करती थी इसलिए नीलू को बात रखने में परेशानी नहीं हुई। इधर उधर की बातें करने के बाद नीलू ने पूछा भाभी कोई पुराना छाता होगा क्या? सुनंदा ने कारण। पूछा, नीलू ने बताया कि उसे छाते के स्पोक चाहिए। सुनंदा ने फिर पूछा तो इसके लिए तो छाता तोड़ना होगा। नीलू ने कहा हां तोड़ना ही है। सुनंदा उठी और घर के स्टोर रूम के एकदम पीछे से एक छाता लाकर। नीलू के हाथ में थमाकर कहा किसी से मत कहना कि मैंने छाता तुम्हें दिया है। इनके आने के पहले छाता लेकर निकल लो।
नीलू थैंक्स बोलकर वहां से निकल गई। यह कोलोंबस के अमरीका की खोज से भी ज्यादा महत्वपूर्ण घटना थी। नीलू ने बाबू को छाता दिया और देबू से बात करने की जिम्मेदारी लें ली। दर असल नीलू को सारी बात बताई गई तो उसे भी लगा कि छत्रपति ताऊ की मदद कर सके तो अच्छा है। वैसे नीलू काफी छोटी है पर उसे देबू भैया से बात करने में कोई हिचक नहीं है।
दूसरे दिन सुबह बाबू ने सबको मैसेज भेज कर आविष्कार की सूचना दी। उसने छत्रपति का छाता खोला तो आश्चर्य हुआ क्योंकि छाता शायद पहली बार खोला गया था। छाते के कपड़े के सिलवट अब भी वैसे ही थे बस डंडा थोड़ा मुड़ गया था। नीलू ने कहा कि देबू भैया से बात करने के पहले उसे छाता चाहिए। वह छाता लेकर ही बात करेगी।
अब जब उसने इतना कर ही दिया है तो उसपर यकीन करने के अलावा कोई और चारा नहीं था। नीलू को छाता दिया गया। दोपहर को खाना खाकर देबू भैया जरा सा घर से निकले तो नीलू उनके पास जाकर खड़ी हो गई। देबू भैया ने हंसकर उससे पूछा "क्यों रे पगली, इतनी धूप में कहां घूमने निकली है?" नीलू ने सीधे कहा "आपके पास ही आ रही हूं।" देबू ने हैरानी से कारण पूछा तो उसने कहा "भैया, ताऊजी का छाता छिपाकर क्यों रखा?" इस अप्रत्याशित प्रश्न ने देबू को हिला दिया। छिपाकर रखा मतलब? छाता को गया था। पिताजी ने ही, कहीं रखा अब भूल गए हैं। देबू ने उत्तर। दिया। नीलू बोली हालांकि आपसे बहुत छोटी हूं और आपको कुछ बोलने की हैसियत नहीं है फिर भी हिम्मत जुटाकर बात करने आई हूं। कल भाभी ने इसे स्टोर रूम के एकदम पीछे से निकालकर दिया था। भैया, शायद आपकी या भाभी की नज़र में यह बस छाता है पर सच तो यह है कि इस छाते में ताऊजी आपकी मां को ढूंढते हैं। अपना सारा रुपया पैसा देकर भी वे यह छाता वापस ले लेते। उनकी पूरी जायदाद के नाम पर बस यही एक सामान है। पता है सबसे अचरज की बात क्या है? चाहे धूप हो चाहे बारिश छाता खराब हो जाने के डर से ताऊजी ने इसे कभी खोला ही नहीं।" नीलू ने छाता आगे करते हुए कहा "पता है देबू भैया, जब ताऊजी नहीं रहेंगे इसी छाते में आप अपनी मां और पिता दोनों को खोज पाएंगे।" नीलू की आंखें नम हो गई, पर इस क्यो का कोई उत्तर नहीं है। देबू चुप हो गया और छाता हाथ में लेकर नीलू के सिर पर हाथ फेरा, कुछ बोलना चाहता था पर गले ने उसका साथ नहीं दिया।
उस शाम सबने फिर छत्रपति को उसी पुराने अंदाज में आते देखा तो बहुत खुश हुए। हाथ में छाता लिए वे मजे से चल रहे थे।
दूसरे दिन सुबह खबर मिली छत्रपति ताऊ नहीं रहे। उनकी लाश देखी तो पता चला कि छाता को सीने से लगाकर ही वे ताई के पास चले गए। शायद दो दिन तक छाते से दूरी ने उन्हें अंदर से इतना कमजोर बना दिया था कि इस बार छाता मिलने पर वे दोबारा उसे खोना नहीं चाहते थे।