छत्रपति २
छत्रपति २


छत्रपति आए, उन्होंने बताया कि कैसे उनके बेटे देबू ने बहू की बात मानकर उनका छाता फेंक दिया। वह। उनके लिए सिर्फ छाता नहीं है उनकी पत्नी की यादों से सराबोर वह निशानी है जिसके बल। पर वे आत्म-निर्भर बने थे, पर आज जैसे उसमें दरार आ गई है। आज उन्हें यह रहकर अपना अकेलापन महसूस हो रहा है।
उस शाम पीपल के पेड़ के नीचे और भी दूसरे लड़के थे। बात पूरी कोलोनी में फैलेगी जरूर। इसके पहले कि बात ग़लत तरीके से देबू के पास पहुंच जाए उसके पहले कोई देबू से बात कर लेता तो अच्छा होता। क्या पता कल बाप बेटे में कहा सुनी हो जाए और छत्रपति खुदकुशी कर लें, या फिर समाज में देबू की किरकिरी कर आने के गुस्से में देबू ही अपने बाप को कुछ कर ले। माना कि ऐसा नहीं भी हो सकता है पर सुझाव देने और मसाला लगानेवालों की कभी थोड़े ही है? दीपांकर देबू की उम्र का है, हालांकि उसकी शादी नहीं हुई तो वह इन लड़कों के साथ घूमता है पर समझदार भी है। मार्केटिंग का काम करता है दस तरह के लोग उससे मिलते हैं तो वह देबू को भी समझा सकता है। अंधेरा होते-होते वह छत्रपति के घर गया। दीपांकर को देखकर देबू ने उसे घर में बुलाया पर ऐसी बातें घर के बाहर ही ठीक हैं, इसलिए दीपांकर, देबू को बाहर ही बुला लाया।
दीपांकर ने देबू से सारी बातें बताई, देबू गुस्से और शर्म से कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसने अपना पक्ष रखा- "यार मेरा बाप साइको हो गया है। दिन भर छाते से चिपका रहता है, उसी से बात करता है। तू ही बता लैट्रीन में छाता लेकर जाने का क्या तुक बनता है? फिर वही छाता लेकर घर भर में घूमते हैं। घर कितना साफ किया जाए? दिन भर तो ठीक है पर रात को भी बिस्तर। पर। छाता लेकर सोना,। हां, तू ही बोल इतनी बीमारी फैल रही क्या है अगर किसी एक को कुछ हो जाए तो घर भर का बचना मुश्किल है। कुछ तो समझें, पर। नहीं उन्हें तो कोई परवाह नहीं, करें कुछ भी इंफैक्शन घर मैं फैल सकता है। मैं उनके लिए बांस भी लाया पर फायदा कुछ नहीं निकला। माना कि वे बांस से शुरुआत में थोड़ी परेशानी होती पर धीरे धीरे सब ठीक हो जाता। मां जिंदा थी तब तो वहीं सब संभाल लेती थी। अब ये पूरे कोलोनी में घूम घूमकर कह रहे हैं कि बेटा और बहू अत्याचार करते हैं। मां की जगह ये ही मर जाते तो ठीक होता कम से कम ये दिन तो देखना नहीं पड़ता।" मानो दिल की पूरी भड़ास देबू ने एक साथ निकाल दी।
दीपांकर भी सेल्स का मंजा खिलाड़ी था। उसने देबू को समझाया कि "मैं तुझे यहां ताऊ की शिकायत करने नहीं आया, तुझे समझाने आया हूं कि तू अपने बाप से कितनी देर बात करता है? तेरी बीवी उनसे कितनी देर बात करती है? बोल? देबू की नब्ज़ दीपांकर ने पकड़ ली, देबू ने सिर हिलाया। दीपांकर ने आगे कहा "उन्हें भी तो किसी से बातचीत करने का दिल करता होगा? आज ताई होती तो वह कमी न होती पर भाई एक छत के नीचे रहना और जिंदगी में साथ रहना दोनों बातों में बहुत फर्क है। तू उनके पास रहता है पर साथ नहीं रहता। तुझे शिकायत है कि लैट्रीन में छाता लेकर जाते हैं पर कितने दिन तूने उनकी मदद की? तेरे पास तो टाइम ही नहीं है अपने बाप के लिए। तुझसे एक पैसा बिना मांगे वे चल रहे हैं। आए दिन बाजार से सब्जी लाते हैं, उन्हीं के बनाए मकान में रह रहा है। तेरे बाप को कुछ नहीं चाहिए हो सके तो टाइम दें। तुझे एक बात कहूं? गलती से भी अगर तूने अपनी पत्नी के मां बाप को कुछ कह दिया तो वह घर सिर पर उठा लेगी तो किस हैसियत से वह तेरे बाप को बुरा भला कह सकती है? . अब तू बेटा नहीं रहा तू तो पति बन गया है। काश तेरी जगह उनकी एक बेटी होती तो उन्हें यह दिन देखना नहीं पड़ता।"
देबू को सांप सूंघ गया। वह चुप होकर दीपांकर की ओर देखने लगा। उसने महसूस किया कि दीपांकर की एक बात भी झूठ नहीं है। उसे अपने पर शर्म आई। उसने दीपांकर से कहा अंदर आ। दीपांकर ने मना किया पर वह नहीं माना। वह खींच कर उसे घर ले गया। पत्नी से चाय बनाने की फरमाइश की तो पत्नी अंदर से चिल्लाती कि खाना पकाना छोड़कर चाय नहीं बना सकती। दीपांकर के सामने देबू की नाक कटी। उसने बताया मेहमान आया है। उसकी पत्नी किचन में बड़बड़ाने लगी।
देबू अपने बाप को भी बुला लाया, शायद ऐसा पहली बार हुआ कि ड्राइंग रूम में बैठकर छत्रपति अपने बेटे के साथ चाय पीते हुए टीवी देख रहे हैं। चाय पीकर दीपांकर जाने को तैयार हुआ। देबू उसे छोड़ने गेट के पास आया और उसे गले से लगाकर बोला " तूने आईना नहीं दिखाया होता तो मैं अपना चेहरा नहीं देख पाता।"
दीपांकर की बात का असर था या देबू की अंतरात्मा जाग उठी पर उस रात देबू देर तक छत्रपति से बात करता रहा और उन्हें सुलाकर ही खुद सोने आया।आज देबू को एक अलग सी राहत महसूस हो रही थी।