भोला गिरि - २
भोला गिरि - २
हमारे कोलोनी के पास शमशान में हम लोगों ने एक कथावाचक खोज निकाला जो भूत की कहानियां सुनाकर हमारे लॉकडाउन में अच्छे टाइमपास का जरिया बन गया।
हम चार-पांच लोग उस बाबा से मिलने शमशान गये। साथ में सिगरेट का पैकेट भी ले गये जिसमें बामुश्किल दो ही पीस बचे होंगे। उस दिन जब बाबा को देखा तो अमर ने पहले सिगरेट का पैकेट बाबा के हाथ में थमाया। बाबा भी खुश.....जीत ने उनसे पूछा, "आपका नाम क्या है?" माचिस की तीली से सिगरेट जलाते हुए बाबा ने बस किसी तरह होंठों को बंद कर कहा "भोला गिरि।" "तो हम लोग आपको भोले बाबा बोल सकते हैं?" जीत ने पूछा। उन्होंने कहा, "क्या फर्क पड़ता है जब तक देह है तब तक ही नाम है, देह छूटेगा तो नाम भी मिट जाएगा।" राहुल बोला, "मां कसम बाबा क्या बात बोला, हिट कर गया डायरेक्ट यहां" कहकर उसने अपने दिल की तरफ इशारा किया। बाबा खुल के हंसे। लंबा कश मारकर धुआं छोड़ते हुए कहा, "साला शरीर मरना नहीं चाहता, आत्मा निकल भी जाए तो साला चाहता यही है कि फिर घुस जाए, पर इस देह से निकलने के रास्ते हैं घुसने के नहीं। पर तरीका है उसे जिंदा करने का पर वही आत्मा आएगी वह कह पाना मुश्किल है। ऐसा हुआ भी था। उस समय मैं घूमते हुए बनारस पहुंचा। अपना घर यहां और कहां बनारस? हां, पैदल ही चला था। ठहरने को कोई ठिकाना नहीं था तो चलते चलते नदी के किनारे पहुंचा।
गर्मी का मौसम था और नदी की हवा के बीच होने का मजा लेने के लिए वहीं सोने की सोचकर कंबल डालकर लेट गया। बस आंख लगी ही थी कि किसी ने पुकारा, "उठकर भाग यहां से।" तब जवान था देह में ताकत थी किसी से डरना नहीं सीखा। लेटे-लेटे ही बोला, "एक बार लेट गया तो उठूंगा नहीं।" अगला भी अड़ियल था, बोला "मौत आएगी तेरी।" जो होगा देखा जायेगा यही सोचकर सोने लगा। फिर पानी में कुछ हलचल हुई तो आंख खोलकर देखने लगा, देखा वह आदमी पानी से कुछ खींच कर निकाल रहा था। रात के अंधेरे में भी दिख रहा था, मैं चौंक गया वह आदमी पानी से लाश उठा लाया था। किनारे लगाकर उस लाश के साथ कुछ-कुछ करने लगा और फिर उसपर सवार हो गया। शुरुआत में मैं कुछ नहीं समझा। पर धीरे धीरे उस जगह की आबोहवा बदलने लगी।
वह आदमी जोर जोर से एक ही मंत्र बोल रहा था। मैं उठकर बैठ गया और देखने लगा। रात गहराती गयी, कहीं कहीं से अजीबोगरीब आवाजें आने लगीं। अचानक लाश में हलचल हुई, मैंने साफ़ देखा लाश बैठ गई थी और उस आदमी के मुंह से अपना मुंह लगा दिया। शायद डर के कारण वह आदमी गिर गया और पानी की ओर लुढ़क गया। मुझसे रहा नहीं गया और मैं कंबल छोड़कर उसे बचाने भागा। मैंने देखा कि वह तब तक पानी में गिरकर दूर बहने लगा।
आखिर माजरा क्या है इस बात को जांचने के लिए मैं उस लाश की ओर गया।
हिम्मत जुटाकर उस आदमी की तरह ही उसपर बैठ गया और वह जिस मंत्र का जप कर रहा था मैंने वह चालू कर दिया। रात बिल्कुल गहरा चुकी थी। हालांकि मेरी आंखें बंद थीं पर मुझे एहसास हुआ कि कई लोग मेरे आसपास घूम रहे हैं। हवा में दुर्गन्ध भर गई जिससे मेरा सिर फटा जा रहा था, पर मैं लगा रहा।
मैंने आसपास के हलचल को देखने के लिए आंखें खोल दीं और मैंने देखा कि एक सियार सामने खड़ा गुर्रा रहा है। मुझे लगा कि अगर इसने काटा तो बड़ी हानि होगी, मैं पागल तक हो सकता हूं। मैंने लाश से लपककर सियार को पकड़ा और उसकी गर्दन पकड़ ली, उसकी जीभ जो मुंह से बाहर निकल आई थी मैंने उसे खींच कर सियार को मारने की कोशिश की। इसी कशमकश में मेरा हाथ तिल गया और खून की कुछ बूंदें सियार के मुंह में चली गई साथ ही मैं गिर गया। तब तक सियार मेरे हाथ के चंगुल से छूटकर ना जाने कहां भाग गया।
मैंने देखा कि करीब पंद्रह-सोलह साल की लड़की मेरे सामने खड़ी हंस रही थी। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस बीच रात को यह लड़की अचानक कहां से आ गई ?
उसने कहा बोलो क्या चाहिए। मैंने कहा कुछ नहीं चाहिए। उसने फिर कहा तो बुलाया क्यों था ? मैंने सीधा कहा, न मैंने बुलाया ना मुझे कुछ चाहिए। पर तुम हो कौन जो इतनी रात को ऐसे घूम रही हो। उसने कहा मैं काली हूं। पर मैंने मुर्तियों में जैसे देखा वह तो ऐसी नहीं है। मैंने भी कहा प्रमाण दो। फिर मैंने जो देखा उसे कहा नहीं जा सकता। मैं डरकर बेहोश होने लगा। किसी तरह होश संभाला और कहा कि मां अगर आपको मुझे कुछ देना है तो बस बुलाने पर दर्शन देते रहना और कुछ नहीं चाहिए। देवी हंसकर वहीं हवा में मिल गई।
इधर थोड़ी देर बाद उस मरे हुए साधु को खोजने के लिए एक दूसरा आदमी आया। लाश के पास मुझे देख कर वह चौंक गया। वह। मुझे लेकर किसी आश्रम में गया। मैंने सारी बातें उनके गुरु को कहीं। उन्होंने ही मुझे दीक्षा दी और यह नाम दिया। तब से आज तक जब भी मैं माई को बुलाया हूं वह आती हैं।"
भोला बाबा ने कहानी समेटी और उठ खड़े हुए। हम जान गए कि यह हमारे जाने का इशारा हो गया। कल फिर लौटने का कहकर हम लोग वापस आ गए।