छत्रपति
छत्रपति
उन्हें छत्रपति कहने का विशेष कारण है। चाहे मौसम कैसा भी हो उनके हाथ में लंबा डंडा वाला छाता जरूर रहेगा। जैसे त्रिशूल और बांसुरी के बिना शिव और कृष्ण की पहचान मुश्किल है वहीं संबंध छत्रपति का अपने छाते से है। हालांकि उनको यह नाम हम लोगों ने दिया था पर उनका असली नाम कुछ और है जो शायद अब कम लोग ही जानते होंगे। वैसे छत्रपति को अपना छद्म नाम पता है और उन्हें संभवतः इससे आपत्ति नहीं है। उनके कारण ही लोग कोलोनी को पहचानने लगे हैं।
खैर इधर कोरोना महामारी फैली और सरकार ने लॉकडाउन घोषित कर दिया। लॉकडाउन भी ऐसा जो द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ता जा रहा था। दिन भर घर में बैठे-बैठे शाम को सोशियल डिस्टेंसिंग का पिंडदान कर सारे लड़के कोलोनी के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर अड्डा जमाते जिसमें देश की राजनीति से लेकर कोविद-१९ के हालात पर चर्चा होती। यहीं पर ब्लैंक में गुटखा सिगरेट सब मिल जाता है। बस जेब गरम होना चाहिए। कभी उधारी भी चल जाती।
उस शाम सबने पहली बार छत्रपति को बिना छाते के देखा, आश्चर्य हज़रत का छाता कहां गया? ज्यादा सिर मारने से अच्छा है उन्हीं से पूछा जाए। एक लड़का आगे बढ़ा और जिज्ञासा व्यक्त किया। अचानक छत्रपति आग बबूला होकर चिल्लाए- शाला शुवरेर बाच्चा मजाक करता है? आवाज़ काफी तेज थी। लड़का लौट आया,। वह इस आक्रमण से डरा भी शरमाया भी और गुस्से से चुप भी हो गया।
फिर सबने देखा छत्रपति पीपल के पेड़ की तरफ ही चले आ रहे हैं। पर पूरी तरह लंगड़ाकर। लड़कों ने उनकी ओर ध्यान देना खतरनाक माना, सबके बापों के बराबर की उम्र होगी उनकी ऐसे में उनसे ज़बान लड़ाना भी ठीक नहीं। वे पास आकर सीधे बोले सिगरेट है किसी के पास तो देना। नशेड़ी एक दूसरे की कमजोरी जानते हैं। त
िस पर माहौल ऐसा है कि शेर और हिरण को एक ही घाट पर पानी पीना पड़ रहा है। सिगरेट दिया गया। छत्रपति ने लंबा कश मारा और उनकी आंखों से आंसू बह आए। खुद ही बोले " बुढ़िया ने मरने से पहले छाता खरीदकर कहा था वह अपनी जान छाते में डालकर जा रही है। इसी बात पर यकीन मानकर मैंने छाता एक पल भी खुद से अलग नहीं किया। रेलवे में काम करते हुए एक पैर कट गया। बुढ़िया के रहते कभी यह बात किसी को पता नहीं चली। जाते-जाते छाता थमा गई कि आगे भी कोई कमजोरी जान न पाए। पर शाला देबू ( उनका बेटा) की बीवी अब घर में बैठे-बैठे मेरी गलती निकालती फिर रही है। एक पैर से पाखाने में बैठना मुश्किल है, वहां भी छाता ही काम आता है। कमीनी ने देबू से कहकर वह बंद करवा दिया। देबू मोटा-सा बांस लेकर आया पर उसका सहारा काफी नहीं था। उनको मेरा छाता छुआ लगने लगा और छाते के साथ मैं भी। छाता कहीं-कहीं उखड़ गया था। उसी ने मोबाइल देखकर देबू से कहा था घर में टूटी चीजें मत रखो फिर क्या था आज मेरा छाता ही फेंक दिया।" उनके आंसू की धार रुक ही नहीं रही थी। आज पता चला छत्रपति की पत्नी अपने न होने पर भी अपने पति को कैसे आत्म-निर्भर बनाकर गई थी। छत्रपति की कमजोरी आज दुख के कारण निकल गई पर उससे ज्यादा दुख उन्हें इस बात का था कि आज सही में उनकी पत्नी का साथ छूट गया।
आंखों से आंसू पोंछते हुए उन्होंने पूछा क्या कल से मैं भी आ सकता हूं? सबने उन्हें आने को कहा। छत्रपति ने जेब से पांच सौ का नोट निकाला और उस लड़के के हाथ में थमाकर कहा जाकर सबके लिए सिगरेट ले आना। कल्ब का जोइनिंग फीस दे दिया कल फिर मिलना का बोलकर छत्रपति लंगड़ाते हुए चले गए।
सब सोचते रहे प्यार ऐसा भी होता है। उस शाम अंधेरा होने तक सब उन्हीं की बात करते रहे।