भोला गिरि -१
भोला गिरि -१
लॉकडाउन का खालीपन, तिस पर बारिश। अक्सर दिन में धूप कम ही निकल रही है। वैसे जब कुछ काम न हो और मौसम भी ऐसा हो तो सबसे ज्यादा मजेदार काम होता है भूत की कहानी सुनना। एकाध दिन हम दोस्तों ने अपनी सुनी कहानियां दूसरों को सुनाई, इंटरनेट पर सर्च कर काफी कुछ खोजा पर मजा नहीं आ रहा था। ऐसे में ख्याल आया क्यों न शमशान जाकर देखा जाए क्या भूत-प्रेत सही में होते हैं ? शमशान भी दूर नहीं है पैदल ही जा सकते हैं, वहां पुलिस की नजर भी नहीं जाएगी और हमारा काम भी हो जाएगा।
फिर क्या था चार-पांच हिम्मतवाले जुटे और चले गए शमशान। वहां पहुंचकर एकाध अपनी हिम्मत का परिचय देते हुए "मिस्टर भूत, हैलो, कहां हो" कहकर चिल्लाने लगे। "नहीं मिलेगा गधों भागों यहां से" इस कर्कश आवाज ने हम लोगों को डरा दिया। मुड़कर देखा काला कपड़ा कमर में लपेटा एक दुबला आदमी खड़ा था। उसने अपनी बात आगे बढ़ाई, "किसने कहा शमशान में भूत होते हैं, यह काली और महाकाल का घर है भूत प्रेत का नहीं। हमने एक दूसरे की तरफ देखा। अब आ ही गये हैं तो बिना कुछ कांड किए या बिना सबूत लिए जाने का कोई कारण भी नहीं। "आप यहां अकेले रहते हैं ?" जगदीश ने पूछा। उस बाबा ने ना में सिर हिलाया। जगदीश ने बात आगे बढ़ाई, "फिर कौन है आपके साथ ?" बाबा बोला, "माई है।" उसके घर की तरफ देखा पर घर तो खाली है।
"क्या देखता है ? चल भाग।" बाबा चिल्लाया। "ओ ढोंगी बाबा, चिल्लाना मत, अपनी मर्जी से आए हैं जब तक मर्जी रहेंगे, ज्यादा बकोगे तो तुम्हारा भी लॉकडाउन कर देंगे।" अमर ने भी पलटकर कहा। "और हां अगर पुलिस को खबर कर दी ना तो ऐसी मार पड़ेगी कि बैठना मुश्किल हो जाएगा।" जीत ने कहा। जो भी चाहे रौब से डरकर ही हो चाहे अपनी दुर्दशा के बारे में सोचकर ही हो बाबा कोमल होकर बोला, "भैया शमशान में क्या मिलेगा ? सिर्फ राख।" कहकर हंसने लगा। राहुल ने पूछा, " क्या आपने कभी भूत देखा है ?" तब तक अमर ने सिगरेट सुलगाई। सिगरेट देखकर बाबा बोला, "एक मिलेगा ?" अमर ने लंबा कश मारा और सिगरेट बाबा को थमा दिया। इस उपकार ने बाबा को पिघला दिया और वह खुद आगे आकर बैठ गया और हमें भी बैठने का इशारा किया।
हम बैठे और बाबा ने दम मारते हुए अपनी कहानी सुनाई। "तब मैं तुम लोगों की उम्र का छोरा था शायद थोड़ा और छोटा था। उस समय के गांवों में न बिजली थी ना रास्ते थे। लोग भी कुछ खास नहीं होते थे। ऐसे में एक रात किसी दूसरे गांव में काली की पूजा हुई थी। तब के दिन थे कि बहुत जरूरी ना होने पर काली पूजा नहीं होती थी, ब्राह्मण भी अक्सर मना ही कर देते थे। छोड़ो....पास के गांव में बस हरिनाथ शर्मा नाम का एक आदमी था जो गांव शहर हर कहीं काली पूजा करता था। हमारे यहां बिना बलि के पूजा नहीं होती थी तो बलि काटने के लिए मेरे पिताजी उनके साथ चल देते थे। शर्माजी की आदत थी कि रात को ही पूजा खत्म कर मूर्त्ति विसर्जित करवाकर लौट आते थे। पिताजी उन्हें घर पहुंचाकर फिर घर आते थे।
उस रात भी यही हुआ।
रास्ते भर शर्माजी मेरे पिताजी को यही बोलते रहे कि ना जाने क्यों हवा भारी लग रही है। पिताजी को भी उस रात कुछ बेचैनी-सी महसूस हो रही थी। उस रात पिताजी बलि के बकरों का सिर अपने साथ यही सोच कर लाए थे कि कल दोपहर को यही खाया जाएगा। मांस खाना भी नसीब है क्योंकि इतने पैसे में एक बकरा खरीदकर सबको बांटने की औकात भी नहीं थी। पिताजी ने शर्माजी को घर पर छोड़ा और कुछ ही दूर आए कि उन्हें एक आवाज सुनाई पड़ी कोई उनसे बकरे के सिर मांग रहा था, सिर्फ आवाज ही थी आवाज भी बड़ी अजीब-सी मानो नाक से बोल रहा हो, पर कोई दिख नहीं रहा था। पिताजी ने हिम्मत जुटाकर मिट्टी के कुछ ढेलों में पेशाब कर दिया और आवाज की दिशा में फेंक कर मारा। गांव में ऐसा ही करते हैं, सबको ऐसा सिखाया भी जाता है।
पिताजी ने घर की तरफ दौड़ लगाई और किसी तरह घर का दरवाजा खटखटाया। मां ने दरवाजा खोला। अंदर आकर उन्होंने खिड़की खोली और बकरे के सिर बाहर फेंक दिए। किसी के चबाने की आवाज साफ सुनाई पड़ रही थी। मुझे इस अनदेखी दुनिया की खोज का ऐसा जुनून सवार हुआ कि मैं अघोरी बन गया, अब तुम लोग जाओ।" इतना कहकर बाबा उठा और एक ओर चल दिया। अमर बोला, "कहानी अच्छी बना लेते हो कर फिर आएंगे। सिगरेट भी मिलेगा।" बाबा ने बड़ा अपशब्द कहकर बात आगे रखी " जिस दिन दिखेगा उस दिन से हागना भूल जाएगा।" हम लौट तो आए पर ऐसा कथावाचक और कहीं नहीं मिलेगा यह सोचकर अगले दिन फिर वहां जाने का प्लान फिक्स कर घर लौटे।