Bhawna Kukreti

Abstract

4.7  

Bhawna Kukreti

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छलावा

छलावा

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तारीख: ____

प्यारी डायरी,

तुम्हे पिछली बार बताया था की पूरे दो साल बाद उस से आज रूबरू होउंगी। पता नहीं हम कैसे मिलेंगे मगर जो भी होगा इमानदारी से तुमसे बाटूँगी। नर्वस हूँ, मगर जा रही हूँ । मुझे गुड लक नहीं कहोगी? आती हूँ जल्दी पास तुम्हारे।सिर्फ शाम तक की ही तो बात है। ढेर सारा प्यार तुम्हे,नहीं पहले उसे दे आऊं, फिर तुम्हे। चलो मिलती हूँ शाम को।




लो लौट आई मै तुम्हारे पास। कैसे क्या लिखूँ? दो घण्टे हो चुके तुम्हे खोले।

ये तुम्हारे कोरे पन्ने मुझे घूरे जा रहे हैं। जैसे मेरे कुछ लिखे बिना मुझे पढ रहे हों।देख रही होंगी, इस वक्त इन आँखों मे सब्र का बांध भी नहीं है मगर आंसू वहीं पलकों को पकडे बैठे हैं। दिल से उठता दर्द बस खुद ही बिखर जाने की राह देख रहा है। और मैं एकटक देखे जा रही हूँ पास मे रखी उसकी तस्वीर। जो आज आखिरी मुलाकात मे पहली बार ली है। एक रूमानी रिश्ते की याद के लिए।

ओके, तुम्हारे कोरे पन्ने इस से पहले की मुझसे शिकवा करें और अंधेरों मे खींच ले जाए, इस लिए कुछ कुछ लिखती हूँ । उम्मीद है की तुम मेरे जज्बात और हालात को समझ सकोगी।



वो

क्या था

जो पल मे रहा

पल मे बहा और

अब कहीं भी नहीं।


छलावे सा वो कहीं भी नहीं,

या हो शायद अब भी कहीं।




रात आज बहुत स्याह सी लग रही है।नींद भी इन अंधेरों मे गुम हो गई है।

तुम सोच रही होगी की अब मैं अजीब होती जा रही हूँ। साफ लिख भी नहीं रही और मन मे रख भी नहीं रही। हाँ तुम सही हो।

उसने कहा वो नहीं छल रहा मुझे, सिर्फ उसका नजरिया बदल गया है। हमारे रिश्तों को लेकर उसने कहा" आज से हम बस दोस्त हैं,अगर तुम्हें मंजूर हो, वरना तुम स्वतंत्र हो" , भला वो एसे कैसे कह सकता है? मगर मैने ये मान भी लिया!!!!


तुम सोचोगी कि ये मैं क्या कर रही हूँ? अब मैं खुद को ही छल रही हूँ । वर्ना आज अपने साथ उसकी तस्वीर क्यूं लेती? यही न?!


नहीं-नहीं, मैं नहीं छल रही खुद को बल्कि "सजा" दे रही हूँ, अपने आप को । उसके इश्क़ मे खुद की पहचान को भूलने की,उसकी भूल भुलैया मे उसके साथ भटक जाने की। दिल डूबा जा रहा, दिमाग फटा जा रहा.......बस आगे नहीं लिख पाऊंगी।


तुम बनी रहोगी न साथ मेरे। जहाँ अब तक रूमानी जज्बात बटोरे तुमने, अब कुछ दर्द भी रख लेना।और कभी सुनते सुनते दर्द से भर आओ तो खामोशी से गले लग जाना।


तुम्हारी

हमेशा।


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