adv archana bhatt

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3.9  

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छाया

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छाया सदैव लंबे घने वृक्षों से मिला करती है। आदमी तेज धूप में चल रहा हो या काम कर रहा हो तो उसे उस वक़्त आराम के लिए पानी या छाया का सहारा चाहिए होता है, जब उसे वह घने लंबे वृक्ष मिल जाते हैं तब वह उन लंबे घने वृक्षों के नीचे आराम पाता है और अपने शरीर की थकावट को दूर करता है, उस वक़्त आदमी आंख बंद कर दूर एक काल्पनिक दुनिया में चला जाता है। जिस सतह पर आदमी बैठे है उस वक़्त वह उस से काफी ऊपर एक नई सोच में डूबा होता है।


जब किसी के साथ कोई दुखद घटना घट जाती है और उस वक़्त कोई भी उसके साथ न हो तो उस आदमी को बहुत अजीब हालातों का सामना करना पड़ता है। 


ऐसी अजीब सी परिस्थितियों में आदमी टूट जाता है, और वो बहुत अकेलापन महसूस करता है, ना जाने कितने अजीबोगरीब ख्याल आने लगते हैं, अपने पराये लगने लगते हैं, कोई तो परेशानी में देख मुहँ फ़ेर लेता है, ऐसे में आदमी का मानवता से विश्वास उठ जाता है।


"ऐसे वक़्त में जब कोई आपके पास आकर आपके सिर पर प्यार से अपना हाथ फेर के यह बोले कि परेशान ना होना, हम है तुम्हारे साथ जो भी होगा मिलकर देख लेंगे।


' यह सिर पर प्यार से हाथ फेरना भी किसी "छाया से कम" नहीं , परेशान आदमी का हौसला बढ़ जाता है और आदमी खुद को सम्भालने लगता है,।


आप भी ऐसे किसी अपने की छाया बने।



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