दोस्ती कब प्रेम में बदल गई
दोस्ती कब प्रेम में बदल गई
बात उन दिनों की है जब मैं सन 2008 में मात्र 19 वर्ष की थी बी ए प्रथम वर्ष के पेपर दे रही थी, मैं 4 बहिनों में सबसे छोटी बहिन थी, मेरे बाद मेरा छोटा भाई था।
एक दिन मेरे छोटे भाई के साथ उसका एक दोस्त घर आया, हम सब बहिनों को प्रणाम कर फिर वह मेरे माता पिता से मिलने उनके कमरे में चला गया, जब दोनों पिता के कमरे से बाहर आए तो भाई ने बताया कि यह प्रवेश है जो कि हमारे घर के नीचे की तरफ टाइप 3 में रहता है। मैंने पूछा कौन से स्कूल में पढ़ता है तो पता चला कि ऋषिकेश बोर्डिंग में पढ़ता है। क्योंकि उसके मम्मी पापा दोनों सरकारी नोकरी में है, तो इसलिए यह बोर्डिंग में पढ़ता है। आजकल सर्दी की छुट्टियां हैं इसलिए घर आया है।
रोज साँझ ढले वह भाई के साथ हमारे घर आए , माँ हम सब के लिए अच्छे पकवान बनती वो भी हमारे साथ उन पकवानों का स्वाद लेता। यह लगभग रोज होने ही लगा।
अब प्रवेश की छुट्टियां पूरी हुई वह अपने बोर्डिंग वापस चला गया ।
फिर कुछ समय बाद होली आई प्रवेश होली की छुट्टियों में घर आ गया, इस बार जब वह घर आया तो भाई से मिलने हमारे घर आया। आज उसने हम सबको अपने स्कूल की बातें सुनाई, जिसे सुनकर हम सब हंस रहे थे, फिर प्रवेश मेरे पास आकर बैठ गया फिर वह मझ से कहने लगा आप तो कार चलाती हैं जब आप मार्केट जायें तो मुझे साथ लेकर चलना मुझे घूमना-फिरना बहुत अच्छा लगता है, मैंने भी कहा ठीक है चल लेना।
आज जब हम साथ चले तो बातों ही बातों में उसने मुझ से मेरी दिनचर्या पूछ ली मैंने भी बता दी, मैं सुबह टहलने जाया करती हूँ य़ह बात उसे पता चल गई और वह भी मेरे साथ रोज सुबह टहलने जाने लगा।
मुझे एक दिन शक हुआ कि यह मेरे भाई की उम्र से बड़ा है लगभग प्रवेश की उम्र मेरे जितनी है, मैंने पूछ भी लिया और मेरी बात सच भी हुई। पता चला हम दोनों हमउम्र हैं, हमारी दोस्ती बढ़ती चली गई , जब भी प्रवेश घर आता सारा समय मेरे साथ बिताता, प्रवेश एमबीबीएस की तैयारी के लिए देहरादून चला गया। फिर हमारा बात करना और मिलना कम हो गया । लंबा समय बीत जाने के बाद मेरा बी ए पूरा हो गया मैंने लॉ में एडमिशन ले लिया, उस समय अपना मोबाइल नहीं हुआ करता मुझे उनके पड़ोसी से पता चला कि प्रवेश का एमबीबीएस श्री राम मूर्ति मेडिकल कॉलेज बरेली में एडमिशन हो गया।
कुछ साल बाद मुझे प्रवेश से पता चला कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी है, हमने खूब चिढ़ाना शुरू किया । लेकिन जब जब वह घर आता उसका हमेशा ही मूड ऑफ रहता शायद वो अपनी गर्लफ्रेंड से खुश नहीं था, जब जब वो हमारे घर आता तब वह खुश होता।
अब कुछ टाइम बाद प्रवेश ने बाइक भी ले ली और हमारे घर आकर मुझे मंदिर चलने का कहा मैंने मम्मी पापा से अनुमती ली और प्रवेश के साथ मंदिर चली गई, रास्ते में उसकी गर्लफ्रैंड का कॉल आया और प्रवेश तेज तेज चिल्लाते हुए बाइक चलाने लगा। मैं बहुत डर गई कहीं कुछ दुर्घटना ना हो जाए। कुछ समय बाद प्रवेश ने बताया कि जो उसकी गर्लफ्रैंड है वह बहुत शक्की मिज़ाज की है, उसे मेरा किसी से बात करना या मिलना अच्छा नहीं लगता और उसके इस रवैये से प्रवेश बहुत परेशान रहता, और परेशान होना लाजमी भी था।
एक दिन मैंने उसकी गर्लफ्रैंड से बात की और उसे समझाया कि वह प्रवेश को लेकर परेशान ना हुआ करें, प्रवेश अच्छा लड़का है तुम बेवजह उसे परेशान मत किया करो।
एक दिन अचानक मुझे पता चला कि प्रवेश का अपनी गर्लफ्रैंड से बहुत खतरनाक झगड़ा हुआ और उनका रिश्ता टूट गया। कुछ समय तक मेरा प्रवेश से मिलना ही नहीं हुआ, मैं भी अपनी पढाई में वो भी अपनी पढाई मे व्यस्त रहने लगा।
एक दिन मेरे घर के फोन पर प्रवेश का फोन आता और कहता कि उसे 4000 रुपये की आवश्कता है, मैंने भी उसकी मदद की और पैसे भिजवा दिए।
जब दीपावली की छुट्टी पडी तो प्रवेश घर आया और दिवाली हमने साथ मनाई। पड़ोसी थे तो सब त्योहारों का मज़ा हम साथ में लेते थे,
जब जब उसे हेल्प चाहिए तो वो मुझ से मांगे, फिर हमारी दोस्ती और बढ़ती गई और गहरी होती चली गई और हम करीब आने लगे । फिर अचानक एक दिन मेरी दोस्त की शादी मे प्रवेश ने अपनी दिल की बात मुझ से कही और शादी का प्रस्ताव मेरे सामने रख दिया मैंने कुछ समय मांगा और महसूस किया, क्या मेरे भीतर भी वहीं भावना है जो प्रवेश के भीतर है ? मैं मात्र 10 माह बड़ी थी, फिर भी ना जाने हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई ना मुझे खबर हुई, ना उसे पता चला और ये सिलसिला बढ़ता चला गया।
प्रवेश डॉ बन गए मैं एडवोकेट बन गई, और प्यार अपनी जगह लिए परवान चढ़ता गया, अब उम्र बढ़ती जा रही थी, शादी की बात भी करनी थी लेकिन सबसे बड़ी समस्या जात हमारी एक ना थी मैं ब्राह्मण और वो राजपूत थे ये समस्या सबसे बड़ी गंभीर थी, दोनों घरों ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया गया। फिर मामला ठंडा पड गया। फिर प्रवेश अपनी ड्यूटी में और मैं अपनी ड्यूटी में आ गए।
एक दिन मैंने पापा से बोल दिया कि प्रवेश रिश्ता लेके घर आना चाहते हैं, पापा बहुत गुस्साये और माँ को खूब भर भर के सुनायें। ये सब एक हफ्ते भर चला।
बड़े जीजा जी को जब पता चला पापा को समझाया, पापा ने प्रवेश को फोन लगया और घर में बुलाया। प्रवेश अपने पूरे परिवार के साथ हमारे घर पर पधारे।
प्रवेश की मम्मी का फोन मुझे दोपहर के 2.30 पर आया और वो गुस्से से बोली कि हम तुम्हारे घर आए हैं और तुम अपनी ड्यूटी पर हो। मैं टिहरी में थी और ये देहरादून में, हमारे बीच में 5 घंटे या उस से भी ज्यादा की दूरी थी, मेरा वहां जा पाना मुश्किल था मुझे लगा सबने मुझे देखा है और अभी तो सिर्फ बात करने आए है मेरी उपस्थिति की क्या आवश्कता है , शाम 4 बजे बड़ी दीदी का कॉल आया पता चला आज ही सगाई है जल्दी घर आजा,
मेरी धड़कने तेज होने लगी जिस बात को समझाने में पूरा एक साल लग गया वह एक मिनट में कैसा हो गया।
मैने अपने दोस्त को कॉल लगया उसकी मारुति वैन ली सगाई की अंगुठी कपड़े लेकर गाड़ी चलाकर रात 9 बजे देहरादून अपने घर पहुंच गई, पड़ोसी के घर में तैयार होकर 9.30 पर हमारी सगाई हो गई, मानो दोंनो लोग सपना देख रहे हों
इस सगाई का ना पहले से मुझे पता था ना प्रवेश को और हमारी सगाई यादगार बन गई। हम दोनों पर परिवार की सहमति की मोहर लग गई,