STORYMIRROR

Nirupama Naik

Tragedy

3  

Nirupama Naik

Tragedy

छाँव

छाँव

2 mins
343

आज कुछ ठीक नहीं लग रहा, तबियत तो ठीक है मगर तनाव सा लग रहा है। घुटन महसूस हो रही है। शहर के इस भीड़ भाड़ में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनको ऐसा लगता है। घर मे भी मन नहीं लग रहा। सोचा थोड़ी देर बाहर टहल आऊं। घर से निकल कर बाहर पैदल जा रहा था, आज चलने का बड़ा मन कर रहा था।

मोटोरबिक्स के धुएं, बड़ी-बड़ी गाड़ियों के आवाज़, ऊंची इमारतों से निकलते हुए लोगों के मुंह पर मास्क, और न जाने क्या क्या। ये नज़ारा मेरे तनाव को और बढ़ा रहा था।

वो बीते दिन याद आ गए जब दादाजी सैर पे निकलते थे तो उनके पीछे मैं चला जाता था। रास्ते मे कई सारे बड़े-बड़े पेड़, झाड़ियां, नदियाँ और चिड़ियों की मधुर आवाज से मन प्रफुल्लित हो उठता था। धूप लगती थी तो गांव के सबसे बड़े बरगद के पेड़ की छाँव के नीचे लोग इकट्ठा होकर बातें करते, दादाजी के साथ वापस लौटते वक्त उस बरगद के पेड़ पर टंगे झूले पर झूल लेता था।

आज टहलने का मज़ा नही आ रहा, यहाँ लोग टहलने के लिए पार्क, शॉपिंग मॉल या किसी कैफ़े में जाते हैं, जहां मिलता कुछ नहीं।

कुछ साल पहले मैं गांव गया था, दादाजी के गुजरने के बाद जाना नही हो रहा था, पापा भी यहीं शहर में बस गए। सांस फूलने की बीमारी थी पापा को, गांव में मेडिकल फैसिलिटी अच्छी नहीं थी तो शहर में ट्रीटमेंट के लिए मेरे पास आ गये थे। यहां शहर में ट्रीटमेंट तो अच्छी मिली, पर सांस लेने के लिए प्रदूषित वायु मुफ्त में मिल रही थी। कुछ अरसे बाद उनकी इसी शहर में ही साँसे थम गईं।

आज मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है। दादाजी कहते थे - जब भी सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत किसी बड़े पेड़ के नीचे चले जाना। वो बरगद का पेड़ आज बहुत याद आ रहा है। ना दादाजी रहे, न पापा और न वो बरगद के पेड़ की ठंडी छाँव....है तो बस उन सबकी यादें जो कहानियाँ बन चुकी हैं।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy