चौकीदार
चौकीदार
सरकारी बँगले पर पार्टी चल रही थी, बाहर से लड़कियाँ मंगाई गई थी। शराब और शबाब का माहौल था और शहर के कई सफेदपोश वहाँ मौजूद थे
रात के दो बजे बाबू साहब की आवाज आई रामसिंह जल्दी आओ। बँगले के गेट के पास बने कमरे से चौकीदार रामसिंह दौड़ते हुए आये --जी साहब
-----सुनो,
पीछे वाले बगीचे में एक दो फुट चौड़ा और चार फुट लम्बा गढ्ढा करो जल्दी।
रामसिंह कुछ समझ पाता फरसा कुदाल लेकर पंहुच गया और थोड़ी देर में गढ्ढा तैयार हो गया।
पीछे से बाबू साहब एक लड़की यही कोई दस बारह बरस की रही होगी उसे ले आये और उसे गढ्ढे में फेंक नोटों की गड्डी हाथ मे रखते हुए बोले ---इसपर मिट्टी डाल दो और कान खोल कर सुनलो किसी से कहा तो बहुत बुरा होगा
रामसिंह ने मिट्टी फिर से गढ्ढे में डाल दी और अपने कमरे में आ गया उसे अब नींद नहीं आ रही थी बैचेनी हो रही थी। बार बार उस मासूम लड़की का चेहरा उसके आंखों के सामने घूम रहा था।
सुबह रामसिंह दॄढ साहस लिए अपनी निःसन्तान पत्नी और सामान के साथ पुलिस स्टेशन में खड़ा था।