चैन की सांस
चैन की सांस
रोज़ की तरह बुधिया सुबह फिर अपने खेत में पहुंच गया। पता था उसे कि रातों रात कोई चमत्कार तो होने से रहा पर हर सुबह एक नई आस के साथ वो खेत पर जरूर जाता था। और रोज की तरह बिना बारिश, सूखा, बंजर होता खेत देख उसका दिल बैठ सा जाता था। आज तो उसकी रही सही आस भी निपट गई। दुखी हो वो धम्म से ज़मीन पर बैठ गया।
उसे बस एक सोच खाए जा रही थी कि कैसे अगले महीने बिटिया रानी की शादी कर पाएगा वो जबकि यहां तो खाने के निवालों के लाले पड़े हुए हैं। उसने तो एक गाय देने का वादा किया था उसके होने वाले ससुर को, अब तो उसकी हालत एक जोड़े में भी ब्याह करने की नहीं रही थी। क्या करे वो कहां जाए बुधिया के कुछ समझ नहीं आ रहा था।
इसी उधेड़बुन में वो बैठा था कि तभी गांव के कुछ लोग उसके बेटे के साथ रोते चिल्लाते उसे अपनी ओर आते दिखे। बुधिया डर के मारे खड़ा हो गया। उसका बेटा बोला, "बाबा, रानी को काला नाग डस गवा।इत्ती मोहलत भी नाहे मिली कि ओका बैध जी के लैयी जाते।" और फूट फूट कर रोने लगा।
बुधिया रोते हुए फिर से धम्म से ज़मीन पर बैठ गया। इस बार वो बुक्का फाड़ कर रो रहा था क्योंकि अब उसे खुद से घिन्न आ रही थी, रानी की मौत की खबर सुन एक पल जो उसने चैन की सांस ली थी अब वो बाप के दिल को कचोट रही थी।