चाय
चाय
मैं कहीं भी होती बस झट से पहुँच जाती अपनी दादी के पास जब भी वो चाय का प्याला लेकर बैठती। दादी को हम बेबे जी कहकर पुकारते थे। बेबे जी करवाचौथ पर सरगी पर मिला पापड़ी, मट्टी, ड्राईफ्रूट सब हमें ही धीरे-धीरे चाय के साथ खिलाया करती। चाय की महक, बेबे जी का प्यार अब कहां। पर तब से ही चाय की ऐसी तलब लगी कि बस क्या कहे.. कि दोस्तों चाय ही हर खुशी हर गम में साथ है
चाय से निकलते दिल के जज्बात है
चाय नशा है चाय प्यार है
सही मायने में चाय ही जीवन में रिश्तों का सार है।
