प्यार के रंग
प्यार के रंग
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सुबह से हम दोनों में बहस हो रही थी कभी पलड़ा मेरा भारी था तो कभी मेरे हमसफ़र का। झुके कौन??
ये सब देख मेरी दोनों लाडली परेशान हो गयी। लगी टुकर-टुकर एक-दूसरे को घूरने। हम भी क्यूँ पीछे रहते। अन्देशा हो गया कि हमारी बहस उनकी जान ले रही थी। बड़ों की लड़ाई का असर अक्सर बाल मन पर दिखता है। उनका रूंआसा चेहरा देख हम मुस्कराए कि जब तुम दोनो झगड़ते हो तो हम क्यूँ नहीं? ये तो प्यार के रंग है जो अक्सर जीवन में नज़र आते है वो मुस्कराए बिना न रह पायी।
