चार कप चाय
चार कप चाय
"राजी यार एक कप चाय पिला दो बहुत थक गया आज।" नीरज ने घर में कदम रखते ही कहा।
"मैं तो दिन भर से जैसे पलंग तोड़ती रही। सुबह आठ बजे से जाती हूँ अब छह बजे लौटी हूँ।"
"छुट्टी तो स्कूल की तीन बजे हो जाती है, अपनी मम्मी के यहाँ रोज क्यों जाना, घर आ जाया करो।"
"मोनू की बस पाँच बजे आती है, घर आकर क्या करुँ और आज मोनू कल की ही शर्ट पहन कर गया, तुमने बदली क्यों नहीं। तुमसे नही होता तो अम्मा जी से कह देते।"
"मुझे उसकी दूसरी शर्ट मिली नहीं, अम्मा मोनू का लंच बॉक्स तैयार कर रही थी।"
"अलमारी के ऊपर के खाने मे रखी रहती है ढूँढ लेते।"
"समय नहीं था, अम्मा ने बताया बाबूजी रात भर खाँसी के कारण सो नहीं पाये, सो उनकी दवा भी लानी थी।" "अगर दवा थोड़ी देर से ले आते तो तुम्हारे बाबूजी मर....."
बाद के शब्द मुँह मे दबा लिये राजी ने पर नीरज और दूसरे कमरे से अम्मा दोनो ने छूटा वाक्य जान लिया, समझ लिया। अम्मा ने सोचा अच्छा है बाबूजी को कम सुनाई पड़ता है। नीरज ने चुपचाप रसोई में जाकर अम्मा, बाबूजी, राजी और खुद के लिये गैस पर चार कप चाय चढ़ा दी।