बुरा न मानो होली है
बुरा न मानो होली है
फरवरी में नीला की शादी हुई और मार्च में होली। बचपन से उसको बहुत शौक था और खूब होली खेलती थी, गीली-सूखी हर तरह के रंगों से ।
लेकिन अब इस बार की होली ससुराल में थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे खेलेगी। एक तो अभी शादी हुए एक महीना ही हुआ था। अगर कहीं कुछ उल्टा सीधा हो गया तो और ससुराल का परिवार इतना कि सास ससुर और उसके पति देव। भरे पूरे परिवार से आई नीला को होली पर ऐसे लगा जैसे बड़ी बेरंग सी होगी। बातों ही बातों में जब उसने अपने पति से होली खेलने के बाद की तो उन्होंने सीधा जवाब दे दिया ," नहीं , मैं होली नहीं खेलता, मुझे और रंगो से होली खेलना बिल्कुल पसंद नहीं है।" नीला का चेहरा उतर गया। होली और वह भी पहली और बिना रंगे। मायका होता तो चलो यहाँ- वहाँ, पड़ोस हर जगह घूम आती। यहाँ तो ससुराल और वह भी नया-नया । क्या करे, लेकिन मन है कि मानता ही नहीं था । रात को उसकी आँखों में नींद नहीं थी और समझ नहीं आ रहा था कि कल सुबह वह होली पर क्या करेगी। बड़ी हिम्मत करके उसने अपने मन को समझाया और सो गई। सुबह जल्दी उठी और सास ससुर के पाँव छूते हुए होली की मुबारकबाद दी । नीला ने अपनी सासू माँ से होली खेलने की बात की तो उन्होंने कहा, " बेटा ! हम तीन प्राणी घर में, हम लोग ने कभी ऐसे होली कभी खेल ही नहीं।" नीला ने अपना प्लान अपनी सासू माँ को बताया और उनसे निलेश को रंग लगाने की परमिशन ले ली। नीला खुश थी कि अब सासू माँ उसके साथ थी। नीला ने हाथों पर लिपस्टिक लगाई और प्यार से जाकर पतिदेव को जगाया । गालों को छूकर कहा," उठिए सुबह हो गई है।" नीलेश की आवाज आई," आज तो सोने दो छुट्टी है ,आज होली है।" नीला ने कहा," नहीं, जल्दी उठ जाओ, होली नहीं खेलनी तो भी कोई बात नहीं, पर कम से कम आज के दिन- त्यौहार के दिन उठ तो जाओ ।" बेमन से नीलेश उठा और बाथरूम में चला गया और जैसे मुँह धोने के लिए वह वाशबेसिन पर गया तो अपने मुँह का रंग देखकर जोर से चिल्लाया," नीला !" और दरवाजे के पास खड़ी नीला जोर-जोर से तालियां बजाकर कह रही थी," बुरा ना मानो होली है ,बुरा न मानो होली है। " नीलेश कुछ कहता, इससे पहले ही उसकी नजर नीला के पीछे खड़ी माँ पर चली गई जो दोनों हाथों में गुलाल लिए खड़ी थी और नीलेश बेचारा बिना कुछ कहे बोला," माँ आप भी आज अपने अरमान पूरे कर लो।"