बुढ़ापे में दोस्ती
बुढ़ापे में दोस्ती
"बुआजी समझाइये न मम्मी जी को, वो हमारी तो सुनती ही नहीं है। ये कोई उम्र है दोस्त बनाने की। जब देखो तब दोनों लोग साथ में घूमने निकल जाते है। अब तो सोसाइटी के सभी लोग आते जाते ताने मारने लगे है। "
निधि अपनी बुआ सास से अपनी सास शीलादेवी की शिकायत कर रही है। जो उम्र के इस पड़ाव में अपनी नीरस जिन्दगी में खुशियों के कुछ रंग भरने की कोशिश कर रही है।
शीलादेवी महज अठारह साल की थी जब उनके पिता ने उनकी पढ़ाई छुड़वा कर उनकी शादी विनीत से करवा दी थी। विनीत एक व्यापारी पिता के एक बेटी दो बेटों में सबसे बड़े बेटे थे। जो पढ़ना लिखना छोड़ अपने पिता की दुकान संभालते थे। शादी होते ही शीला जी ने पूरा घर संभाल लिया था।
शादी के दो साल बाद शीलादेवी ने जुड़वा बच्चों एक बेटा एक बेटी को जन्म दिया।
शीलादेवी अपने पति और बच्चों को ही अपनी पूरी दुनिया समझ उसी में खुश रहती। पर उनकी ये खुशी
ज्यादा दिन तक नहीं रही। एक दिन एक सड़क दुर्घटना में उनके पति विनीत की मौत हो गई।
शीला अपने छोटे - छोटे बच्चों को सीने से चिपकाये उनके भविष्य के बारे में सोच जार- जार रोती रहती थी।
तभी उनके ससुर ने शीला जी के सर पर हाथ रख कहा था.......
"बेटा मुझे मेरा बेटा खोने से ज्यादा तुम्हारे भविष्य की चिन्ता है। जब तक मैं हूँ तब तक तो सब ठीक है पर उसके बाद क्या ? बेटा तुम चाहो तो मैं तुम्हारी दूसरी शादी करने को तैयार हूँ। पर उससे पहले मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करके आत्मनिर्भर बन जाओ । ताकि तुम्हें कभी भी बच्चों के भविष्य की चिन्ता न हो। "
शीला जी अपने ससुर जी की बात मानकर आगे की पढ़ाई करने लगी। तब उनकी ननद ने एक सहेली बन अपनी पढ़ाई के साथ-साथ घर और बच्चे संभालने में उनकी पूरी मदद की।
जल्द ही दोनों ननद भाभी की नौकरी लग गई। शीला जी के ससुर जी ने अपनी बेटी के साथ - साथ जब उनके लिये भी लड़का ढूंढना चाहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया ये बोलकर कि .......
" नहीं पापा जी मैं दूसरी शादी नहीं करना चाहती। मैं अब सिर्फ अपने बच्चों का अच्छा भविष्य बनाना चाहती हूँ। मैं नहीं चाहती कि मेरे किसी भी फैसले से मेरे बच्चों को कोई तकलीफ हो "
ससुर जी के बहुत समझाने पर भी वो अपने फैसले पर अडिग रहीं। तो ससुर जी ने अपनी बेटी और छोटे बेटे का विवाह कर सबको अपनी जायदाद से हिस्सा देकर अलग अलग कर दिया और खुद शीला जी के साथ ही रहने लगे।
शीला जी ने अपने पिता समान ससुर की खूब सेवा की और अपने बच्चों को भी अच्छी परवरिश दी।
समय के साथ ससुर जी स्वर्ग सिधार गये। और बच्चे भी बड़े हो नौकरी करने लगे। तो शीला जी ने रिटायर्ड होने से पहले दोनों बच्चों की शादी कर अपनी ये जिम्मेवारी भी बखूबी निभाई।
शादी के बाद बच्चे अपने - अपने परिवार में व्यस्त हो गये। और शीला जी भी रिटायर्ड हो कर घर पर ही रहने लगी। पूरी जिन्दगी जिम्मेवारी और काम करने की आदत की वजह से शीला जी को ये खाली समय काटने को दौड़ता । दोस्त के नाम पर भी सिर्फ उनकी ननद थी वो भी दूसरे शहर में रहती थी।
तो समय काटने के लिये वो पास के पार्क में जाने लगी। जहाँ उनकी उम्र के काफी लोग आते। जिनसे उनकी अच्छी दोस्ती भी हो गई। पर जैसे बहुत सारे दोस्तों में कोई एक खास दोस्त होता वैसे ही वो खास दोस्त उन्हें दीपक के रूप में मिला।
दीपक के साथ वो अपने दुखो को भूल थोड़ा मुस्करा लेती। कभी सारे दोस्त मिलकर पिकनिक मनाने चले जाते। पर बेटा ,बहू पोता, पोती जो अपने लिये नये जमाने की वकालत करते थे। वो ही शीलादेवी की पवित्र दोस्ती पर शक करते है।
जब शीलादेवी ने अपनी दोस्ती को पवित्र बता उसे तोड़ने से मना कर दिया तो बहू ने शीला जी की ननद को वीडियो कॉल लगाकर उनकी शिकायत कर दी।
तभी सामने से शीलादेवी जी आते दिखाई दी! मोबाइल के सामने शीला जी के आते ही उनकी ननद ने .. "ओ भाभी" बोल कर उनका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया!
स्क्रीन पर अपनी ननद को देख उन्होंने खुश होकर कहा.... "अरे दीदी आप!! कैसी है आप?? "
"मैं तो बढ़िया हूं भाभी, आप बताइये पिकनिक कैसी रही ??"
"अच्छी रही दीदी आपसे कहा था आने को पर आप आई नहीं। अगर आप भी आ जाती तो और भी मजा आता। "
ननद भाभी की ऐसी नॉर्मल बातें सुन बहू निधि का सर चकराने लगा। कहाँ तो वो अपनी सास की शिकायत कर सोच रही थी कि बुआ उनको डाँटेंगी कहाँ वो खुश होकर उनकी पिकनिक के किस्से सुन रही है।
तभी फोन में बुआ सास के मुँह से अपना नाम सुनकर निधि का ध्यान उनकी तरफ गया जो बोल रहीं थी.....
" क्या हुआ बहुरिया? कहाँ खो गई? "
निधि अचानक हुये इस सवाल से घबरा सी गई और हकलाते हुये बोली..... "कहीं....कहीं नहीं बुआ जी"
तभी वहाँ से बुआ जी की आवाज गूंजी......
"मैं समझती हूँ बेटा कि तुम्हें अपनी सास का यूँ बाहर निकलना पसन्द नहीं । तुम्हें लगता है कि इससे तुम्हारी बदनामी हो रही है। पर क्या तुमने कभी ये सोचा कि जिसने सारी जिन्दगी अपने बच्चों की अकेले देखभाल की वो कोई ऐसा काम करेंगी जिससे तुम लोगों का सर झुक जाये?
अच्छा बताओ जब तुम बाहर नौकरी करने जाती हो तो क्या तुम्हारा कोई पुरुष दोस्त नहीं है ? या तुम्हारे पति की कोई महिला मित्र नहीं है ? यहाँ तक की तुम्हारी बेटी और बेटे की भी सभी से दोस्ती है।
तो जो दोस्ती तुम्हारे लिये सही है। वो मेरी भाभी के लिये कैसे गलत हो गई? मेरी भाभी अकेलेपन से जूझ रही थी तो मैंने ही उन्हें बाहर निकलने को कहा था। पर मुझे ये नहीं पता था कि अपने आप को मॉर्डन कहने वाले तुम लोग इतनी छोटी सोच रखते हो। मोवाइल कंप्युटर अपडेट करते हो कभी अपनी सोच भी अपडेट कर लिया करो।
जो काम तुम्हारी जनरेशन को मॉर्डन बनाता है। वहीं काम हमारी जनरेशन के करने से तुम्हारी नाक कट जाती है। "
बुआ सास कि बात सुनकर निधि अपने आपमें ही अपनी सोच पर शर्मिंदा थी। कैसे उसने मम्मी जी के बार - बार ये बात कहने पर भी कि "दीपक जी से उनकी सिर्फ अच्छी दोस्ती है" उन पर विश्वास नहीं किया। और दूसरों की बातों में आकर वो अपनी इतनी अच्छी सास को गलत समझने लगी थी।
बात समझ आते ही निधि ने सबसे पहले अपनी बुआ सास से अपनी गलती की माफी मांगते हुये अपनी सोच बदलने के लिये धन्यवाद बोला। और फोन काट कर अपनी सास शीला देवी से बोली.......
" मम्मी जी मुझे माफ कर दीजिये। मैंने कभी आपके अकेलेपन को नहीं समझा। बस हमेशा आपको गलत समझा ।पर अब नहीं अब में अपने साथ - साथ सभी की सोच बदलने की कोशिश करूँगी। इसीलिये कल घर में पार्टी होगी जिसमें हमारे दोस्तों के साथ आपके भी दोस्त आयेंगे। और अब से आप जब और जहाँ जाना चाहे जाइये। "
बहू की बात सुनकर शीलादेवी ने अपनी बहू को गले से लगा लिया। आज नई और पुरानी जनरेशन की सोच मिल गई थी। जिससे चारों तरफ शक और नफरत के कांटे सूखकर प्यार और खुशियों के फूल खिल गये थे।
दोस्तों हम कभी भी किसी पुरुष और महिला को एक साथ देखते है तो उनके बारे में गलत ही सोचते है। पर कभी खुले विचारों से देखना, हो सकता है कि वो सिर्फ एक बहुत अच्छे दोस्त ही हो।

