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बुढ़ापा

बुढ़ापा

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रिद्धि की दादी सास चंदा जी पुराने विचार वाली महिला थी। ओर थोड़ा उम्र का पड़ाव ही ऐसा था कि उनका स्वभाव बच्चे जैसा होगया था।

ऐसा नहीं था कि रिद्घि दादी सास का ध्यान नहीं रखती थी, लेकिन बात बात पर टिका टिप्पणी से परेशान हो गई थी।

रिद्धि की सास मंजुला ने भी रिद्धि को समझाती की कोई बात नहीं बड़े बुजुर्गों की बातों का बुरा नहीं मानते । उम्र के इस दौर में ऐसा होना लाजमी है।

रिद्धि की दादी सास को हर समय अपने पास कोई चाहिए होता था, उन्हें लगता बस मेरे कमरे में रहे मुझसे बात करे। उनका अकेले मन नहीं लगता।

लेकिन सभी अपने अपने कामों के कारण जायदा समय नहीं दे पाते। इस की खीज़ चंदा जी रिद्धि के काम काज पर निकालती।

थोड़ी देर रिद्धि नहीं दिखती तो जोर जोर से आवाज लगाती। दवाई खानी है तो रिद्धि के हाथ से, मालिश करवानी हो तो रिद्धि के हाथ से।

कई बार ऐसा होता की रिद्धि मायके जाती तो उसे पांच दिनों में ही लौटना पड़ता। चंदा जी खाना पीना सब छोड़ देती।

कभी कहती मुझे बीमार जैसा खाना नहीं चाहिए। कभी कहती मुझे मलाई वाला दूध चाहिए तुम सब तो जो मर्ज़ी होता है खाते हो मुझे अकेले कमरे में पड़े पड़े बासी बेसुआद खाना देते हो।

रिद्धि कहती दादी जी आपको डॉक्टर ने जैसा खाना देने की बोला है वैसा ही देती हूं, ओर बासी खाना नहीं देती कभी भी।

ऐसा रोजाना चलता रहता। कभी कभी रिद्धि बात को वहीं ख़तम कर देती जायदा ध्यान नहीं देती। लेकिन कभी उसे भी गुस्सा आ जाता ।

एक दिन रिद्धि अपनी बहन के घर जाती है। जो इसी शहर में रहती है।

रिद्धि अपनी बहन समता से सारी बातें करती। अपनी सारी परेशानियां बताती।

समता "ओर घर में सब कैसे है रिद्धि?"

रिद्धि "सब अच्छे है, बस मेरी दादी सास मुझसे खुश नहीं है.'

समता "क्यूं क्या बात है"

रिद्धि " कुछ नहीं बस उन्हें मेरे काम में मिन मेख निकालना अच्छा लगता है । ओर मुझे कहीं जाने भी नहीं देती। बड़ी मुश्किल से आज समय निकाला है। "

समता कहती है "तुम्हे हमारे मायके की आराम कुर्सी याद है। "

रिद्धि "उसे कैसे भूल सकती हूं, मेरी पसंदीदा कुर्सी है। हाथी दांत से सजी हुई कितनी सुंदर कलाकारी है एक दम बारीक। वहीं तो एक निशानी है दादा जी की । मां ने भी कितनी अच्छी तरह से आराम कुर्सी को संभाल कर रखा है। कोई नहीं कह सकता कि वह पचास साठ साल पुरानी कुर्सी है। अभी भी ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा रही है वह कुर्सी। "

समता "बस वही हाल बुढ़ापे का है, जिसे बहुत अधिक देखभाल की जरूरत है। बुढ़ापे में आदमी अकेले पन से डरता है वह चाहता है सब उसी की देखभाल करे। ओर जैसे कुर्सी घर की शोभा बढ़ाती है वैसे ही बुजुर्ग घर को सम्पूर्ण बनाते है।

जैसे एक कुर्सी में हाथी दांत से सजी हुई है, वैसे बुजुर्ग जीवन के अनुभव से सजे हुए है।

आराम कुर्सी पर जब भी बैठो आराम मिलता है। वैसे ही बड़ों की गोद में हर परेशानी में चैन ही मिलता है।

बस जरूरत है थोड़ी देखभाल की, वरना एक कुर्सी स्टोर रूम में पुराने समान के साथ पड़ी रहती है, यही डर बुजुर्गों में होता है कि उन्हें किनारा ना कर दिया जाए। "

तभी रिद्धि के फोन की घंटी बजी। आ गया बुलावा दादी जी का।

चलो दीदी मैं चलती हूं, समझ गई घर के बड़े हमसे क्या चाहते हैं, बस थोड़ा सा अपना पन, मैं कोशिश करुँगी दादी जी को अकेलापन कभी महसूस ना हो।


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