Prabodh Govil

Abstract

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Prabodh Govil

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बसंती की बसंत पंचमी- 18

बसंती की बसंत पंचमी- 18

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श्रीमती कुनकुनवाला अब देखते देखते अपनी सब सहेलियों की मुखिया बन गईं। वो फ़ोन पर सबको समझाती थीं कि देखो, मैंने तो बाई के जाने के बाद फ़िर कोई काम वाली बाई रखी ही नहीं, अपने हाथ से ही सब काम करती रही, इसीलिए तो आज मुझे किसी का एक रुपया भी नहीं देना, और आप लोगों ने लॉक डाउन लगते - लगते भी खोज- खोज कर नई बाई रख ली... तो अब भुगतो। दो उसे अब पूरे छः महीने की पगार।सबके मुंह पर ताला लग गया।अब यह तय किया गया कि जब भी अनलॉक होने के बाद सबका इधर- उधर आना- जाना शुरू होगा तो सब महिलाएं श्रीमती कुनकुनवाला के घर ही इकट्ठी होंगी ताकि भविष्य में बाई संबंधी समस्या के हल हेतु कोई ठोस नीति बना कर सब उस पर इकट्ठी चल सकें।

श्रीमती कुनकुनवाला इस तरह सबकी लीडर बन गईं और उन्होंने इस उपलब्धि के उपलक्ष्य में अपने घर पर एक शानदार पार्टी रख ली। आखिर वो ऐसा मौका क्यों छोड़तीं जिसमें उन्हें सब सहेलियों के बीच सिरमौर बनने का मौक़ा मिल रहा था।

ये तय हुआ कि अगले रविवार को सब श्रीमती कुनकुनवाला के घर पर इकट्ठी होंगी और इतने समय के व्यवधान के बाद आयोजित होने वाली शानदार पार्टी का आनंद लेंगी।

घर घर में अगले रविवार की प्रतीक्षा ज़ोर- शोर से होने लगी।इधर श्रीमती कुनकुनवाला भी इस जोड़ - तोड़ में लग गईं कि पार्टी में कौन- कौन से शानदार व्यंजन बनाए जाएं। उनके हाथ बड़े दिन बाद ऐसा मौक़ा आया था जिसमें वो सबके बीच अपनी विजय पताका फहरा सकें।



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