बस अब और नहीं.......
बस अब और नहीं.......
केतन शुरू से शराब का आदि था। उसे शराब के बिना नींद नहीं आती और शराब मतलब असली मर्दों की शान समझता था। शराब पीकर केतन अक्सर रूबी से झगड़ा किया करती था और अगर रूबी उसे रोक टोक करती तो केतन उसे बहुत मरता था।
रूबी कई दिनों तक उस दर्द से जूझती रहती थी पर एक दिन उसने मन बना लिया कि बस अब और नहीं...बहुत हुआ पतिव्रता पत्नी बनकर रहना अब केतन को अपने स्त्री स्वरूप का भान करवाना पड़ेगा और यही सोचकर जब केतन नशे की हालत में रूबी पर हाथ उठाता है तब रूबी उसका मुंह तोड़ जवाब देती है।
" क्या समझ रखा है मुझको बेबस लाचार....कमजोर पर अब बस आपके अत्याचार को और नहीं सहूँगी।" " बस अब और नहीं......." केतन का हाथ पकड़ते हुए रूबी कहती है।
शराब के नशे में धुत केतन अपनी लड़खड़ाई आवाज में गलियों का प्रयोग करते हुए रूबी से अपनी हाथ छुड़ाते हुए कहता है " पत्नी हो आपकी औकात में रहो " और फिर वापस अपना हाथ रूबी को मारने के लिए उठाता है पर इस बार भी रूबी अपने शरीर का पूरा ताकत लगा कर उसकी हाथों को जोर से पकड़ लेती है और चीखते हुए कहती है " अगर आपने फिर से मारने की कोशिश भी की तो मैं भूल जाऊंगी की आप कौन है मेरे और मैं भी इस तमाचे का जवाब तमाचे से दूंगी याद रखना.......!! ऐसा कहकर केतन का हाथ जोड़ से झटक कर नीचे गिरा देती है।
रूबी की तेज गर्जना सुन केतन का नशा मानो उतर सा गया हो और अपने कलाई को देखते हुए अपने मुंह पर उंगली रखकर वहां से अपने बिस्तर पर शांति से सोने चला जाता है और रूबी का नया विकराल रूप देखकर नशे की हालत में ही धीमे धीमे बोलने लगता है " कल तक जो देवी थी वो आज रौद्र काली का रूप कैसे धारण कर ली.......?? ये तो साक्षात काली का रूप धर ली.......फिर नशे की हालत वाली हँसी से खी.. खी....करके हंसता है और लड़खड़ाती हुई आवाज में कहता है.... मैं भी दिखाता हूं कल इसे अपना रूप.....कहते कहते केतन की आंख लग जाती है।
पर रूबी आज पूरे आत्मविश्वास के साथ एक कप कॉफी के साथ पूरे चैन से टीवी देखने का आनंद उठाने लगती है। आज उसे ऐसा लग रहा था मानो कोई बड़ी जंग जीत ली हो। जिसकी लड़ाई पिछले कई वर्षों से चली आ रही थी पर हर रात वो इस जंग में हार जाती और उस पुरुष के पौरुष के सामने नतमस्तक हो जाती जिसे अपने पुरुषत्व पर घमंड था।
सच ही दोस्तों सौ दिन सुनार का तो एक दिन लोहार का होता है। ये मुहावरा यहां सौ प्रतिशत जाहिर हो रहा है। कोई अगर लगातार किसी पर हावी रहता है या फिर उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है तो डरा हुआ इंसान एक न एक दिन अपने बचाव के लिए जरूर उठ खड़ा होता है। जुर्म को सहना भी जुर्म करने वालों का हौसला बढ़ा देता है इसलिए उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कीजिए।
नोट : इस कहानी के माध्यम से आप लोगों के समक्ष सिर्फ अपने विचारों को रख रही हूं। ये रचना पूरी तरह से मेरी लिखी हुई है। आपको मेरी कहानी कैसी लगी जरूर बताइएगा और पसंद आएं तो लाइक कमेंट और शेयर करें। आप मुझे फॉलो भी कर सकते है। आपके कमेंट आपके सुझाव मेरे लिए बहुत मायने रखती है इसलिए दिल खोल कर सुझाव दे........
