Prem Bajaj

Abstract

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Prem Bajaj

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बस अब और नहीं

बस अब और नहीं

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राम, शहर में छोटी सी नौकरी करता है , बेटी की पढ़ाई के कारण परिवार को भी गांव से शहर साथ लाया , क्योंकि गांव में स्कूल नहीं है । अभी एक साल हुआ है शहर आए और आठ महीने से कोरोना की वजह से ना स्कूल खुल रहे हैं , ना गांव जा सकते हैं ,पहले तो हर सप्ताह मां-बाबा से मिलने गांव जाते थे "मां हम गांव कद ने जावेंगे , दादी-दादा, चाचा-बुआ ते मिलने ।"

"यूँ कोरोना जा कर यूं नी रहा ? मन्ने चाचा,बुआ, दादा, दादी की बड़ी याद आवे है"

"हां बिटिया मरने भी घंडी़ याद आवे है , पर का करब मजबूर हैं ।"

"राम थमीं कुछ जगाड़ कर दो , बथेरा टेम हो गया इब तो , गांव गया ।"

"हां साबित्री , तो साची कहे  है , बस इस तो बहोत हो गआ ।"कब तक हम परिवार ते दूर रहें , इब तो करोना ते लड़ना पड़ेगा , हार कोना मानेंगे ।

बार- बार साबुन ते हाथ धोना, मुंह अर नाक पर मास्क लगाणा , किसी ये गले ना मिलना , तीन फुट की दूरी बनाणा , बाहर का कुछ नी  खाणा , इस हमे यू सब करना पड़ेगो , अर औरां ये भी सिखाणा पड़ेगो ‌।चल  इस तो इसी  हफ्ता गांव चालांगे ।"  

और मुनिया बहुत खुश हो जाती है कि वो दादा - दादी और सबसे मिलेगी , और सब सोशल डिस्टेंस और पूरी केयर के साथ गांव के लिए निकल गए ।


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