बोझ
बोझ
माँ सप्ताह भर से काफी व्यस्त थी। क्योंकि गौरव ने आने वाले शनिवार को नौकरी के लिए बेंगलुरु वापस जाना है। वो दो दिन से लड्डूए मठरी तथा पिन्नी बनाने में इतनी व्यस्त थी कि रसोईघर की गर्मी से बाहर ही नहीं निकली।शुक्रवार शाम को वाे सारा सामान बाँधे जा रही थी और बोलती जा रही थी।तेरे पापा के लिए महंगी कमीजें लाई थीए तेरे वाली ज्यादा अच्छी नहीं लग रही है तू पापा वाली रख लेना मैं और ले आऊँगी। तुम बहुत कमजोर हो गए हो , सूखे मेवे तथा सारा खाने का सामान अच्छे से बाँध दिया है तुम खा लेना। बेटे ने मां बाप के जज्बातों को नज़र अंदाज करते हुए सामान एक तरफ रख दिया। वहाँ सब मिलता हैं। इतना बोझ कौन उठाएगा। तभी बेटे के फोन पर मनीष उसके बास के मम्मी.पापा का मनीष का थोड़ा सा सामान ले जाने के लिए फोन आता है। जिसे ले जाने के लिए गौरव खुशी.खुशी से हामी भर देता है। पास खड़े माँ.बाप कुछ बोलते इस से पहले ही गौरव कहता हैं थोड़े से बोझ की ही तो बात है।आखिर बॉस है पदोन्नति में काम आएगा।