बंगालन

बंगालन

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बंगालन यही नाम से पुकारा जाता था सुजाता को, सुजाता खाना बनाने वाली बाई थी, खाना बनाने में उसके बराबर का कोइ सानी ना था, सुजाता अपने पति के साथ कहाँ से आई थी यह तो ना मालूम था पर पूरे बिलडिगं की महारानी थी।

किसी के यहाँ कितनी बड़ी दावत हो सुजाता फटाफट.बना डालती। शायद उसको मालूम था कि पेट के राह से ही दिल में राज किया जाता हैं, बला की खूबसूरत थी सुजाता। लंबे काले बाल कमर पर झूलती चोटी, किस किस दिल पर साँप ना लोटा दें।

माथे पर बडी सी सिंदुर की बिदियाँ लगता जैसे माँ जगत जननी की तरह उपर से परिपाटी से पहनी हुई ताँत की साड़ी रंग की चुन चुन कर कभी आसमानी, गुलाबी, तभी लाल, या फिर पीला, लगता ही नहीं था वह कोई खाना बनाने वाली है।

सब लोग उसके रूप के और गुण के दीवाने के थे। बड़े बूढ़ों का झूंड इंतजार करता कि एक नजर भर देख ले तो ताजगी आ जायेगी या फिर हमारी दवाई भी ला देगी, 40+ वाले ऑफिस जाने वाले इंतजार करते की एक झलक दिख जाये पूरा दिन बया होगा युवा लोगो की सारी परेशानियों का इलाज था सुजाता के पास रेसिपी से लेकर वाले सारे मसलों का इलाज था सुजाता के सुजाता ताजा हवा का झोंका थी।

उसी कलोनी में एक मियाँ बीवी रहने आये जिनको किसी से कोई लेना देना बस आते-जाते दिख जाते। सुजाता ने उन लोगो का भी काम पकड़ा और बहुत खुश थी। बड़े बढ़िया लोग है, इस बीच सुजाता ने बताया कि वह माँ बनने वाली है बहुत खुश थी नये भैया भाभी हमारी पूरी मदद करेंगे।

हम को यह सब बड़ा अजीब लगता पर कुछ कर नहीं पाई, एक दिन पता चला कि सुजाता को बेटा हुआ है और हॉस्पीटल से लेकर पूरी चीजें उन मियाँ ने सभाली अब धीरे धीरे समय बीता वह शिशु छह महीने को हो सारे समय। उन लोगों के पास ही रहता बस सुजाता दूध पिलाती बहुत खुश थी सुजाता।

एक दिन सवेरे सुजाता रो रही थी चीख रही थी, मेरा बेटा ले गये हरामजादे लोग धीरे धीरे सब लोग वहाँ पहुचें तो रातो रात मियाँ बीवी शिशु समेत सारा सामान लेकर गायब आज फिर एक माँ एक नारी को, एक भरोसे को छला गया, आज फिर अमीरी जीत गयी गरीबी हार गयी। आज भी सुजाता वही काम करती हैं कि शायद अपने बेटे को देख सके, उसके पति ने भी उसको छोड दिया। सुजाता बदल गयी समय ने उसको बदल दिया।


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