बंद रास्ता
बंद रास्ता
गंगोत्री धाम को लखंडोन से जोड़ने वाले राजमार्ग नंबर-34 से बीस किलो मीटर दूर अटरा नाम का एक गाँव था। बिजली की सुविधा न होने के कारण यह गाँव आधुनिक संसार से पूरी तरह कटा हुआ था। इस गाँव में न तो टी.वी. था और न ही मोबाइल आदि की सुविधा। यहाँ के अधिकतर लोगों ने राजमार्ग तक न देखा था।
गाँव वालों के सामान्य ज्ञान का एक मात्र स्रोत छेदी लाल था। बूढ़ा होने से पहले छेदी लाल एक बड़े शहर में राजगीरी करता था। प्रायः वह गाँव के युवकों और बच्चों को एकत्र करके उन्हें शहर की अच्छी अच्छी बातें बताया करता था। ऊँची ऊँची गगनचुंबी इमारतों से लेकर धरती के नीचे चलने वाली मेट्रो के विषय में बता कर वह उन्हें अचरज में डाल देता था।
इसी गाँव में सोलह वर्ष का एक जिज्ञासु, उत्साही एवं साहसी युवक भी रहता था जिसका नाम बुद्धि लाल था। बुद्धि लाल नई चीज़ें देखने और समझने के लिये लालायित रहता था। छेदी लाल से शहर की अचरज भरी बातें सुन सुन कर उसे शहर देखने की उत्सुक्ता हुई। उसने गाँव के बड़े बूढ़ों से आर्शीवाद लिया और शहर देखने के लिये निकल पड़ा।
दो दिनों बाद वह राजमार्ग के एक चौराहे पर पहुँच गया। इस चौराहे से राजमार्ग से जुड़े शहरों के अतिरिक्त अन्य दूसरे शहरों की ओर भी जाया जा सकता था।
वह चौराहे के पास खड़ा हो गया।
एक फ़क़ीर बहुत देर से उसे एक ही स्थान पर खड़ा देख रहा था। फ़क़ीर से नहीं रहा गया और उसने पूछ ही लिया, "तुम खड़े खड़े क्या कर रहे हो ?"
"मुझे एक जगह जाना है।"
"ख़ाली एक जगह खड़े खड़े सोचने से कि ‘जाना है’ से ‘जाना’ नहीं हो जाता है। जाने के लिये क़दम बढ़ाना होता है। अगर तुमको जाना है तो तुम क़दम बढ़ाओ।"
"लेकिन यहाँ चार चार रास्ते हैं। मैं दुविधा में पड़ गया हूँ। समझ में नहीं आ रहा है मैं किस रास्ते पर जाऊँ ? क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं ?”
"नहीं मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।"
"आप मुझसे क़दम बढ़ाने के लिये भी कह रहे हैं और मेरी कोई मदद करने के लिये भी तैयार नहीं है।"
"हाँ। और इतना ही नहीं। यह भी सुन लो। इन चार रास्तों में से कोई भी रास्ता तुम्हारे काम का नहीं है। सारे रास्ते तुम्हारे लिये बंद हैं।"
"ऐसा क्यों ? इन रास्तों पर सैकड़ों लोग चल रहे हैं। तो क्या मैं नहीं चल सकता ? दूसरों की तरह मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूँ तो फिर मेरे लिये रास्ते बंद क्यों है ?"
"तुम्हारे लिये सारे रास्ते इसलिये बंद हैं क्योंकि तुम्हें अपनी मंज़िल नहीं मालूम। आगे बढ़ने वालों के लिये न तो रास्तों की कमीं होती है और न रास्ता दिखाने वालों की लेकिन शर्त यह है कि आगे बढ़ने वाले को अपनी मंज़िल का पता होना चाहिये।
तुम्हें अपनी मंज़िल ही नहीं मालूम है तो तुम किस रास्ते पर जाओगे ? पहले अपनी मंज़िल तय करो उसके बाद रास्ते की बात सोचना।"
"मुझे अपनी मंज़िल पता है। मुझे शहर जाना है।"
फ़क़ीर ने कहा, "अभी भी तुम्हें अपनी मंज़िल स्पष्ट नहीं है। यह रास्ते हजारों शहरों की ओर जाते हैं। क्या तुम यह तय नहीं करोगे कि तुम्हें कौन से शहर जाना है ? कौन सा शहर तुम्हारी मंज़िल है ?"
बुद्धि लाल ने उत्तर दिया, "बाबा क्षमा कीजियेगा। मेरे निर्णय में स्पष्टता नहीं थी। मुझे नौरंग नगर जाना है।"
"हाँ अब तुमने अपनी मंज़िल चुन ली है अब मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ।"
"आप बहुत अनुभवी हैं। क्या आप मुझे मेरी मंज़िल नौरंग नगर तक पहुँचा सकते हैं ?"
"बिल्कुल नहीं। कोई किसी को उसकी मंज़िल तक नहीं पहुँचा सकता है। पथिक को अपना रास्ता एक एक क़दम चल कर सवयं ही तय करना पड़ता है।"
"तो आप मेरी क्या सहायता कर सकते हैं ?"
"मैं तुम्हें तुम्हारी मंज़िल तक पहुँचने का सही मार्ग दिखा सकता हूँ।"
इतना कह कर फ़क़ीर ने बुद्धि लाल को नौरंग नगर पहुँचने का सही मार्ग दिखा दिया। यह एक लम्बा लेकिन सीधा मार्ग था।
बुद्धि लाल ने मार्ग की ओर देखा और ठिठक कर खड़ा हो गया।
"बाबा मैं आप पर विश्वास कर रहा हूँ और आप मुझे ग़लत मार्ग दिखा रहे हैं। आपका बताया हुआ मार्ग आगे जाकर पतला हो गया है और फिर बंद हो गया है। बंद मार्ग से मैं अपनी मंज़िल तक कैसे पहुँचूंगा ? अगर मैं आपके बताये हुये मार्ग पर चला तो मुझे वापस ही लौटना पड़ेगा।"
फ़क़ीर ने कहा, "अधिक मत बोलो। यह बताओ कि जहाँ यह रास्ता बंद हो रहा है वहाँ तुम कितनी देर में पहुँच सकते हो ?"
"बाबा मैं बहुत तेज़ चलता हूँ। दस मिनट में पहुँच जाऊँगा।"
"ठीक है दस मिनट चल कर तुम रुक जाना चाहे रास्ता खुला मिले चाहे बंद।"
बुद्धि लाल दस मिनट तक चलता रहा लेकिन यह क्या ! मार्ग उसे धोखा दे रहा था। बंद रास्ता उससे दूर भागता जा रहा था।
थोड़ी देर में फ़क़ीर वहाँ आ पहुँचा और बोला, "तुमने कहा था कि दस मिनट में तुम मार्ग के अंत तक पहुँच जाओगे। लेकिन तुम एसी जगह खड़े हो जहाँ से सड़क का अंत उतनी ही दूर है जितना पहले था।"
बुद्धि लाल ने थोड़ा लज्जित हो कर कहा, "बाबा, मैंने शायद समय का सही अनुमान नहीं लगाया। एक अवसर और दीजिये अगले दस मिनट में मैं सड़क के अंत तक अवश्य पहुँच जाऊँगा।"
"ठीक है दस मिनट चल कर तुम रुक जाना चाहे रास्ता खुला मिले चाहे बंद।"
बुद्धि लाल दस मिनट तक चलता रहा लेकिन यह क्या ? मार्ग उसे धोखा ही दिये जा रहा था। बंद रास्ता उससे दूर भागता जा रहा था। वह मार्ग के अंत तक पहुँच ही नहीं पा रहा था।
थोड़ी देर में फ़क़ीर वहाँ आ पहुँचा और बोला, "तुम अभी भी मार्ग के अंत तक नहीं पहुँचे।"
"बाबा आप मुझे अकारण दौड़ा रहे हैं। मैं सड़क के अंत तक नहीं पहुँच सकता। आप मुझे बंद रास्ते पर क्यों दौड़ा रहे हैं ?"
फ़क़ीर ने बुद्धि लाल की दृढ़ता एवं क्षमता का आकलन करने के लिए उसे उत्तेजित करने वाली बात कही, "अज्ञानी, मूर्ख, कर्महीन, उत्साहहीन, साहसहीन और आरामतलब लोगों को अपने आगे का मार्ग सदैव बंद ही दिखता है।"
"बाबा मैं अज्ञानी अवश्य हूँ लेकिन मूर्ख नहीं। मैं बहुत सोच-समझ कर अपने गाँव से शहर जाने के लिए निकला हूँ। मैं कर्म में विश्वास रखता हूँ। मुझमें आगे बढ़ने का उत्साह भी है, साहस भी और आत्मविश्वास भी। मैं अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिये कोई भी कष्ट उठाने के लिये तैयार हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन मैं नवरंग नगर अवश्य पहुँचूंगा। लेकिन आप के द्वारा बताये गये बंद मार्ग पर चल कर मैं कहीं भी नहीं पहुँच सकूंगा।"
"जहाँ तक ज्ञान की बात है दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं है। तुममें चिंतन शक्ति है इस लिये तुम मूर्ख भी नहीं हो। तुम गाँव छोड़ कर इतनी दूर आये हो इस से सिद्ध होता है कि तुम कर्मठ और साहसी भी हो। तुममें आत्मविश्वास भी है, लेकिन विश्वास नहीं।"
"मैंने आप पर विश्वास किया लेकिन आपने मुझे बंद रास्ते पर डाल दिया।"
"तुमने यह निष्कर्ष कैसे निकाल लिया ?"
"अपनी बुद्धि एवं तर्क द्वारा।"
"क्या तुम्हें अपनी बुद्धि एवं तर्क द्वारा हर प्रश्न का उत्तर मिल रहा है ?"
"नहीं। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मेरे इतना चलने के बाद भी रास्ते का अंत मुझसे उतनी ही दूर क्यों है जितना चलने से पहले था ?"
फ़क़ीर ने मुस्कुराते हुये कहा, "उन्नति के शिखर तक पहुँचने के लिए आगे की ओर देखना और आगे के मार्ग पर बढ़ना ही उचित है किन्तु अपनी सफलता की समीक्षा के लिए कभी कभी पीछे मुड़ कर भी देख लेना चाहिए । ज़रा एक बार पीछे मुड़ कर तो देखो।"
बुद्धि लाल ने पीछे मुड़ कर देखा तो आश्चर्य चकित रह गया।
"अरे! मैं कहाँ से कहाँ आ गया। इतनी जल्दी मैंने कितना सफ़र तय कर लिया ?"
फ़क़ीर ने पूछा, "कुछ समझ में आया ?"
"हाँ समझ गया। जब तर्क और बुद्धि काम करना बंद कर दें तो अपने गुरु पर विश्वास करना चाहिये। गुरु के अनुभव की आँख, शरीर की आँख से अधिक विश्वसनीय होती है।"
"तुमने ठीक समझा। लेकिन अनुभव और विश्वास की बात केवल गुरु तक ही सीमित नहीं है। यह अन्य परिस्थितियों पर भी लागू होती है। यदि हमें किसी विषय का ज्ञान या अनुभव नहीं है तो हमें दूसरों के अनुभव से लाभ उठाना चाहिये और दूसरों के अनुभव का लाभ हमें तभी मिलेगा जब हम उन पर विश्वास करेंगे।"
फ़क़ीर थोड़ा रुका और फिर बोला, "मैं अपनी बात फिर से दोहराऊँगा कि अज्ञानी, मूर्ख, निठल्ले लोगों को अपने आगे का मार्ग सदैव बंद ही दिखाई देता है। जो लोग सक्रीय होते हैं, कर्मठ होते हैं, निष्क्रियता के बहाने नहीं ढूढते हैं और अपने निश्चय में अडिग होते हैं, वह छोटे छोटे अवसरों से भी लाभ उठाते हैं और छोटे छोटे पगों से बड़े बड़े रास्ते तय कर लेते हैं।
आगे बढ़ने का हौसला रखने वालों के लिये बंद दिखने वाले रास्ते एक चुनौती होते हैं। बंद रास्तों की नकारात्मकता उन्हें सफलता की सकारात्मकता की ओर ले जाती है।"
"बाबा मैं आगे बढ़ूँगा और अपनी मंज़िल तक पहुँचूंगा और फिर आप से मिलने वापस आऊँगा।"
"नहीं तुम कभी वापस नहीं आओगे। आगे बढ़ने वाले को हर मंज़िल पर एक नई मंज़िल दिखाई देती है। और हर नई मंज़िल एक नई ऊँचाई पर ले जाती है।
राजमार्ग एक मंज़िल था, नवरंग नगर दूसरी मंज़िल है। उच्च शिक्षा के लिये एक प्रतिष्ठित विद्यायल में प्रवेश पाना, अच्छी नौकरी पाना आदि अनगिनत मंज़िलें हैं जिन्हें तुम्हारे जैसे हिम्मत वाले लोग ही तय करते हैं।
उन्नति की मंज़िलें एक शंकु की भाँति होती हैं। उन्नति की पहली मंज़िल देखने में बड़ी लेकिन पाने में सरल होती है। हर अगली मंज़िल पहली मंज़िल से रूप में छोटी लेकिन महत्व में बड़ी और नाज़ुक होती जाती है। धीमें धीमें हम शंकु की चोटी पर पहुँच जाते हैं। और अब हमारे लिये सब से महत्वपूर्ण और नाज़ुक काम होता है चोटी पर बने रहना।"
"बाबा मुझे बस आपका आर्शीवाद चाहिये।"
"मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। जब भी तुम्हें अपनी क्षमता और विश्वास पर शंका होने लगे, या मार्ग की कठिनाइयां निराशा की ओर ले जानें लगें, यह चार पंक्तियाँ दोहरा लिया करनाः"
डर मुझे भी लगा फ़ासला देख कर।
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर।
ख़ुद ब ख़ुद मेरे नज़दीक आती गई
मेरी मंज़िल मेरा हौसला देख कर।
