बलिदान
बलिदान
"सागर हमारा रिश्ता ख़त्म होने के कगार पर है, अब मैं तुमसे नहीं मिल पाऊँगी" सुमि ये बोलते बोलते फफक पड़ी।सागर ने पूछा , " आखिर हुआ क्या है, और ये रिश्ता क्यों ख़त्म होगा? सुमि ने बताया कि उसके माता पिता उसकी शादी किसी और के साथ तय कर दिए हैं। और वह उनकी मर्ज़ी के खिलाफ भागकर सागर के साथ शादी नहीं कर सकती।उनकी इज्जत के खातिर उन्हें ये सब करना पड़ रहा है।" सागर बुत बनकर खड़ा था, उनके सारे सपनें बिख़र गए।दिल टूटकर चूर चूर हो गया।सुमि अपने घर चली गयी।
सुमि और सागर अलग अलग जाति के थे, दोनों बचपन से ही अच्छे दोस्त थे।स्कूल कालेज की पढ़ाई भी साथ साथ किये।सागर सुमि की हर सम्भव मदद करता था।सुमि भी सागर को बहुत अच्छे से समझती थी।दोनों को एक दूसरे का साथ बहुत अच्छा लगता था।सुमि अपने सारे नोट्स और किताबें भी सागर को दे देती थी।कालेज में अपना टिफ़िन भी उन्ही के साथ शेयर करती थी।न जाने ये दोस्ती कब प्यार में बदल गयी, उन लोगो को पता ही नहीं चला।ये जानते हुए भी उन लोगो की शादी नामुमक़िन है, वे दोनों अपने इस अहसास को मिटा नहीं पा रहे थे।प्यार के अहसास में डूबे भविष्य के सपने भी देखने लगे।एक दिन सुमि के लिए अच्छा रिश्ता आया और उनके माता पिता को ये रिश्ता जँच गया।जल्दबाजी में रिश्ता भी तय हो गया।सुमि ने अपने और सागर के प्रेम संबंध की बात अपने पिताजी को बताई।पर पिताजी इस रिश्ते के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हुए।समाज में अपनी इज्ज़त की उन्हें चिंता सता रही थी।उन्होंने सुमि से कहा कि अगर वो सागर से शादी करेगी तो अपने माता पिता का मरा मुँह देखेगी।सुमि सामाजिक बंधन और माता पिता के ख़िलाफ़ कैसे जा सकती थी।उन्होंने उनकी इज्ज़त के ख़ातिर अपने प्रेम का बलिदान कर दी।

