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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Crime

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Crime

ब्लैक रोज

ब्लैक रोज

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सुबह का मौसम बहुत खुशनुमा था । सूरज की किरणें झूमती हुई धरती पर आ रही थीं । पेड़ पौधों से आंख मिचौली खेलती हुई जल तरंगों पर अठखेलियां करती हुई ओस की बूंदों पर सतरंगी इंद्र धनुष बनाती हुई वे खुले आसमान से छन छन कर आ रही थी जिससे लोग उनसे जीवन पा रहे थे । "बीच" पर टहल रहे थे । व्यायाम कर रहे थे, योग कर रहे थे । जबसे बाबा रामदेव ने "योग" को पुनर्जीवित किया है तबसे लोगों में "योग" के प्रति बहुत जागृति आई है । लोग अब अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने लगे हैं । "कोरोना" ने इस प्रक्रिया को और तीव्र कर दिया है । सौ काम छोड़कर लोग अब खुद के लिए टाइम निकाल लेते हैं और सुबह के प्राकृतिक नजारे का आनंद लेते हैं । 


टहलने के बाद लोग "राजू की स्पेशल चाय" का आनंद लेना नहीं भूलते हैं । जुहू बीच पर एक कोने में राजू ने एक स्टॉल खोल रखा है । न जाने कितने सालों से चल रही है राजू की यह स्टॉल, किसी को कुछ ध्यान नहीं है । बहुत पहले यह स्टॉल छोटी सी थी लेकिन समय के साथ साथ यह बड़ी होती चली गई । अब इस स्टॉल पर सौ पचास लोग तो हर वक्त बैठे ही रहते हैं । राजू की स्टाइल भी बिल्कुल देसी है । ग्राहकों के बैठने के लिए स्टॉल के सामने सरकंडों की बनी हुई अनेक मुड्डियां पड़ी रहती हैं जिन पर बैठकर ग्राहक सामने बीच का आनंद लेते हुए राजू की स्पेशल चाय की चुस्कियों के बीच गपशप, हंसी मजाक करते रहते हैं और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने का प्रयास करते हैं । 


राजू की स्पेशल चाय भी बड़ी स्पेशल होती है । तंदूर में पहले तो कुल्हड़ों को तपाया जाता है । कुल्हड़ों को इतना तपाया जाता है कि वे लाल सुर्ख हो जाते हैं तब उसमें चाय डाली जाती है । इस चाय में कुल्हड़ की मिट्टी की जो सुगंध मिली होती है उससे चाय का टेस्ट एकदम से बदल जाता है और चाय इतनी जायकेदार हो जाती है कि आदमी उस चाय का "एडिक्ट" हो जाता है । यद्यपि यह चाय पूरे पचास रुपए की मिलती है पर इसके बावजूद राजू की स्टॉल पर इतनी भीड़ रहती है कि चाय के लिए लगभग आधा घंटा इंतजार करना पड़ जाता है । इसके बावजूद लोग राजू की चाय पीकर ही घर जाते हैं । 


"और राजू क्या हाल चाल हैं ? क्या खबरें हैं आज की ? ला चाय तो पिला दे अपने चाचा को" ! लल्लन ने मुड्डी पर बैठते हुए कहा 

"अरे लल्लन चाचा ! कब आये आप ? गांव में सब ठीक तो हैं न ? अरे छोटू, लल्लन चाचा को एक स्पेशल चाय तो पिला" ? राजू ने अपने नौकर छोटू को आवाज लगाई । 

"अरे भतीजे, एक नहीं दो चाय देना । मेरे साथ मेरा पोता सत्तन भी है । ये भी आ गया मेरे साथ गांव से मुम्बई देखने । मैंने तो बहुत मना किया था पर ये माना ही नहीं । बॉलीवुड का चार्म ही कुछ ऐसा है कि यह युवाओं को अपनी ओर खींच ही लेता है । इसको भी शौक लग गया कि ये भी हीरो बनेगा , इसलिए मेरे साथ आ गया" । लल्लन सारी बात बताते हुए बोला । 

"गांवों में बॉलीवुड को लोग "इन्द्र लोक" कहते हैं जहां सुन्दर सुन्दर हीरोइनें रहती हैं । गांव के लोग इन्हें अप्सरा कहते हैं । बस, इनका आकर्षण ही जवानों को यहां खींच लाता है । सत्तन बता , तुझे कौन सी अप्सरा खींच लाई यहां पर ? आलिया , कियरा या कृति शेनन" ? राजू सत्तन को छेड़ते हुए बोला । सत्तन बेचारा झेंपकर गर्दन नीची करके बैठा रहा । 

इतने में लल्लन ने पास में पड़ा अखबार उठा लिया और जोर जोर से पढने लगा । "15 वर्ष की किशोरी से गैंग रेप । 5 लोगों ने उसके साथ दरिंदगी की और उसे कोयले की जलती हुई भट्टी में डाल दिया । बाद में उसके बचे हुए अवशेषों को समुद्र में फेंक दिया" । समाचार पढते पढते लल्लन की मुठ्ठियां कस गईं और उसके जबड़े भिंच गये । वह जोर से चीख पड़ा "सालो , हरामजादो ! बर्बरता की हद पार कर दी है तुमने । तुम्हारे लिये तो फांसी की सजा भी कम है , दरिन्दो" । लल्लन के मुंह से गुर्राहट निकल रही थी । स्टॉल पर बैठे सभी लोग इस खबर को सुनकर सन्न रह गये । 


"चाचा, जरा पूरी खबर पढकर तो सुनाओ" । राजू पलकें झपका कर बोला । 

"क्या सुनाऊं बेटा , मेरा तो खून खौल रहा है । ये सत्तन सुना देगा" । लल्लन गुस्से के मारे कांपने लगा था । 

"सत्तन, तू ही सुना दे भैया" । राजू सत्तन की ओर देखकर बोला 

"जी, अभी सुनाता हूं । सिंगरौली गांव में 5 बदमाशों ने सड़क पर चलती हुई एक लड़की को जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बैठाया और वे लोग चलती हुई गाड़ी में उसके साथ बारी बारी से बलात्कार करने लगे । वे पांचों दरिन्दे उससे पूरे दो घंटे तक बलात्कार करते रहे । इस बीच वह लड़की कई बार बेहोश हुई और कई बार होश में आ गई मगर ये नर पिशाच उसे लगातार रौंदते रहे । और जब वह बुरी तरह से निढाल होकर मरणासन्न हो गई तो उन्होंने गाड़ी रोककर उसे एक जलती हुई भट्टी में फेंक दिया और जश्न मनाने लगे । दारू की बोतलें खोलकर वहीं पीने लगे । जब उस भट्टी के कोयले बुझ गये तो सबूत मिटाने के लिए उन्होंने उसकी लाश के बचे हुए अवशेषों को एक थैले में डाला और उन्हें समुद्र में फेंक दिया । उन राक्षसों को पकड़ने के लिए पुलिस की पांच मोबाइल टीमें बनाई गई हैं" । 


खबर सुनकर सबके रोंगटे खड़े हो गये । सबके मन में आक्रोश भर गया । लोग छोटे छोटे समूहों में इस पर चर्चा करने लगे । कोई कह रहा था कि उन पांचों दरिन्दों को भी जिंदा जला देना चाहिए तो कोई कह रहा था कि उन्हें सार्वजनिक फांसी दी जानी चाहिए । जितने मुंह उतनी बातें । कोई सरकार को कोस रहा था तो कोई पुलिस को । कुछ लोग न्याय व्यवस्था को कोस रहे थे और कह रहे थे कि आज यदि अपराधी बेखौफ है तो उसका कारण न्याय व्यवस्था ही है । बीस बीस साल तक फैसले नहीं होते हैं । निचली अदालत से यदि सजा हो जाती है तो अपराधी ऊपरी अदालत में छूट जाता है । यदि ऊपरी अदालत में भी नहीं छूटता है तो वह हाईकोर्ट में जरूर छूट जाता है । और यदि हाईकोर्ट में भी नहीं छूटा तो सुप्रीम कोर्ट में तो जरूर से जरूर छूट जाता है । वहां पर जो न्यायाधीश बैठे हैं वे बहुत बड़े मानवाधिकारवादी हैं । उन्हें अपराधियों के मानवाधिकारों की बहुत चिंता रहती है । जनता चाहे भाड़ में जाये । अपराधियों के प्रति वे इतने संवेदनशील होते हैं कि छुट्टी के दिन भी उन्हें जमानत दे देते हैं । रात को दो दो बजे भी सुप्रीम कोर्ट खोल लेते हैं और जमानत दे देते हैं । लोगों का न्याय व्यवस्था से भरोसा बिल्कुल उठ गया है । लोग कह रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट को "जनहित याचिकाऐं" सुनने से ही फुरसत नहीं है तो वह सजा के मामलों में कैसे फैसला करे ? जनहित याचिकाओं के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को देश चलाने का मौका मिल रहा है और वह इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता है । उसे सरकार को फटकारने में जो आनंद आता है वैसा आनंद तो जन्नत में भी नहीं है । इस तरह वे लोग इस देश के "माई बाप" बन गये हैं तो उनके लिए इससे बढिया बात और क्या हो सकती है ? 


इतने में एक सज्जन अखबार में छपी दूसरी खबर पढने लगे । "सुप्रीम कोर्ट ने एक अपराधी को बरी किया । खबर इस तरह से थी । सन 2010 में एक 10 वर्ष की बालिका के साथ मोहम्मद अफरोज ने बलात्कार किया था और उसका गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी । मोहम्मद अफरोज पर सेशन कोर्ट में मुकदमा चला और सेशन कोर्ट ने सन 2015 में उसे फांसी की सजा सुना दी थी । मोहम्मद अफरोज ने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर दी जिसका फैसला सन 2017 में हो गया । हाईकोर्ट ने मोहम्मद अफरोज की फांसी की सजा बरकरार रखी । इस निर्णय के विरुद्ध मोहम्मद अफरोज सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और उसने वहां "न्याय" की गुहार लगाई । सुप्रीम कोर्ट ने "न्याय" करते हुए मोहम्मद अफरोज को बाइज्जत बरी कर दिया । फैसले में जज ने लिखा है कि "प्रत्येक अपराधी का भी एक भविष्य होता है । चूंकि मोहम्मद अफरोज अभी युवा है और उसे भी जीने का अधिकार है अत: यह न्यायालय उसे जीने का अधिकार देते हुए उसकी सजा रद्द करता है और उसे बाइज्जत बरी करता है" । 


इस फैसले को पढकर सभी लोगों में आक्रोश भर गया मगर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कौन बोले ? मानहानि के मामले में सुप्रीम कोर्ट बोलने वाले को अंदर कर सकता है । इस देश में प्रधान मंत्री की आलोचना हो सकती है, राष्ट्रपति की आलोचना हो सकती है मगर जज की आलोचना बिल्कुल सहन करने योग्य नहीं है । वह चाहे जैसा फैसला दे, उसे भगवान का फैसला मानकर उसे स्वीकार करना ही होगा । उसके खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोल सकता है कोई । गजब का न्याय है इस देश में । इसी का असर है कि अपराधी बेखौफ हो गये हैं और आम आदमी सरे बाजार मर रहे हैं । 


दोनों खबरों को सुनकर स्टॉल पर सन्नाटा व्याप्त हो गया । लल्लन उठकर पैसे देने लगा । दो चाय के 100 रुपए हुए मगर लल्लन ने मसखरी करने के लिए राजू को पचास का नोट पकड़ाया । वह राजू की परीक्षा भी लेना चाहता था कि उसे पता चलता भी है या नहीं ? 


राजू ने पचास का नोट हाथ में लिया और उस पर कई बार हाथ फिराया और फिर बोला "चाचा, आज सुबह सुबह मसखरी कर रहे हो अपने भतीजे के साथ । पचास रुपए से ही काम चला रहे हो" ? राजू के होठों पर मुस्कान थी । 

"कुछ नहीं बेटा , तेरा इम्तिहान ले रहा था कि तुझे पता चलता है कि नहीं" । लल्लन भी खिलखिलाकर बोला 

"चाचा, मैं अंधा जरूर हूं पर मूर्ख नहीं हूं" । कहकर दोनों जने खिलखिलाकर हंस पड़े । 


क्रमश : 



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